कभी 10 रुपए रोज में दिहाड़ी करते थे IAS नरेंद्र सूर्यवंशी, मेहनत से पाया मुकाम

नरेंद्र कुमार की शुरुआत सरकारी स्कूल से हुई, लेकिन पढ़ाई के प्रति उत्साह शुरू से नहीं था। फिर भी डॉक्टर बनने का सपना लिए पीएमटी की तैयारी की, परीक्षा भी दी, लेकिन नतीजा हौंसले के विपरीत निकला।

author-image
The Sootr
एडिट
New Update
IAS Narendra Suryavanshi

IAS नरेंद्र सूर्यवंशी

Listen to this article
0.75x 1x 1.5x
00:00 / 00:00

द तंत्र : यह है इंदौर की गलियों से उठकर अफसरशाही की ऊंचाइयों तक पहुंचने वाले उस शख्स की कहानी, जिसने सपने देखे भी छोटे कमरे में और पूरे किए राजपथ पर चलकर। जी हां, यह दास्तां है मध्य प्रदेश कैडर के आईएएस नरेंद्र कुमार सूर्यवंशी की। वे आज सख्त अनुशासन और मानवीय संवेदनाओं के लिए पहचाने जाते हैं। यह पहचान उन्हें यूं ही नहीं मिली, इसके पीछे है वर्षों की कड़ी मेहनत, संघर्षों की धूप और आत्मविश्वास की ठंडी छांव।

इंदौर के एक साधारण परिवार में जन्मे नरेंद्र कुमार सूर्यवंशी के लिए बचपन कोई विशेष सुविधा वाला नहीं था। मां गृहणी थीं और पिता बजरंग सूर्यवंशी सरकारी बाबू। पांच भाई-बहनों वाला यह परिवार आम मिडिल क्लास जिंदगी जीता था। नोंकझोंक, अनुशासन, प्यार और सबसे बढ़कर पिता का डर, यह सब नरेंद्र के जीवन में स्थायी भाव की तरह था। शाम के 7 बजते ही पूरे घर के बच्चे जैसे घर के अंदर आने की रेस में जुट जाते थे, ताकि पिता की नाराजगी से बचा जा सके।

पढ़ाई में मन नहीं लगता था 

नरेंद्र कुमार की शुरुआत सरकारी स्कूल से हुई, लेकिन पढ़ाई के प्रति उत्साह शुरू से नहीं था। फिर भी डॉक्टर बनने का सपना लिए पीएमटी की तैयारी की, परीक्षा भी दी, लेकिन नतीजा हौंसले के विपरीत निकला। असफलता ने निराश किया, पर दिशा बदल दी। आर्थिक स्थिति खराब थी। इसी कारण नरेंद्र कुमार ने MP लोक सेवा आयोग में 10 रुपए दिहाड़ी पर काम करना शुरू किया। 

10 रुपए में 14 घंटे काम, रात को पढ़ाई

नरेंद्र कुमार को महीने में 300 रुपए मिलते थे। सुबह 7 बजे घर से नाश्ता कर निकलते और रात 9 बजे तक लौटते, बिना कुछ खाए 14 घंटे काम। रात को फिर पढ़ाई में जुटते। इंदौर के मच्छी बाजार में तब पढ़ाई का इतना माहौल भी नहीं था, लेकिन यही वो मोड़ था, जब उन्होंने फाइलों में अफसरों के नाम पढ़ते-पढ़ते खुद एक दिन अफसर बनने की ठान ली। लोक सेवा आयोग की दीवारों के बीच काम करते हुए उनके भीतर एक सपना जागा, सरकारी सिस्टम का हिस्सा बनने का।

एमए में मेरिट और फिर सफलता की रफ्तार

पोस्ट ग्रेजुएशन में राजनीति शास्त्र से एमए किया और टॉप किया। यह पहली बार था, जब उन्हें अपने भीतर क्षमता का एहसास हुआ। फिर क्या था, तैयारी शुरू की और पहली ही कोशिश में सफलता भी हाथ लगी। संघर्ष का पहला पड़ाव पार हो चुका था। वे राज्य प्रशासनिक सेवा में चयनित हो गए। उन्होंने खूब काम किया और उसका परिणाम भी मिला। 2019 में उन्हें आईएएस अवॉर्ड हो गया। 

आज सूर्यवंशी की कार्यशैली जितनी प्रभावी है, उतनी ही मानवीय भी। जब वृद्धाश्रम की महिलाएं एक संचालक की शिकायत लेकर उनके दफ्तर पहुंचीं तो उन्होंने न सिर्फ उनकी बात सुनी, बल्कि उन्हें अपनी गाड़ी में बैठाकर वृद्धाश्रम तक छोड़ा। एक अफसर जब बुजुर्गों के हाथ थामता है, तब वह सिर्फ कलेक्टर नहीं, समाज का प्रहरी बन जाता है।

पिता की परछाई में पला अनुशासन 

आईएएस नरेंद्र सूर्यवंशी की सफलता की बुनियाद अगर किसी ने रखी है, तो वो रहे उनके पिता बजरंग सूर्यवंशी। सरकारी बाबू रहे बजरंग सूर्यवंशी ने उप सचिव के पद से सेवानिवृत्ति ली, लेकिन पूरी नौकरी के दौरान और रिटायरमेंट तक एक उसूल कभी नहीं छोड़ा, स्वाभिमान और अनुशासन। पांच बच्चों की परवरिश आसान नहीं थी। तनख्वाह सीमित थी, पर सपनों की ऊंचाई बड़ी थी। आर्थिक संकट कई बार सिर उठाता, लेकिन बजरंग सूर्यवंशी ने कभी बच्चों से एक रुपया भी नहीं लिया। घर चलाते रहे, बच्चों को पढ़ाते रहे, बिना किसी शिकवा के।

उनकी खुद्दारी का एक किस्सा तो ऐसा है, जो खुद नरेंद्र आज भी याद कर भावुक हो जाते हैं। वर्ष 2005 में रिटायर होने से पहले जब आखिरी बार तनख्वाह मिली, तो बजरंग सूर्यवंशी ने उसमें से 10 हजार रुपए अपनी पत्नी को यह कहते हुए दिए कि मेरे बाद जब अंतिम संस्कार होगा, तो लकड़ी इन्हीं पैसों से खरीद लेना। 
ये सुनकर घर में सन्नाटा पसर गया था, लेकिन किसी ने कुछ कहा नहीं। वर्ष 2021 में जब उनका निधन हुआ, तब 17 साल बाद उनकी मां ने अलमारी से वही 10 हजार रुपए निकालकर नरेंद्र के हाथ में रख दिए। उस पल सूर्यवंशी कुछ बोल नहीं पाए। शब्द तो जैसे खो गए, आंखें बोलने लगीं।

उनके पिता सिर्फ अनुशासक नहीं थे, बल्कि जीते-जागते उसूल थे। जब तक वे जीवित रहे, नरेंद्र डिप्टी कलेक्टर बन चुके थे, लेकिन पिता नाराज होते तो अब भी डांट देते। अनुशासन इतना कि शाम छह बजे घर लौटना अनिवार्य था, पांच मिनट की देरी भी बर्दाश्त नहीं होती। यही अनुशासन आज भी नरेंद्र कुमार के जीवन और कार्यशैली का आधार है। 

काम में लापरवाही देखी तो एक्शन लिया

आईएएस सूर्यवंशी को जब सीएम हेल्पलाइन, राजस्व प्रकरण और स्वामित्व योजना में लापरवाही दिखी, तो उन्होंने SDM, तहसीलदार और नायब तहसीलदारों का एक महीने का वेतन रोक दिया। कारण बताओ नोटिस भी जारी हुआ और जांच के आदेश दिए गए। वह मानते हैं कि जनता की सेवा में लापरवाही अक्षम्य है। जनसुनवाई से लेकर सरकारी स्कूलों और स्वास्थ्य केंद्रों तक, सूर्यवंशी का निरीक्षण खुद करने की आदत है। वे अचानक पहुंचकर हालात का जायजा लेते हैं और त्वरित फैसले लेते हैं।

कॅरियर एक नजर 


नाम: नरेंद्र कुमार सूर्यवंशी 
जन्म दिनांक: 15-07-1970
जन्म स्थान: इंदौर
एजुकेशन: M.A.(Political Science)
बैच: SCS; 2012 (मध्यप्रदेश) 

पदस्थापना 

आईएएस नरेंद्र कुमार सूर्यवंशी 25 अप्रैल 2025 की स्थिति में बैतूल जिले के कलेक्टर हैं। इससे पहले वे रतलाम और निवाड़ी जिले में भी बतौर कलेक्टर अपनी सेवाएं दे चुके हैं। वहीं, फूड इंस्पेक्टर, नायब तहसीलदार, मंडी सचिव, डिप्टी कलेक्टर, जिला पंचायत सीईओ, नगर निगम कमिश्नर जैसे पदों पर भी उन्होंने काम किया।

ये भी पढ़ें...

IAS भव्या मित्तल ने भ्रष्ट बाबू को बना दिया था चपरासी, सख्ती और संवेदनशीलता के लिए रहती हैं चर्चा में

जमीनी काम के लिए जाने जाते हैं IAS दिलीप कुमार यादव, कलेक्ट्रेट में रचाई थी शादी

सिस्टम को जमीन से जोड़ने वाले अफसर हैं IAS डॉ. सत्येंद्र सिंह, चार जिलों में संभाली कमान

मध्य प्रदेश की बेटी IAS शीतला पटले की कहानी हर लड़की को देती है उड़ान की हिम्मत

 

द तंत्र आईएएस नरेंद्र सूर्यवंशी सीएम हेल्पलाइन मध्य प्रदेश इंदौर