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क्या आपने कभी सोचा है कि जब भारत स्वतंत्र हुआ तो लोकसभा की सीटों की संख्या किस आधार पर तय की गई थी? दरअसल, यह 1951-52 में पहली बार हुआ था और तब संविधान के अनुच्छेद 81 के मुताबिक, सीटों का निर्धारण जनसंख्या के अनुपात में किया गया था।
उस समय, आदर्श रूप में, हर लोकसभा सीट के पीछे लगभग 10 लाख लोग होने चाहिए थे। फिर इसी आधार पर 1951 की जनगणना के आंकड़ों के आधार पर 489 सीटों का निर्धारण किया गया था। अब अगर बात करें लोकसभा सीटों की संख्या में बदलाव की, तो यह
दरअसल 1976 में हुए परिसीमन के बाद से लोकसभा की सीटें स्थिर ही हैं। यानि 543। यह संख्या अब तक स्थिर इसलिए है, क्योंकि 1976 में 42वें संविधान संशोधन के तहत यह निर्णय लिया गया था कि सीटों की संख्या स्थिर रखी जाएगी और यह 2026 तक लागू रहेगा।
तो क्यों जरूरी है परिसीमन समझते हैं
परिसीमन (Delimitation) का मुख्य उद्देश्य यह है कि जनसंख्या के अनुपात में निष्पक्ष (Fair) प्रतिनिधित्व (Representation) सुनिश्चित किया जाए। अगला परिसीमन 2026 के बाद होगा और इसमें सीटों का बंटवारा नई जनगणना (Census) के आधार पर किया जाएगा।
इसका मतलब यह हो सकता है कि उत्तर और दक्षिण भारत के बीच राजनीतिक संतुलन (Political Balance) को लेकर बड़ी बहस हो। यह भारत की लोकतांत्रिक राजनीति में एक महत्वपूर्ण मोड़ (Turning Point) साबित हो सकता है।
तो पहले समझे परिसीमन प्रक्रिया क्या है
परिसीमन एक संवैधानिक प्रक्रिया है, जिसके तहत संसदीय और विधानसभा क्षेत्रों की सीमाएं (Boundaries) तय की जाती हैं। इसका उद्देश्य यह है कि हर क्षेत्र में समान जनसंख्या का प्रतिनिधित्व हो, ताकि "एक व्यक्ति, एक वोट, एक मूल्य" (One Person, One Vote, One Value) का सिद्धांत लागू किया जा सके।
यह प्रक्रिया हर दशक (Decade) में जनगणना के बाद होती है। संविधान (Constitution) के अनुच्छेद 81(2) के तहत इसे किया जाता है, ताकि प्रत्येक राज्य की जनसंख्या और उसके सांसदों (Members of Parliament) की संख्या के बीच अनुपात (Ratio) समान हो।
आदर्श रूप में कितनी जनसंख्या पर एक सांसद होना चाहिए
संविधान के अनुच्छेद 81 के अनुसार, आदर्श स्थिति में भारत में हर 10 लाख आबादी पर एक लोकसभा सांसद होना चाहिए। लेकिन फिलहाल औसतन 27 लाख लोगों पर एक सांसद है।
इसका मतलब यह है कि अगर हम 150 करोड़ आबादी को ध्यान में रखें तो भारत को 1500 सांसदों की जरूरत है, जबकि वर्तमान में सिर्फ 543 सांसद ही हैं।
सबसे ज्यादा और सबसे कम जनसंख्या पर सांसद किस राज्य में हैं
परिसीमन की प्रक्रिया कैसी होती है
परिसीमन आयोग (Delimitation Commission) का गठन राष्ट्रपति (President) करते हैं, और इसकी अध्यक्षता सर्वोच्च न्यायालय (Supreme Court) के सेवानिवृत्त न्यायाधीश (Retired Judge) करते हैं। आयोग में मुख्य चुनाव आयुक्त (Chief Election Commissioner) और संबंधित राज्यों के चुनाव आयुक्त (Election Commissioners) भी शामिल होते हैं।
आयोग स्वतंत्र रूप से कार्य करता है, और उसकी सिफारिशों को न्यायालय (Court) में चुनौती नहीं दी जा सकती। आयोग सीमाओं पर जनता और राजनीतिक दलों से सुझाव (Suggestions) लेता है, और फिर अंतिम आदेश राजपत्र (Gazette) में प्रकाशित किया जाता है।
अगला परिसीमन (2026 के बाद) क्या होगा
अगला परिसीमन 2026 के बाद होगा, जब नई जनगणना के आंकड़े उपलब्ध होंगे। इस परिसीमन में बड़ी सीटों की संख्या में बदलाव हो सकता है। 1976 से लोकसभा सीटों की संख्या स्थिर रही है, लेकिन अब जनसंख्या के आधार पर इन सीटों का पुनर्वितरण हो सकता है।
बड़ा सवाल ये है कि दक्षिण भारत के राज्यों ने जनसंख्या नियंत्रण (Population Control) में सफलता पाई है। ऐसे में उनकी सीटें घट सकती हैं, जबकि उत्तर भारत की सीटें बढ़ सकती हैं।
राज्य की सीटें कम नहीं होंगी
इस पर राजनीतिक विवाद भी हो सकता है। दक्षिणी राज्यों को डर है कि सीटों में कटौती (Reduction in Seats) से उनके राजनीतिक प्रभाव (Political Influence) में कमी आ सकती है।
हालांकि, केंद्र सरकार (Central Government) ने यह आश्वासन दिया है कि किसी राज्य की सीटें कम नहीं होंगी। यदि समस्या गंभीर हुई, तो संविधान संशोधन (Constitutional Amendment) करके नए फॉर्मूले पर काम किया जा सकता है।
दक्षिणी राज्यों का असंतुलन
दक्षिणी राज्यों में जनसंख्या आधारित परिसीमन के परिणामस्वरूप असंतुलन (Imbalance) हो सकता है। उदाहरण के लिए, दक्षिणी राज्यों के पास 22.45% मतदाता (Voters) होते हुए भी लोकसभा में उनकी सीटें 23.8% हैं, जो बाकी राज्यों के मुकाबले अधिक हैं। इस असंतुलन को दूर करने के लिए मतदाताओं की संख्या के आधार पर संसदीय सीटों का आवंटन किया जाना चाहिए।
अगर नए परिसीमन में सीटें बढ़ीं तो ऐसी होगी तस्वीर
राज्य/केंद्र शासित प्रदेश | वर्तमान सीटें | मतदाता (लाख) | प्रस्तावित सीटें | समायोजित सीटें | % वृद्धि |
---|---|---|---|---|---|
आंध्र प्रदेश | 25 | 4,41,01,887 | 33.9 | 34 | 36 |
कर्नाटक | 28 | 5,47,37,232 | 42.1 | 42 | 50 |
केरल | 20 | 2,67,01,048 | 20.7 | 21 | 5 |
तमिलनाडु | 39 | 6,18,84,097 | 47.7 | 48 | 23 |
तेलंगाना | 17 | 3,32,32,312 | 21.7 | 22 | 29.4 |
बिहार | 40 | 7,62,32,712 | 51.2 | 51 | 27.5 |
छत्तीसगढ़ | 11 | 2,66,76,967 | 16.9 | 17 | 54.5 |
गुजरात | 26 | 4,97,63,945 | 32.5 | 33 | 27 |
हरियाणा | 10 | 2,03,31,977 | 16.2 | 16 | 60 |
झारखंड | 14 | 2,59,97,131 | 17.5 | 18 | 28.6 |
मध्य प्रदेश | 29 | 5,66,68,852 | 45.9 | 46 | 58.6 |
महाराष्ट्र | 48 | 9,30,61,760 | 76.1 | 76 | 58.3 |
दिल्ली | 7 | 1,52,14,638 | 11.6 | 12 | 71.4 |
ओडिशा | 21 | 3,37,16,965 | 27.6 | 28 | 33.3 |
पंजाब | 13 | 2,51,67,106 | 16.7 | 17 | 30.8 |
राजस्थान | 25 | 5,35,08,018 | 41.3 | 41 | 64 |
उत्तर प्रदेश | 80 | 15,44,43,110 | 143.6 | 144 | 80 |
पश्चिम बंगाल | 42 | 7,51,46,433 | 61.3 | 62 | 47.6 |
अंडमान व निकोबार द्वीप | 1 | 3,08,611 | 0.3 | 1 | 0 |
अरुणाचल प्रदेश | 2 | 8,98,444 | 0.8 | 2 | 0 |
असम | 14 | 2,58,94,556 | 20.1 | 20 | 42.9 |
चंडीगढ़ | 1 | 6,60,552 | 0.5 | 1 | 0 |
दादरा नगर हवेली व दमन दीव | 2 | 6,60,356 | 0.5 | 2 | 0 |
गोवा | 2 | 11,79,644 | 0.9 | 2 | 0 |
हिमाचल प्रदेश | 4 | 56,50,870 | 4.5 | 4 | 0 |
जम्मू और कश्मीर | 5 | 88,02,348 | 7.2 | 7 | 40 |
लद्दाख | 1 | 1,90,976 | 0.2 | 1 | 0 |
लक्षद्वीप | 1 | 54,266 | 0.1 | 1 | 0 |
मणिपुर | 2 | 20,34,966 | 1.7 | 2 | 0 |
मेघालय | 2 | 22,03,451 | 1.8 | 2 | 0 |
मिजोरम | 1 | 8,61,327 | 0.7 | 1 | 0 |
नागालैंड | 1 | 13,39,944 | 1.1 | 1 | 0 |
पुडुचेरी | 1 | 10,24,043 | 0.8 | 1 | 0 |
सिक्किम | 1 | 4,68,643 | 0.4 | 1 | 0 |
त्रिपुरा | 2 | 28,64,578 | 2.2 | 2 | 0 |
उत्तराखंड | 5 | 84,39,242 | 6.9 | 7 | 40 |
संपूर्ण भारत | 543 | 97,77,95,650 | 800 | 810 | 49.2 |
सामाजिक और राजनीतिक प्रभाव
यदि परिसीमन सिर्फ जनसंख्या के आधार पर किया जाता है, तो यह सामाजिक तनाव (Social Tension) को जन्म दे सकता है। खासकर, यदि धार्मिक (Religious) या जातीय (Caste) समूहों के बीच यह सवाल उठे कि अधिक सीटें उन्हें मिलनी चाहिए, क्योंकि उन्होंने जनसंख्या नियंत्रण (Population Control) के उपायों का पालन किया है। इससे समाज में असंतुलन पैदा हो सकता है और विभिन्न समूहों के बीच तनाव बढ़ सकता है।
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