/sootr/media/media_files/2025/01/29/eAX1rfs0ZosouIF3Ydav.jpg)
वरिष्ठ पत्रकार रमेश शर्मा
भारतीय इतिहास के कुछ पन्ने रक्त से ऐसी रंजित घटनाओं से भरे हैं जिनका विवरण आज भी रोंगटे खड़े देता है। ऐसा ही एक विवरण चंदेरी का है जहां लाशों के ढेर लगाकर आक्रांताओं ने अट्टास किया। मध्य प्रदेश में ग्वालियर संभाग के अंतर्गत अशोक नगर जिले में स्थित यह वही चंदेरी है जो पूरे संसार में अपनी साड़ियों की शिल्पकला के लिए प्रसिद्ध है। उन दिनों भी यह वस्त्र कला निर्माण ही नहीं व्यवसाय का भी एक बड़ा केंद्र था। चंदेरी में यह विध्वंस मुगल हमलावर बाबर ने किया था।
बाबर की क्रूरता और राजपूतों की वीरता
बाबर ने चंदेरी में केवल विध्वंस ही नहीं किया था बल्कि जिन सैनिकों और नागरिकों को जान बख्शने का आश्वासन देकर समर्पण कराया था उन सब बंदियों के शीश काटकर ऊंचा पहाड़ बनाया था। फिर कटे हुए असंख्य शीश के उस पहाड़ पर अपनी जीत का झंडा फहराया था। निर्दोष स्त्री बच्चों को पकड़ कर गुलाम बनाया था, अत्याचार किए थे और कुछ को गुलामों के बाजार में बेचने के लिए खुरासान भेज दिया था और इसी विध्वंस के बीच अपने स्वत्व की रक्षा के लिए महारानी मणिमाला ने 1500 क्षत्राणियों और अन्य महिलाओं के साथ जौहर (अग्निकुंड में कूदकर प्राण त्याग दिए) किया था। इस जौहर की स्मृति को एक स्मारक के रूप में चंदेरी किले में सहेज लिया गया है। इस स्मारक पर पहुंचते ही रोंगटे खड़े हो जाते हैं, शरीर में सिरहन भी पैदा होती हैं।
ये भी पढ़ें...
मां भारती की रक्षा में आज ही के दिन बलिदान हुए थे शेर-ए-सिंध क्रांतिकारी हेमू कालाणी
चंदेरी किले का विध्वंस
यह युद्ध साल 1528 जनवरी के आखिरी सप्ताह में लड़ा गया था। किसी विश्वासघाती द्वारा चंदेरी दरवाजा खोलने की तिथि 28 और 29 जनवरी के बीच की रात है। रात भर वीरों का खून बहा, स्त्रियों की चिता जली, इसलिए कुछ इतिहासकारों ने विध्वंस की तिथि 28 जनवरी मानी और कुछ ने 29 जनवरी 1528 माना।
उन दिनों चंदेरी पर प्रतिहार वंशीय शासक मेदनीराय का शासन था। अंतरराष्ट्रीय रेशम के व्यापार का बड़ा केंद्र के रूप में भी चंदेरी की ख्याति रही है। मेदिनीराय अपनी सेना लेकर चितौड़ के शासक राणा सांगा की कमान में बाबर से युद्ध करने के लिए खानवा के मैदान में गए थे। चित्तौड़ से कुछ रिश्तेदारियां भी थीं। राणा सांगा मेदनीराय को पुत्रवत मानते थे। दुर्योग से खानवा के युद्ध में राणाजी की पराजय हुई।
राणा जी की हार के कारण
इस युद्ध में राणा जी की हार के दो कारण रहे, एक तो उनकी सेना में विश्वासघात और दूसरा बाबर ने अपने तोपखाने के आगे गायों को बांध कर खड़ा कर दिया था। गायों को सामने देखकर राणाजी का तोपखाना रुक गया। बाबर की रणनीति काम आई। बाबर का तोपखाना गरज उठा और युद्ध का नक्शा ही बदल गया। राणा जी के घायल होकर निकल जाने के बाद बाबर ने अपनी जीत का जश्न मनाया। बाबर ने उन सभी राजपूत राजाओं के दमन का अभियान चलाया जो राणा सांगा की कमान में बाबर से युद्ध करने खानवा पहुँचे थे। इनमें मेदिनीराय का नाम प्रमुख था। खानवा युद्ध के बाद मेदिनी राय चंदेरी लौट आए और राणा जी के स्वस्थ होने की प्रतीक्षा करने लगे।
राष्ट्र रक्षा में आज ही के दिन बलिदान हुए थे महायोद्धा दत्ताजी शिंदे
बाबर का चंदेरी अभियान
चंदेरी अभियान के लिए बाबर 9 दिसंबर 1527 को सीकरी से रवाना हुआ। इसकी खबर मेदिनी राय को लग लग गई थी, उन्होंने सहायता के लिए मालवा के अन्य राजाओं को संदेश भेजे और आवश्यक सामग्री एकत्र करके स्वयं को किले में सुरक्षित कर लिया था। चंदेरी का यह किला पहाड़ी पर बना है। इसकी गणना देश के अति सुरक्षित किलों में की जाती है। बाबर और उसकी फौज रास्ते भर लूट हत्याएं और बलात्कार करती हुई आगे बढ़ी और 20 जनवरी 1528 को चंदेरी पहुंची। बाबर ने रामनगर तालाब के पास अपना कैंप लगाया और दो संदेश वाहक शेख गुरेन और अरयास पठान को राजा मेदिनी राय के पास भेजा।
स्वाभिमानी मेदिनी राय का संघर्ष और बाबर का आक्रमण
संदेश वाहकों ने राजा मेदिनी राय के पास तीन संदेश दिए, पहला मुगलों की आधीनता स्वीकार करो और मुगलों के सूबेदार बनों, दूसरा चंदेरी का किला खाली करदो इसके बदले कोई दूसरा किला ले लो। तीसरा यह कि निवास और मालखाने का पूर्ण समर्पण। स्वाभिमानी मेदनी राय ने शर्तों को अस्वीकार कर दिया। मेदिनी राय को लगता था कि बाबर की फौज पहाड़ी न चढ़ पाएगी, लेकिन बाबर के पास तोपखाना और बारूद का पर्याप्त भंडार था। उसने पहाड़ी काटकर रास्ता बना लिया था और किले के दरवाजे तक आ गया।
बाबर का अंतिम संदेश और राजपूतों की रणभेरी
दूसरी तरफ राजपूतों के पास न बारूद था न तोपखाना। उनके पास तीर कमान, तलवार, भाला या आग के गोलों के अतिरिक्त कुछ नहीं था। वह 26 जनवरी 1528 की तिथि थी जब समर्पण के लिए बाबर का अंतिम संदेश राजा मेदिनीराय को मिला। संदेश पाकर राजा ने रणभेरी बजाने का आदेश दिया। 27 जनवरी से युद्ध आरंभ हुआ पर मुगलों के तोपखाने के सामने राजपूत सेना कमजोर पड़ी। बाहर घेराबंदी भी तगड़ी थी। राजा घायल हो गये उन्हें किले के भीतर लाकर फिर किले के द्वार बंद कर दिए गए। 28 जनवरी को दिनभर बाबर का तोपखाना चंदेरी किले दीवार पर गरजता रहा। दीवार बुरी तरह क्षतिग्रस्त हो गई थी। महारानी मणिमाला को भविष्य का अंदाजा हो गया। उन्होंने जौहर करने का फैसला लिया।
आज ही के दिन लूटा था गजनवी ने सोमनाथ मंदिर, ये है आतंक की पूरी कहानी
महारानी मणिमाला और 1500 महिलाओं का जौहर
महारानी मणिमाला किले के भीतर विराजे महाशिव के मंदिर में चली गई। उनके साथ राज परिवार और किले और नगर की अन्य स्त्रियां भी थीं। जिनकी संख्या 1500 से अधिक लिखी है। सभी स्वाभिमानी स्त्रियों ने पहले शिव पूजन किया फिर स्वयं को अग्नि को समर्पित कर दिया। यह जौहर 28 और 29 जनवरी की मध्य रात्रि से आरंभ हुआ। जिस समय ये देवियां जौहर कर रहीं थी तभी किसी विश्वासघाती ने किले का दरवाजा खोल दिया। मुगलों की फौज भीतर आ गई। किले के भीतर भी मातम जैसा माहौल था। जिसके हाथ में जो आया उससे मुकाबला करने लगा। पर यह युद्ध नाममात्र का रहा। रातभर मारकाट हुई। हमलावरों ने किले के भीतर किसी पुरूष को जीवित न छोड़ा। जो स्त्रियां जीवित मिलीं उन्हें और बच्चों बंदी बना लिया गया।
ऐसे दो क्रांतिकारी जिनके अंग्रेजों ने हथौड़े से तोड़े दांत, उखाड़े नाखून, फिर दी फांसी
आक्रांता बाबर ने सिरों का ढेर लगाकर फहराया ध्वज
इसके बाद 29 जनवरी की सुबह बाबर ने किले में प्रवेश किया। जौहर की लपटें तेज थीं। चारों ओर लाशें बिखरी पड़ीं थीं। सारी लाशे एकत्र की गयीं। उनके के शीश काटे गये, सिरों का ढेर लगाया गया और उस पर मुगलों का ध्वज फहराया गया। बाबर चंदेरी में 15 दिन रुका। किले में खजाना खोजा गया। आसपास जहां तक बन पड़ा लूटपाट की गई। लाशों के ढेर किले और नगर में ही नहीं गांवो में भी लगे। मकानों को ध्वस्त किया गया। यातनाएं देकर छुपा हुआ धन वसूला गया। अपने एक जमादार अय्यूब खान को चंदेरी का सूबेदार बनाकर बाबर लौट गया।
(इस युद्ध और जौहर का वर्णन "प्रतिहार राजपूतों का इतिहास" लेखक देवी सिंह पुस्तक में विस्तार से है। जबकि युद्ध वर्णन ग्वालियर और गुना जिले के गजट में भी है। चंदेरी में जौहर स्थल भी बना है वहां महिलाएं पूजन करने भी जातीं हैं)