कवि प्रदीप के गीतों की शब्द शक्ति से राष्ट्रभक्ति और स्वाभिमान जागरण की यात्रा

महान गीतकार और कवि प्रदीप जी ने प्रेरणादायक गीतों से पूरे राष्ट्र में जागृति का संचार किया। उनके लिखे देशभक्ति गीत आज भी हर किसी में राष्ट्रप्रेम की भावना भर देते हैं। कवि प्रदीप की जयंती के मौके पर आइए जानते हैं उनसे जुड़ी कुछ खास बातें।

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Vikram Jain
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Kavi Pradeep Birth Anniversary Special story

विचार मंथन।

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वरिष्ठ पत्रकार रमेश शर्मा

भारतीय स्वाधीनता संग्राम में करोड़ों प्राणों के बलिदान हुए। ये बलिदान साधारण नहीं थे। पर इन बलिदानों के लिए आह्वान करने वाले शब्द साधकों की भी एक धारा रही है जिन्होंने अपने शब्दों की शैली और गीतों के माध्यम से राष्ट्र जागरण का अभियान छेड़ा। यह अभियान स्वतंत्रता के पहले भी चला और स्वतंत्रता के बाद भी। अपनी रचनाओं से राष्ट्र जागरण करने वाले ऐसे ही कालजयी रचनाकार हैं कवि प्रदीप। राष्ट्र कवि प्रदीप जी ने जीवन भर अपने ओजस्वी गीतों से पूरे राष्ट्र चेतना की अलख जगाई। स्वतंत्रता के पूर्व यदि उनके गीतों में संघर्ष के लिए आह्वान था तो स्वाधीनता के बाद राष्ट्र निर्माण की उत्प्रेरणा।

दूर हटो ये दुनिया वालों ये....

स्वाधीनता के पूर्व... " दूर हटो ये दुनिया वालों ये हिन्दुस्तान हमारा हैं..." और स्वतंत्रता के बाद- "ऐ मेरे वतन के लोगों जरा आंख में भर लो पानी" जैसे अमर गीत के रचयिता कवि प्रदीप ही हैं। वे दुनियां के उन विरले गीतकारों में से हैं जिनका हर गीत बहुत लोकप्रिय हुआ। उन्होंने दो हजार से ज्यादा गीत लिखे इसमें लगभग 1700 गीत फिल्मों में आए। और राष्ट्र भक्ति के ही सौ से ज्यादा गीत हर देशवासी की जुबान पर चढ़ गए।

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प्रारंभिक जीवन और शिक्षा

ऐसे अमर गीतों के गीतकार कवि प्रदीप का जन्म 6 फरवरी 1915 को मध्य प्रदेश में उज्जैन जिले के बड़नगर में हुआ था। उनके पिता रामचंद्र द्विवेदी आर्य समाज से जुड़े थे। घर में राष्ट्रसेवा सांस्कृतिक गरिमा का वातावरण था। इसलिए प्रदीपजी मन और विचार बचपन से राष्ट्र और संस्कृति चेतना से भरे थे। उनकी प्रारंभिक शिक्षा बड़नगर में ही और उच्च शिक्षा लखनऊ में हुई।

गीत लेखन यात्रा में कवि गिरिजाशंकर दीक्षित का योगदान

कवि प्रदीप को कविताएं लिखने का शौक बचपन से था। वे एक दृश्य देखकर अथवा कोई प्रसंग सुनकर बहुत प्रभावी गीत या कविता रच देते थे। उनकी इसी विधा ने पढ़ाई के दौरान लखनऊ विश्वविद्यालय में लोकप्रिय हो गए। पढ़ाई के दौरान ही उनकी भेंट उस समय के एक प्रखर और प्रभाव शाली कवि गिरिजा शंकर दीक्षित से हुई। दीक्षित जी अपने समय में कवि सम्मेलनों के लोकप्रिय कवि और उनके शिक्षक भी थे। उनके मार्गदर्शन गीत जीवन की यात्रा आरंभ हुई।

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चल चल रे नौजवान... गीत से मिली लोकप्रियता 

प्रदीपजी ने 1939 में स्नातक परीक्षा उत्तीर्ण की और शिक्षक बनने की तैयारी की। साथ ही गीत रचना निरंतर रही। उनके शिक्षक दीक्षित जी के पिता बलभद्र प्रसाद जी भी अपने समय के लोकप्रिय गीतकार थे। और उनके कुछ गीत फिल्मों में आए। वे प्रदीप जी के गीतों से बहुत प्रभावित थे। उन्ही दिनों प्रदीपजी ने "चल चल रे नौजवान" एक गीत लिखा। दीक्षित जी ने यह गीत मुंबई भेज दिया। यह गीत एक फिल्म "नौजवान" में आ गया। फिल्म लोकप्रिय हुई और गीत भी। यह फिल्म 1940 में रिलीज हुई थी। इस गीत के साथ प्रदीप जी रातोंरात पूरे देश में लोकप्रिय हो गए। 

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वह गीत जिससे हिल गई अंग्रेजी सरकार

इसके बाद 1942 में उनका दूसरा गीत मानों "भारत छोड़ो आंदोलन" का एक मंत्र बन गया। यह गीत था "आज हिमालय की चोटी से फिर हमने ललकारा है "... यह गीत समाज को आह्वान करने वाला था, आंदोलन के दौरान उस समय हर गली चौराहे पर गाया गया। 1944 में उनके एक और गीत "दूर हटो ऐ दुनिया वालो, यह हिंदुस्तान हमारा है" ने फिर पूरे देश में तहलका मचा दिया। अंग्रेजी सरकार ने उनके गीतों को भड़काने वाला माना और गिरफ्तारी वारंट जारी हो गया। कवि प्रदीप गिरफ्तारी से बचने के लिए भूमिगत (अंडरग्राउंड) हो गए। बाद में फिल्म निर्माताओं ने मध्यस्थता की और प्रशासन को फिल्म स्क्रिप्ट के लिए इन गीतों की आवश्यकता बताई तब जाकर वारंट निरस्त हुआ।

अपने गीतों से दी राष्ट्र निर्माण की प्रेरणा

प्रदीप जी ने स्वतंत्रता के बाद जागृति जैसी फिल्मों के लिए नए अंदाज से गीत लिखे। "हम लाए हैं तूफान से किश्त निकल के" आज भी लोकप्रिय है। उन्होंने 1954 में बच्चों को समझाया कि "आओ बच्चों तुम्हें दिखाए झांकी हिंदुस्थान की"... इस गीत में भारत के गौरवमयी अतीत की मानों एक झांकी थी। 

ऐ मेरे वतन के लोगों... 

स्वतंत्रता की इस यात्रा के बीच 1962 में भारत चीन युद्ध आ गया। उस युद्ध में भारतीय सैनिकों ने कितनी विषम परिस्थिति में भारत राष्ट्र की रक्षा की। वे कहानियां दिल को दहलाने वाली है। सैनिकों के बलिदान पर उनका गीत "ऐ मेरे वतन के लोगों, जरा आंख में भर लो पानी" की रचना की। जिस भाव से प्रदीपजी ने इस गीत की रचना की उसी भावना से लता मंगेशकर ने गाया। इस गीत के बोल आज भी हृदय को छू जाते हैं, यह गीत देश भक्ति के गीतों में अग्रणी माना गया। भारत सरकार ने उन्हे "राष्ट्र कवि" के सम्मान से सम्मानित किया। यह गीत आज भी देशभक्ति के गीतों में प्रमुख स्थान रखता है।

"ऐ मेरे वतन के लोगों" गीत से जुड़ा कानूनी विवाद

26 जनवरी 1963 को आयोजित गणतंत्र दिवस समारोह में लता जी ने प्रधान मंत्री जवाहरलाल नेहरू की उपस्थिति में यह गीत गाया। नई दिल्ली में आयोजित इस राष्ट्रीय गणतंत्र समारोह में ऐसा कोई नहीं था जिसकी आंख में आंसू न आए हों। प्रदीप जी ने इस गीत की रॉयल्टी को सैनिकों की विधवा सहायता कोष यनि 'वॉर विडो फंड' में जमा करने की घोषणा की, लेकिन गीत के अधिकार रखने वाली कंपनी "एचएमवी" ने समय पर पैसा जमा नहीं किया। और मामला कोर्ट में गया। एक लंबी कानूनी लड़ाई के बाद 25 अगस्त 2005 को बॉम्बे हाईकोर्ट ने एचएमवी कंपनी को रॉयल्टी के बकाया के रूप में 1 मिलियन रुपए का भुगतान करने का आदेश दिया। 

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देशभक्ति खून में होती है...

देश भक्ति मानों प्रदीप जी के खून में थी। प्रदीपजी ने 1987 में कहा था कि "कोई भी आपको देशभक्त नहीं बना सकता, यह आपके खून में होती है। आप इसे देश की सेवा के लिए कैसे लाते हैं जो आपको अलग बनाता है।" सतत शब्द साधना और अपने गीतों से राष्ट्र साधना में रत प्रदीप जी ने अंततः 11 दिसंबर 1998 को 83 वर्ष की आयु में इस संसार से विदा ली। प्रदीप जी को शत शत नमन।

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