सुनो भाई साधो... अनुकंपा नियुक्ति भी एक फर्ज है

जाना सबको है पर जो अनुकंपा नियुक्ति दिलवाकर जाते हैं उन्हें सब याद रखते हैं। पुत्र पिता के नौकरी में रहते हुए मरने की कामना करने लगता है ताकि उसे अनुकंपा नियुक्ति मिल सके। इस व्यंग्य में जाने-माने व्यंग्यकार सुधीर नायक ने इसे मार्मिकता के साथ उकेरा है।

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The Sootr
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suno bhai sadho 12 october

Photograph: (The Sootr)

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सुधीर नायक

अनुकंपा नियुक्ति भी एक फर्ज है जिसकी अपेक्षा एक अच्छे पिता से की जाती है। सरकारी पिता का आखिरी फर्ज होता है अनुकंपा नियुक्ति दिलवाकर जाना। जो पिता यह फर्ज नहीं निभा पाते उनके पिछले सारे फर्जों पर पानी फिर जाता है।

बिना अनुकंपा नियुक्ति वाली तेरहवीं बुझी-बुझी सी दिखती है

उस दिन मैं एक पिता की तेरहवीं में था। चारों तरफ बुझा-बुझा सा माहौल था। साफ समझ में आ रहा था कि यह बिना अनुकंपा नियुक्ति वाली तेरहवीं है। अनुकंपा नियुक्ति वाली तेरहवीं अलग दिखती है। सबके मन में यही बात थी कि थोड़ा पहले चले जाते तो पिंटू को नौकरी मिल जाती। जाना तो था ही फालतू खींचते रहे। पिंटू मुंह फुलाए हुए है। पापा ने कभी कोई काम टाइम पर नहीं किया। सस्ते-सस्ते प्लॉट बिकते रहे तब सोते रहे और जब जमीन की कीमतें आसमान छूने लगीं तब यह दड़बा खरीदा।

एक दिन सबको जाना है। जब जाना ही है तो टाइम से चले जाते। गए तो इतने लेट गए। कब से बीमार चल रहे थे। रिटायरमेंट में साढ़े चार साल थे तब पहला अटैक आया था पर झेल गए। मुझे तो लगता है उन्होंने जानबूझकर किया। मुझे तो कभी प्यार किया ही नहीं। प्यार करते होते तो उसी समय न चले जाते। इस दुनिया में पांच साल और रहकर कौन से झंडे गाढ़ दिए।

मरे पापा जिंदा पापा से अच्छे लगते हैं

मोनू के पापा को देखो। सब काम टाइम पर किए। उनकी समय की पाबंदी की लोग मिसाल देते हैं। पूरी नौकरी की और रिटायरमेंट से ठीक छः महीने पहले इज्जत से चले गए। मोनू की लॉटरी लगा गए। यह होती है मोहब्बत। इकट्ठा पैसा, फटाफट नौकरी और साइड में मम्मी की पेंशन भी। एक झटके में चले गए। दवा-दारू में पैसा खर्च नहीं करवाया। लड़कियों वाले लाइन लगाए हुए हैं।

मोनू की मम्मी सीधे मुंह बात नहीं कर रहीं आजकल। मोनू भी कितना भाव खाने लगा है। जाना सबको है पर जो अनुकंपा नियुक्ति दिलवाकर जाते हैं उन्हें सब याद करते हैं। मरे पापा जिंदा पापा से अच्छे लगते हैं। इधर मौसी कह रहीं हैं कि ये पिंटू अपनी किस्मत में न जाने क्या लिखवाकर आया है? कहीं सफलता नहीं मिल रही इसको। क्या होगा इसका? आखिरी उम्मीद जीजाजी से ही थी। वह भी छः महीने पहले टूट गई थी।

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Sudhir Nayak

सुनो भाई साधो... इस व्यंग्य के लेखक मध्यप्रदेश के कर्मचारी नेता सुधीर नायक हैं

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