सुनो भाई साधो... साहित्य की आग और आहत होने का खेल

इस समय पढ़ने की आदत कम होती जा रही है, जिससे कुछ लोग लिखने का कीड़ा पकड़कर किताबें लिखने में जुट गए हैं। वे इस मौके का पूरा फायदा उठा रहे हैं, क्योंकि पढ़ने की बजाय लिखने का पुरस्कार मिलता है।

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Jitendra Shrivastava
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suno bhai sadho

Photograph: (thesootr)

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सुधीर नायक

साधो, यह बहुत अच्छा रहा कि लोगों ने पढ़ना बंद कर दिया। इससे कीड़े वालों की चांदी हो गई। इस समय कीड़े वाले फुल फॉर्म में हैं, साधो। जिन्हें लिखने का कीड़ा है वे दिन रात कागज काले करने में जुटे हुए हैं।

साधो जो जवानी के दिनों में चिट्ठियां तक दूसरों से लिखवाते थे अब वे सीधे ग्रंथ लिख रहे हैं।फिर ऐसा मौका आये न आये। भगवान ने मौका दिया है तो निचोड़ लो। प्रभु की लीला विचित्र है।ऐसा न हो कि लोग फिर से पढ़ने लगें।

भगवान के देर है, अंधेर नहीं

पढ़ने की आदत लौट आए। फिर उन्हें कौन पूछेगा? भगवान के यहां देर है, साधो, पर अंधेर नहीं है। भगवान सबको मौका देता है। इन दिनों मां सरस्वती कीड़े वालों पर मेहरबान हैं। ये कीड़े वालों का स्वर्णिम काल है।

हिंदी साहित्य के भावी इतिहास में भावी रामचंद्र शुक्ल इसे कीड़ा काल का नाम देंगे, मुझे ऐसा लगता है, साधो। यह इतना सुनहरा अवसर है कि कुछ भी घसीट दो। किसी को पढ़ना तो है नहीं। पहले जब लोग पढ़ते थे तब डर रहता था।

अब तो कौन पूछ रहा है तुमसे कि तुमने क्या गोदागादी कर डाली। बस, कुछ लिखा हुआ सा दिख रहा है इतना काफी है। लोग इतने में ही लेखक बन रहे हैं।

लौ बुझने से पहले भभकती है

साधो, कुछ तो इतने बड़े वाले हैं कि वे गोदागादी भी नहीं करते। उनके आदमी लगे हैं वे उनके लिए गोदागादी करते रहते हैं। उन्हें खर्चा मिलता है, साधो। साधो, रिटायर्ड अधिकारी और बुजुर्ग नेता मरने के पहले एक किताब जरूर लिखते हैं।

यह एक तरह का सर्टिफिकेट है, साधो कि अब किसी पद की उम्मीद नहीं बची। तुमने देखा होगा साधो, लौ बुझने के पहले एक बार भभकती है। किसी भी शक्ल में भभके पर भभकती जरूर है। कहीं-कहीं पर लौ किताब की शक्ल में भी भभकती है। 

कहां-कहां पर होना है आहत?

पढ़ना फालतू की बात है, साधो, असल चीज है लिखना। पुरस्कार लिखने पर मिलता है पढ़ने पर नहीं मिलता। साधो, अब तो आहत होने वाले भी किताब नहीं पढ़ते। उनके पास टाइम नहीं है वे बिना पढ़े ही आहत हो जाते हैं। कभी-कभी तो किताब लिखने वाले ही उन्हें बताते हैं कि आहत कहां-कहां पर होना है?

आहत होना बहुत जरूरी है, साधो। कुछ लोग आहत हो जाएं तो बहुत सारों को पता चल जाता है कि ऐसी भी कोई किताब है। अब देखो, साधो, तुम्हें तो मालूम ही है कि आजकल के बच्चे रामचरितमानस को बिल्कुल भूल गये थे। 

प्रतियां जले तो लेखक छा जाए

पिछले साल यूपी में कोई सज्जन सुबह उठे और अचानक रामचरितमानस से आहत हो गये। भगवान उनका भला करे। उन्होंने बड़ा उपकार किया। बच्चे अब तुलसीदास जी और रामचरितमानस को जानने लगे हैं। जिस चौपाई पर आहत हुए थे वह चौपाई ट्रेंड करने लगी। लोगों को रट गई। उन्होंने भले आहतभाव से किया, लेकिन भगवन्नाम का प्रचार किया, साधो। अजामिल की तरह उनकी भी मुक्ति होगी।

साधो, हर लेखक के दो सपने होते हैं। एक तो यह कि उसकी किताब का जोरदार विमोचन हो जाए और दूसरा यह कि उसकी किताब का कहीं पर दहन हो जाए। किताब की प्रतियां जल जाएं तो लेखक छा जाता है, साधो। छा जाने का बस यही उपाय बचा है, साधो। 

और... पुतला जले तो चमके आदमी

लेखक खुद माचिस लेकर घूमते हैं। उनका बस नहीं चलता नहीं तो वे खुद ही आहत हो जाते और अपनी किताब खुद ही जला देते। पर मजबूरी है। दूसरे से जलवाना जरूरी है।पर जलाने वालों के भी बड़े नखरे हैं, साधो।

ऐसा नहीं है कि मुंह उठाया और कुछ भी जला आये। वे भी गुणा-भाग कर नफा-नुकसान देखकर ही जलाते हैं। अपने एक भगत आहत होने का काम करते हैं। कभी जरूरत पड़े तो बताना, साधो। प्रतियां जलाने से लेकर केस लगाने तक पूरा पैकेज है। पुतला दहन का एक्स्ट्रा चार्ज करते हैं। हम सस्ते में करवा देंगे। चमक जाओगे, साधो। पुतला जल जाए तभी चमकता है आदमी।

Sudhir Nayak

सुनो भाई साधो... इस व्यंग्य के लेखक मध्यप्रदेश के कर्मचारी नेता सुधीर नायक हैं

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