सुनो भाई साधो... पैसे से रिश्ते और संस्कार दोनों बचाए जा सकते हैं

यह व्यंग्य समाज में पैसे की अहमियत पर जोर देता है, जहां एक साधो अपने विचार साझा करते हुए कहते हैं कि पैसे बचाने से न केवल संस्कार बल्कि रिश्ते भी बनाए जा सकते हैं। साधो का मानना है कि बच्चों को संस्कार बुक से नहीं, बल्कि पासबुक से आते हैं।

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The Sootr
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Photograph: (The Sootr)

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सुधीर नायक

साधो, अपने एक पुराने भगत कल रिटायर हो गए। मैं उन्हें समझा रहा था कि कुछ पैसा दबाकर रखना। बच्चों को पूरा मत थमा देना। साधो वे बुरा मान गए। उन्हें लगा कि मैं उन्हें माया मोह में फंसा रहा हूं। वे कहने लगे कि आप उल्टी शिक्षा दे रहे हैं। अब साधो तुम ही बताओ मैंने कौन सी गलत बात कह दी?

साधो मैंने उन्हें समझाया कि हर बाप के पास इतने पैसे जरूर होने चाहिए कि बेटा पैर छूता रहे। कम से कम पैर छुलवाने लायक तो बने रहो। साधो, पैसे से ही बापपन मेंटेन रहता है। साधो, पर्स है तो चरणस्पर्श है। साधो मैं माया-मोह में नहीं फंसा रहा हूं मैं तो अपनी संस्कृति बचा रहा हूं।

बच्चों का बचत से है गहरा नाता

गांठ भारी होगी तो बेटा पैर छूता रहेगा। बेटा पैर छूता रहेगा तो संस्कार बचे रहेंगे और संस्कार रहेंगे तो संस्कृति रहेगी। साधो, मैं कहता हूं कि भले ही अपने लिए मत बचाओ पर संस्कृति की रक्षा के लिए तो बचाओ। लोग पैसे बचाते नहीं और संस्कारों को बचाने की बात करते हैं।

साधो पैसे बचाए होते तो संस्कार भी बचे रहते। साधो लोग बच्चों को नाहक दोष देते हैं। कहते हैं बच्चे बिगड़ रहे हैं। साधो बच्चे नहीं बिगड़ रहे हैं लोग बिगड़ रहे हैं जो पैसे चपेटकर नहीं रखते। बच्चों का बचत से गहरा नाता है साधो। साधो लोग सोचते हैं कि बच्चों में बुक से संस्कार आएंगे।

पासबुक से आते हैं संस्कार

संस्कार बुक से नहीं आते पासबुक से आते हैं। पासबुक सबको पास रखती है। साधो मैं ज्यादा पढ़ा लिखा नहीं हूं। साधो मैं पहले ही बता चुका हूं कि मसि कागद छूओ नहीं कलम गही नहीं हाथ। साधो मैं तो इतना ही जानता हूं कि जो बुक पास रखे वो पासबुक। लोग देरी से जागते हैं।

अपने एक भगत हैं गुप्ता जी। जीवन भर धन की परवाह नहीं की। अब बुढ़ापे में एक-एक पैसा बचाते हैं। उस पैसे से नाती पोतों का सुख खरीदते हैं। सुख बिकता है, साधो। खरीदना पड़ता है। रिश्तों का सुख सरकारी रेवड़ी नहीं है जो फ्री में मिल जाएगी।

रिश्तों और किश्तों में बहुत नजदीकियां

साधो, रिश्तों और किश्तों में बहुत नजदीकियां हैं। किश्तें भरते रहो तो रिश्ते सधे रहते हैं। रिश्ते मजाक नहीं हैं। जेब का वजन कम करो तब रिश्तों में वजन आता है। कपड़े सिलने वाले बेवकूफ नहीं है साधो जो जेब ठीक दिल के ऊपर सिलते हैं। दिल का रास्ता जेब से होकर ही जाता है। 

दुनिया में मिलता सब है, साधो पर दाम लगते हैं। लोग शक्ति की पूजा करते हैं पर क्रयशक्ति को भूल जाते हैं। सारी शक्ति क्रयशक्ति से आती है, साधो।

सुनो भाई साधो... इस व्यंग्य के लेखक मध्यप्रदेश के कर्मचारी नेता सुधीर नायक हैं

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