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Photograph: (The Sootr)
सुधीर नायक
लोग फालतू बातें करते हैं। जिसको देखो वही कह रहा है कि देश में एकता नहीं बची। मुझे समझ में नहीं आता कि और कितनी एकता चाहिए इन लोगों को। चारों तरफ एकता ही एकता तो उतरा रही है। इतने बड़े बड़े खेल हो रहे हैं। क्या ये बिना एकता के हो रहे हैं।
मैं कहता हूं- पागलो! देश में जितनी एकता है आज है उतनी कभी नहीं रही। इतिहास उठाकर देख लो। पर तुम क्या उठाओगे। जब उठाने के दिन थे तब नहीं उठाया। स्कूल-कॉलेज में इतिहास नहीं उठाया तो अब क्या उठाओगे।
कुछ चीजों पर असहमति
सच्ची बात तो यह है कि अधिकांश चीजों पर अब राष्ट्रीय सहमति है। कुछ छोटी मोटी चीजों पर असहमति है वह भी दूर हो जायेगी और फिर इतने बड़े देश में इतनी असहमति तो चलती है।
खाने के मामले में सब एक
अब देखो, भूखे सब हैं। भूख पर पूर्ण सहमति है। खाना सभी को है। खाने के मामले में सब एक हैं। उत्तर दक्षिण पूर्व पश्चिम छोटे बड़े गोरे काले सब खाने की फिराक में हैं। क्या खाना है? इस पर भी कोई विरोध नहीं है।
सबकी फेवरेट डिश एक
देश को ही तो खायेंगे और क्या खायेंगे? सबकी पसंदीदा डिश देश ही है। कैसे खाना है? इस पर भी सबका मत एक ही है। सब काटकर खाना चाहते हैं। अब बताइए, विरोध कहां पर है? थोड़ी सी असहमति है तो इसी बात पर है कि कुछ लोग बड़े बड़े पीस खाना चाहते हैं और कुछ को छोटे छोटे पीस पसंद आते हैं।
कभी-कभी हो जाती है चिल्लाचोट
कुछ कह रहे हैं कि जल्दी करो। धर्म के चाकू से बड़े-बड़े पीस कर लो। दूसरे कुछ कह रहे हैं कि जल्दी क्या है? हम तो जाति के चाकू से बिल्कुल छोटे छोटे पीस करेंगे फिर खायेंगे। उसमें ज्यादा टेस्ट आता है। कभी कभी थोड़ी बहुत चिल्लाचोट इस बात पर भी हो जाती है कि तुम अकेले-अकेले खा रहे हो। वह साथ बिठा लेता है तो वह चिल्लाचोट भी खत्म हो जाती है।
देर सवेर आता है सबका नंबर
ऐसा भी होता है कि कोई बड़ी देर से खा रहा है तो दूसरों को कोफ्त होती है। देर सवेर उनका भी नंबर आ जाता है तो वे भी खाने में जुट जाते हैं। गुस्सा शांत हो जाता है। सभी एक होकर प्रेमपूर्वक भोजन कर रहे हैं। अब इतने बड़े भंडारे में थोड़ा बहुत शोरगुल तो चलता है। लेकिन यह पक्का है कि आगे पीछे सबको मिलेगा। भूखा कोई नहीं रहेगा।
सुनो भाई साधो... इस व्यंग्य के लेखक मध्यप्रदेश के कर्मचारी नेता सुधीर नायक हैं |
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