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Photograph: (The Sootr)
सुधीर नायक
मेरे पिताजी इसी बात का टेंशन पाले रहे कि लोग क्या कहेंगे? और मैं इस टेंशन में हूं कि लोग कब कहेंगे? लोग कुछ कहते ही नहीं। लोग कसम खाकर बैठे हैं कि हम कुछ नहीं कहेंगे। बहुत सारे काम तो इसी चक्कर में हो जाते थे कि लोग कुछ कहेंगे। अब वे सारे काम बंद हैं।
सोनी जी को लड़कों ने घर से निकाल दिया बेचारे लड़की के घर पड़े हुए हैं। लोगों ने कुछ नहीं कहा। जो बापों को भगाने के चक्कर में हैं वे गुपचुप गुप्ता जी के लड़कों से नजदीकियां बढ़ा रहे हैं।
खुलेआम कट रहे जंगल
मल्होत्रा जी खुलेआम जंगल कटवा रहे हैं। लोग कुछ नहीं कहते। उलटे सस्ती लकड़ी के लिए मल्होत्रा जी के चक्कर काटते हैं। लोगों ने इस कदर मौन साधा है कि अब छोटी मोटी चीजों पर भी कुछ नहीं कहते।
गली का तीसरा चक्कर
उस दिन जब रमेश ने हमारी गली का तीसरा चक्कर लगाया तब मेरा ध्यान गया कि गाड़ी नई है। मैंने गली वालों से कहा- भाई कुछ तो कह दो। तीसरा चक्कर है बेचारे का। और भी तो गलियां हैं। क्या इसी गली का चक्कर लगवाते रहोगे?
लोग बोले- कहा कहें?
लोग बोले- क्या कहें? मैंने समझाया- कुछ भी कह दो, रट्टा खत्म हो। झूठमूठ के ही सही, जरा सा जल जाओ। जलन भरा कुछ बोल दो। न जलो तो तारीफ कर दो। वो भी न हो तो कुछ पूछताछ ही कर डालो। कितने की है, कैसी है। कुछ तो कह दो। आखिर मोहल्ले का आदमी है। उसका इतना तो हक तो बनता है कि मोहल्ले वालों से कुछ कहलवा ले। इस गली वाले फुर्सत कर दें तो वह दूसरी गली में जाए। बड़ी मुश्किल से वर्मा जी कुछ कहने तैयार हुए सो उन्होंने कबाड़ा कर दिया। वे कह उठे- रमेश, संभलकर चलाना, भाई। कल इसी गाड़ी का बड़ा भयानक एक्सीडेंट हुआ एमपी नगर में। मैं वहीं था। फिर वे एक्सीडेंट की डिटेलिंग पर आ गए- चारों तरफ खून ही खून, पुलिस, भीड़, वीडियो बनाते लड़के, समाज का पतन वगैरह। मुझे लगता है फिर गाड़ी चलाने की उसकी हिम्मत नहीं पड़ी क्योंकि थोड़ी देर बाद मैंने उसे पैदल जाते देखा।
सुनो भाई साधो... इस व्यंग्य के लेखक मध्यप्रदेश के कर्मचारी नेता सुधीर नायक हैं |
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