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Photograph: (The Sootr)
Be इंडियन Buy इंडियन: डाबर की कहानी भारतीय उद्यमिता, आयुर्वेद और निरंतरता की गहराई से जुड़ी है। 1884 में बंगाल के एक अनुभवी आयुर्वेदिक चिकित्सक डॉ. एस.के. बर्मन की एक छोटी सी सोच से शुरू हुआ ये ब्रांड आज न सिर्फ घरेलू, बल्कि अंतरराष्ट्रीय बाजार में भारतीयता का परिचायक है।
इस आर्टिकल में आज हम जानेंगे डाबर के आरंभिक दिनों से लेकर मौजूदा सफलता, बाजार में इसकी स्थिति, ब्रांड का मूल मंत्र, संघर्षों और सीखों तक सभी पहलुओं...
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कैसे हुई डाबर की शुरुआत?
1880 के दशक का भारत - समय कठिन था, बीमारियां आम और इलाज साधनों से दूर। कोलकाता (तत्कालीन कलकत्ता) के डॉक्टर शिवकृष्ण बर्मन ने एक सपना देखा: आम लोगों को प्राकृतिक और असरदार इलाज उपलब्ध कराया जाए।
डॉ. बर्मन शोध और सेवा में विश्वास रखते थे। वे अपनी साइकिल पर गांव-गांव जाकर मलेरिया, हैजा और कब्ज जैसी बीमारियों का प्राकृतिक इलाज लोगों तक पहुँचाने लगे। यही से उन्हें 'Daktar Burman' उपनाम मिला और यहीं से 'Dabur' नाम जन्मा – डॉक्टर और बर्मन का मिलाजुला रूप।
जल्द ही इन हर्बल दवाओं की मांग बढ़ गई। 1896 में डाबर ने अपनी पहली मैन्युफैक्चरिंग यूनिट खोली। 1919 में रिसर्च लैब्स बनीं, जिससे क्वालिटी और वैज्ञानिकता के प्रति डाबर की निष्ठा और गहरी हुई। 1936 में 'Dabur India (Dr. S.K. Burman) Pvt. Ltd.' की नींव रखी गई।
डाबर की ब्रांड की शुरुआती संघर्ष की कहानी
हर सपने का सफर संघर्षों से होकर ही जाता है। डाबर भी इससे अलग नहीं थी। प्रारंभिक वर्षों में सीमित संसाधन, अनजान बाजार और जागरूकता की कमी थी। स्वतंत्रता आंदोलन और भारतीय बाजार में विदेशी ब्रांड्स के विस्तार ने स्थिति और जटिल बना दी।
कर्मचारियों की हड़ताल के चलते 1960 के दशक में डाबर के संचालक जी.सी. बर्मन को कोलकाता से दिल्ली कारखाना शिफ्ट करना पड़ा - “कोलकाता का नुकसान, दिल्ली का फायदा बन गया”।
1970–80 के दशक में डाबर को हिंदुस्तान यूनिलीवर, पीएंडजी जैसी वैश्विक कंपनियों से कड़ी प्रतिस्पर्धा झेलनी पड़ी। उत्पादों की विविधता कम थी और डिस्ट्रीब्यूशन भी सीमित था, खासतौर पर ग्रामीण भारत में।
2000 के बाद डाबर को एक और चुनौती मिली - स्पर्धी कंपनियों की व्यापक रेंज और विज्ञापन बजट। कंपनी का ऑपरेशन और सप्लाई चेन सुस्त थी, जिसके कारण तेजी से बदलते बाजार की गति को पकड़ना मुश्किल हो गया।
डाबर ब्रांड की सफलता की कहानी
संघर्षों को अवसर में बदलते हुए, डाबर ने कई अहम कदम उठाए। परिवार से बाहर पेशेवर मैनेजमेंट लाकर (1998) प्रबंधन में दूरदृष्टि और दक्षता जोड़ दी। रिसर्च और इनोवेशन को ब्रांड ने अपनी आत्मा बना लिया। क्वालिटी पर कभी समझौता नहीं किया। च्यवनप्राश, आमला हेयर ऑयल, हाजमोला, पुदीन हरा, डाबर हनी जैसे उत्पाद हर घर की जरूरत और 'हेल्दी' विकल्प के रूप में स्थापित हुए।
1990 के दशक में 'रियल' जूस के लॉन्च ने डाबर को फ्रूट बेवरेज सेगमेंट में प्रमुख ब्रांड बना दिया। इसके चलते कंपनी की फूड्स कैटेगरी में पहचान बढ़ी। बीते दशक में डाबर ने ब्यूटी, स्किनकेयर, पर्सनल और होम केयर में भी कई अधिग्रहण किए (बाबूल, ओडोनिल, फेम, बादशाह मसाला, सेसा केयर आदि)।
ब्रांड ने अपनी ग्रामीण और शहरी उपस्थिति दोनों को मजबूत किया। ताकतवर डिस्ट्रीब्यूशन नेटवर्क, डिजिटल मार्केटिंग, रिसर्च आधारित इनोवेशन और ग्राहक केंद्रितता ने डाबर को मजबूती दी।
आज बाजार में डाबर की क्या स्थिति है?
डाबर इंडिया लिमिटेड आज भारत ही नहीं, दुनिया के 100+ देशों में व्यवसाय कर रहा है। यह भारत की सबसे बड़ी आयुर्वेद/नेचुरल उत्पाद कंपनी है। कंपनी की 2024–25 में नेट इनकम लगभग 3240 करोड़ रुपए रही और इसका मार्केट कैप करीब 95000 करोड़ रुपए है, जिससे यह भारतीय FMCG सेक्टर की टॉप कंपनियों में है।
व्यक्तिगत देखभाल, हेल्थ, फूड्स और होम केयर सेगमेंट में डाबर की प्रमुखता बनी हुई है। इसके आमला हेयर ऑयल, च्यवनप्राश, हनी, रियल जूस, हाजमोला, पुदिन हरा, फेम जैसी प्रोडक्ट रेंज रोजमर्रा के जीवन का हिस्सा बनी है।
ब्रांड डाबर की मार्केट पॉजिशन
भारतीय बाजार में डाबर अब भी आयुर्वेद- आधारित FMCG कंपनियों की बुलंद मिसाल है। प्रति वर्ष करीब 12,600 करोड़ से ज्यादा का कंसॉलिडेटेड रेवेन्यू, 17% रिटर्न ऑन इक्विटी और लगभग 62% तक का लाभांश वितरण (2025) ये आंकड़े कंपनी की वित्तीय मजबूती दर्शाते हैं। डाबर, हिंदुस्तान यूनिलीवर, गोदरेज, पीएंडजी आदि के साथ टॉप-5 FMCG कंपनियों में शामिल है।
डाबर ब्रांड का मूल मंत्र
डाबर का मूलमंत्र है “विज्ञान और परंपरा का मेल”- ”Science in Ayurveda”। डाबर ने हर चरण में इनोवेशन के साथ प्राचीन ज्ञान और प्राकृतिकता को साथ रखा। कंपनी 'स्वस्थ भारत' और हर्बल-आधारित उत्पादों को आमजन तक लाने की विचारधारा के लिए जानी जाती है।
ग्राहक की जरूरतों को प्राथमिकता, गुणवत्ता से कोई समझौता नहीं, एवं विश्वसनीयता ब्रांड का स्थायी मंत्र रहा है। डाबर की एक खासियत है- हर प्रोडक्ट के पीछे रिसर्च-आधारित क्वालिटी और किफायती मूल्य।
इस कहानी से क्या सीखा जा सकता है
डाबर की कहानी बताती है:
- सीमित संसाधन और संघर्ष के बावजूद निरंतरता और सच्चे उद्देश्य से ब्रांड को बुलंदी तक पहुंचाया जा सकता है।
- नवाचार (Innovation), रिसर्च, और परंपरा को साथ लेकर चलना, हर बदलते समय में भी ब्रांड को प्रासंगिक बनाए रखना संभव है।
- उपभोक्ता की आवश्यकताओं और बाजार की बदलती मांगों पर पैनी नजर रखना जरूरी है।
- लोगों का विश्वास अर्जित करना किसी भी ब्रांड की सबसे बड़ी पूंजी है - “ग्राहक पहले” का मंत्र।
- किसी भी भारतीय ब्रांड के लिए संरचनात्मक बदलाव और पेशेवर प्रबंधन को अपनाना लंबी सफलता की कुंजी है।
FAQ
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