रेबीज जैसी लाइलाज बीमारी के मरीजों के लिए ‘निष्क्रिय इच्छामृत्यु’ (Passive Euthanasia) का मुद्दा एक बार फिर सुप्रीम कोर्ट में उठाया गया है। एनजीओ 'ऑल क्रिएचर्स ग्रेट एंड स्मॉल' ने इस मामले में याचिका दायर कर मरीजों के लिए एक विशेष प्रक्रिया की मांग की है। कोर्ट ने सुनवाई की घोषणा करते हुए कहा कि यह मामला दो सप्ताह में विचाराधीन होगा।
रेबीज एक खतरनाक बीमारी है जिसकी मृत्युदर 100 प्रतिशत है। इस बीमारी में मरीज अत्यधिक दर्द और मानसिक तनाव से गुजरता है। सुप्रीम कोर्ट में एक जनहित याचिका के माध्यम से इस बीमारी से पीड़ित लोगों के लिए 'निष्क्रिय इच्छामृत्यु' का अधिकार मांगा गया है।
सुप्रीम कोर्ट ने 2020 में केंद्र सरकार से मांगा था जवाब
यह याचिका एनजीओ 'ऑल क्रिएचर्स ग्रेट एंड स्मॉल' द्वारा दायर की गई थी, जिसमें दिल्ली हाईकोर्ट के 2019 के फैसले को चुनौती दी गई है। दिल्ली हाईकोर्ट ने उस समय रेबीज को 'असाधारण बीमारी' मानने से इनकार कर दिया था। सुप्रीम कोर्ट ने इस पर 2020 में केंद्र सरकार को नोटिस जारी कर जवाब मांगा था।
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रेबीज को विशेष श्रेणी में रखने का अनुरोध
याचिका में मांग की गई है कि ऐसे गंभीर मामलों में मरीजों या उनके परिवार को यह अधिकार मिलना चाहिए कि वे डॉक्टरों से जीवन रक्षक उपकरणों को हटाने का अनुरोध कर सकें। याचिकाकर्ताओं ने तर्क दिया है कि रेबीज के दर्दनाक लक्षणों को देखते हुए इसे विशेष श्रेणी में रखा जाना चाहिए।
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सुप्रीम कोर्ट ने 2018 में इच्छामृत्यु को दी थी मान्यता
सुप्रीम कोर्ट ने 2018 में 'लिविंग विल' के तहत निष्क्रिय इच्छामृत्यु को कानूनी मान्यता दी थी। इस फैसले के अनुसार असाध्य रोगों से पीड़ित लोग अब अपनी इच्छा से जीवन रक्षक प्रणाली हटाने का अनुरोध कर सकते हैं। हालांकि, रेबीज के मामलों में अब तक इस प्रावधान का उपयोग नहीं किया गया है।
वरिष्ठ अधिवक्ता सोनिया माथुर और अधिवक्ता नूर रामपाल ने कोर्ट में इस याचिका का पक्ष रखा। उन्होंने कोर्ट से अनुरोध किया कि रेबीज के मामलों को सामान्य इच्छामृत्यु के मामलों से अलग रखा जाए। कोर्ट ने इस पर विचार करते हुए दो सप्ताह में सुनवाई करने का निर्णय लिया है।