वृंदावन की टेढ़ी-मेढ़ी गलियों में गूंजती भगवान श्रीकृष्ण की लीलाओं की स्मृति आज एक विवाद की परछाई में घिर गई है। उत्तर प्रदेश सरकार की महत्वाकांक्षी योजना बांके बिहारी मंदिर कॉरिडोर अब सिर्फ एक विकास परियोजना नहीं, बल्कि धार्मिक, सामाजिक और सांस्कृतिक टकराव का प्रतीक बनती जा रही है।
करीब 5 एकड़ क्षेत्र में प्रस्तावित यह कॉरिडोर दर्शनार्थियों की सुविधा के नाम पर मंदिर मार्ग को चौड़ा करेगा। तीन प्रवेश द्वार बनाए जाएंगे। 30 हजार वर्गमीटर में पार्किंग क्षेत्र विकसित किया जाएगा। प्लान के तहत तीन चरणों में मंदिर क्षेत्र, ऊपरी और निचले हिस्से का पुनर्विकास किया जाना प्रस्तावित है।
अब इस आधुनिकीकरण को गोस्वामी समाज सीधे तौर पर वृंदावन की आत्मा पर हमला बता रहा है। गोस्वामियों का कहना है कि मंदिर वृंदावन की जीवंत परंपरा है। उन्होंने प्रशासन को स्पष्ट कर दिया है कि यदि सरकार जबरदस्ती करेगी तो वे ठाकुरजी को लेकर यहां से पलायन कर जाएंगे।
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ठाकुरजी की 7 बार स्थापना
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इस विरोध के पीछे सिर्फ वर्तमान भावनाएं नहीं, पांच शताब्दियों की परंपरा भी खड़ी है। बांके बिहारी जी की मूर्ति का वर्तमान मंदिर 1864 में स्थापित हुआ था, लेकिन इससे पहले ठाकुरजी कई बार अलग-अलग स्थानों पर विराजमान रहे।
मान्यता है कि श्रीविग्रह सबसे पहले वृंदावन के निधि वन में प्रकट हुए। जब औरंगजेब ने ब्रज पर हमला किया और श्रीकृष्ण जन्मभूमि को ध्वस्त कर शाही ईदगाह बनवाई, तब बांके बिहारी जी को छिपाकर करौली और भरतपुर (राजस्थान) ले जाया गया।
कुल मिलाकर सात स्थानों पर ठाकुरजी की स्थापना हुई। हर बार संकट में उनके सेवायत पुजारियों ने मूर्ति को सुरक्षित स्थान पर विराजमान कराया। गोस्वामी समाज इसी परंपरा का हवाला देते हुए कह रहा है कि अगर वृंदावन में व्यवस्था नहीं रही, तो इतिहास की पुनरावृत्ति होगी।
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मथुरा जिला प्रशासन के साथ हालिया बातचीत में गोस्वामी समाज ने विरोध दर्ज कराया है। इधर, सरकार की ओर से कहा गया है कि कॉरिडोर से श्रद्धालुओं को राहत मिलेगी। मंदिर तक पहुंचने वाले संकरे रास्तों में अक्सर भारी भीड़ के कारण हादसे होते हैं। रंग भरनी एकादशी, होली, जन्माष्टमी जैसे पर्वों पर यहां लाखों भक्त उमड़ते हैं। ऐसे में सुव्यवस्थित कॉरिडोर जरूरी कदम है।
सरकार यह भी कह रही है कि दुकानदारों और मकान मालिकों को मुआवजा दिया जाएगा। दुकान के बदले दुकान भी दी जाएगी, लेकिन सेवायतों को ट्रस्ट के गठन पर ऐतराज है।
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