कब से शुरू हुआ योग, कैसे मिली अंतरराष्ट्रीय पहचान, जानें सबकुछ

शास्त्रों अनुसार योग का प्रारंभ भगवान शिव से हुआ। इसलिए ही शिव को आदि योगी या आदि गुरु कहा जाता है। भगवान शिव के बाद ऋषि-मुनियों से योग का प्रारंभ माना जाता है।

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Ravi Singh
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सबसे पहले योगशब्द का उल्लेख ऋग्वेद में मिलता है। इसके बाद कई उपनिषदों में भी इसका जिक्र किया गया है। शास्त्रों अनुसार योग का प्रारंभ भगवान शिव से हुआ। इसलिए ही शिव को आदि योगी या आदि गुरु कहा जाता है। भगवान शिव के बाद ऋषि-मुनियों से योग का प्रारम्भ माना जाता है। तो वहीं इसके बाद भगवान कृष्ण, महावीर जी औ भगवान गौतम बुद्ध ने अपने-अपने तरह से योग का विस्तार किया। इतना ही नहीं योग से जुड़े सबसे प्राचीन ऐतिहासिक साक्ष्य सिन्धु घाटी सभ्यता से मिली वो वस्तुए हैं जिनमें योग के विभिन्न शारीरिक मुद्राओं और आसन को दर्शाया गया है।

योग विद्या में शिव हैं आदि योगी 

योग की परम्परा अत्यन्त प्राचीन है और इसकी उत्‍पत्ति हजारों वर्ष पहले हुई थी। ऐसा माना जाता है कि जब से सभ्‍यता शुरू हुई है तभी से योग किया जा रहा है। अर्थात प्राचीनतम धर्मों या आस्‍थाओं ( faiths ) के जन्‍म लेने से काफी पहले योग का जन्म हो चुका था। योग विद्या में शिव को आदि योगी तथा आदि गुरू माना जाता है।

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वैदिक ऋषि-मुनियों से ही योग का प्रारंभ 

भगवान शंकर के बाद वैदिक ऋषि-मुनियों से ही योग का प्रारम्भ माना जाता है। बाद में कृष्ण, महावीर और बुद्ध ने इसे अपनी तरह से विस्तार दिया। इसके पश्चात पतञ्जलि ने इसे सुव्यवस्थित रूप दिया। इस रूप को ही आगे चलकर सिद्धपंथ, शैवपंथ, नाथपंथ, वैष्णव और शाक्त पंथियों ने अपने-अपने तरीके से विस्तार दिया।

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 सिन्धु घाटी सभ्यता से प्राप्त वस्तुएँ

योग से सम्बन्धित सबसे प्राचीन ऐतिहासिक साक्ष्य सिन्धु घाटी सभ्यता से प्राप्त वस्तुएँ हैं जिनकी शारीरिक मुद्राएँ और आसन उस काल में योग के अस्तित्व के प्रत्यक्ष प्रमाण हैं। योग के इतिहास पर यदि हम दृष्टिपात करे तो इसके प्रारम्भ या अन्त का कोई प्रमाण नही मिलता, लेकिन योग का वर्णन सर्वप्रथम वेदों में मिलता है और वेद सबसे प्राचीन साहित्य माने जाते है।

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पूर्व वैदिक काल (ईसा पूर्व 3000 से पहले)

अभी हाल तक पश्चिमी विद्वान ये मानते आये थे कि योग का जन्म करीब 500 ईसा पूर्व हुआ था जब बौद्ध धर्म का प्रादुर्भाव हुआ। लेकिन हड़प्पा और मोहनजोदड़ो में जो उत्खनन हुआ, उससे प्राप्त योग मुद्राओं से ज्ञात होता है कि योग का चलन 5000 वर्ष पहले से ही था।

वैदिक काल (3000 ईसा पूर्व से 500 ईसा पूर्व)

वैदिक काल में एकाग्रता का विकास करने के लिए और सांसारिक कठिनाइयों को पार करने के लिए योगाभ्यास किया जाता था। पुरातन काल के योगासनों में और वर्तमान योगासनों में बहुत अन्तर है। इस काल में यज्ञ और योग का बहुत महत्व था। ब्रह्मचर्य आश्रम में वेदों की शिक्षा के साथ ही शस्त्र और योग की शिक्षा भी दी जाती थी।

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पूर्वशास्त्रीय काल (500 ईसा पूर्व से 200 ईसा पूर्व तक)

उपनिषदों, महाभारत और भगवद्‌गीता में योग के बारे में बहुत चर्चा हुई है। भगवद्गीता में ज्ञान योग, भक्ति योग, कर्म योग और राज योग का उल्लेख है। गीतोपदेश में भगवान श्रीकृष्ण स्वयं अर्जुन को योग का महत्व बताते हुए कर्मयोग, भक्तियोग व ज्ञानयोग का वर्णन करते हैं। 

शास्त्रीय काल (200 ईसा पूर्व से 500 ई)

इस काल में योग एक स्पष्ट और समग्र रूप में सामने आया। पतञ्जलि ने वेद में बिखरी योग विद्या को 200 ई.पू. पहली बार समग्र रूप में प्रस्तुत किया। उन्होने सार रूप योग के 195 सूत्र संकलित किए। पतंजलि सूत्र का योग, राजयोग है। इसके आठ अंग हैं: यम (सामाजिक आचरण), नियम (व्यक्तिगत आचरण), आसन (शारीरिक आसन), प्राणायाम (श्वास विनियमन), प्रत्याहार (इंद्रियों की वापसी), धारणा (एकाग्रता), ध्यान (मेडिटेशन) और समाधि। पतंजलि योग में शारीरिक मुद्राओं एवं श्वसन को भी स्थान दिया गया है लेकिन ध्यान और समाधि को अधिक महत्त्व दिया गया है। योगसूत्र में किसी भी आसन या प्राणायाम का नाम नहीं है।

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मध्ययुग (500 ई से 1500 ई)

इस काल में पतंजलि योग के अनुयायियों ने आसन, शरीर और मन की सफाई, क्रियाएँ और प्राणायाम करने को अधिक से अधिक महत्व देकर योग को एक नया दृष्टिकोण या नया मोड़ दिया। योग का यह रूप हठयोग कहलाता है। इस युग में योग की छोटी-छोटी पद्धतियाँ शुरू हुईं।

आधुनिक काल

स्वामी विवेकानन्द ने शिकागो के धर्म संसद में अपने ऐतिहासिक भाषण में योग का उल्लेख कर सारे विश्व को योग से परिचित कराया। महर्षि महेश योगी, परमहंस योगानन्द, रमण महर्षि जैसे कई योगियों ने पश्चिमी दुनिया को प्रभावित किया और धीरे-धीरे योग एक धर्मनिरपेक्ष, प्रक्रिया-आधारित धार्मिक सिद्धान्त के रूप में दुनिया भर में स्वीकार किया गया।

स्वामी विवेकानंद ने राज योग को लोकप्रिय बनाया

स्वामी रामकृष्ण परमहंस के शिष्य स्वामी विवेकानंद ने राज योग को पश्चिमी देशों में लोकप्रिय बनाया। यह वास्तव में योग के जनक महर्षि पतंजलि के योगसूत्र का ही आधुनिक रूपांतरण है। स्वामी विवेकानंद उन पहले भारतीय आचार्यों में से एक थे, जिन्होंने महर्षि पतंजलि के योग सूत्रों का भाष्य और अनुवाद किया। उन्होंने योग की भव्यता का वर्णन राजयोग नाम की अपनी किताब में किया है।

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वास्तव में महर्षि पतंजलि ने योग का वर्णन आठ अंगों के रूप में किया है, जिन्हें अष्टांग कहा जाता है। ये हैं यम यानी संयम, नियम यानी पालन, आसन यानी योग के आसन, प्राणायाम यानी सांस पर नियंत्रण, प्रत्याहार यानी इंद्रियों को वापस लेना, धारणा यानी एकाग्रता, ध्यान और समाधि।

जैन धर्म की प्रतिज्ञाएं और बौद्ध धर्म के आष्टांगिक मार्ग भी योगसूत्र में समाहित

जैन धर्म की पांच प्रतिज्ञाएं और भगवान बुद्ध के आष्टांगिक मार्ग भी पतंजलि योगसूत्र में समाहित मिलते हैं। वैसे महर्षि पतंजलि के अष्टांगों में से आधुनिक समय में तीन ही मुद्राओं आसन, प्राणायाम और ध्यान को प्रमुखता दी जाती है। वैसे तो 84 प्राणायाम प्रमुख हैं, पर आजकल इनमें भी अनुलोम-विलोम, भस्त्रिका, कपालभाति, उद्गीत, नाड़ीशोधन, भ्रामरी, बाह्य और प्रणव प्राणायाम का ही अधिक महत्व है। आधुनिक काल (1700 से 1900 ईस्वी) में महर्षि रमन, रामकृष्ण परमहंस, परमहंस योगानंद के जरिए जिस योग का विकास हुआ, वह भी राज योग ही है।

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वेदांत के प्रवर्तक थे आदि शंकराचार्य, रामानुज और माधवाचार्य

इसी दौर में वेदांत, भक्तियोग, नाथ योग और हठ योग का भी विकास हुआ. ज्ञानयोग के एक स्रोत को ही वेदांत कहा जाता है, जो किसी भी व्यक्ति को ज्ञान हासिल करने के लिए प्रोत्साहित कहता है। इसका मुख्य स्रोत उपनिषद हैं. वास्तव में वैदिक साहित्य का अंतिम भाग उपनिषद हैं, इसीलिए इसको वेदांत कहा जाता है।

वेदांत की भी तीन शाखाएं प्रमुख रूप से सामने आती हैं। इनमें अद्वैत वेदांत, विशिष्ट अद्वैत और द्वैत शामिल हैं. इन तीनों शाखाओं के प्रवर्तक थे आदि शंकराचार्य, रामानुज और माधवाचार्य। समकालीन समय में आचार्य प्रशांत भारत में वेदांत दर्शन के प्रचार-प्रसार में लगे हैं. हालांकि, देश से बाहर उनके बारे में लोगों को अभी कम जानकारी है।

तिरुमलाई कृष्णामाचार्य ने हिमालय की गुफा में सीखा था योगसूत्र

योग की यात्रा करते हुए जब हम 20वीं सदी में पहुंचते हैं तो सामने आते हैं आधुनिक योग के जनक तिरुमलाई कृष्णामाचार्य, जिनका जन्म 18 नवंबर 1888 को तत्कालीन मैसूर राज्य के चित्रदुर्ग जिले में हुआ था।

तिरुमलाई कृष्णामाचार्य ने छह वैदिक दर्शनों में डिग्री हासिल करने के साथ ही योग और आयुर्वेद की भी पढ़ाई की थी. उन्होंने हिमालय की गुफा में रहने वाले योग आचार्य राममोहन ब्रह्मचारी से पतंजलि का योगसूत्र सीखा था।

गुफा में तिरुमलाई कृष्णामाचार्य सात सालों तक रहे. लौट कर वह योग के प्रचार-प्रसार में जुट गए। उन्होंने योग की वैदिक तकनीकों के साथ ही साथ पश्चिमी ध्यान की अवधारणा भी पेश की थी। साल 1934 में उन्होंने योग मकरंद नामक किताब लिखी, जिसमें ध्यान की पश्चिमी तकनीकों के बारे में बताने के साथ-साथ योग के उपयोग को बढ़ावा दिया। उन्होंने ही हठ योग की अवधारणा से देश के लोगों को पहली बार परिचित कराया था। हम पहले ही बता चुके हैं कि इसी हठ योग को आधुनिक योग कहा जाता है।

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स्वामी कुवलयानन्द ने योग पर वैज्ञानिक रिसर्च की थी

आधुनिक काल के एक और योगाचार्य स्वामी कुवलयानन्द का जन्म 30 अगस्त 1883 को हुआ था। उन्होंने योग को लेकर साल 1920 में वैज्ञानिक रिसर्च शुरू की और साल 1924 में पहली बार योग मीमांसा नाम का पहला वैज्ञानिक जर्नल प्रकाशित किया था। स्वामी कुवलयानन्द ने यौग की दो क्रियाओं उड़ियानबंध और नेति पर ज्यादा से ज्यादा प्रयोग किए थे।

साल 1924 में ही उन्होंने कैवल्यधाम स्वास्थ्य एवं योग अनुसंधान केन्द्र की स्थापना की थी, जहां योग को लेकर उनकी ज्यादातर रिसर्च हुई। इसके बाद ही आधुनिक योग पर उनका अच्छा-खासा प्रभाव दिखने लगा। उन्होंने लोनावला में पहले यौगिक अस्पताल की भी स्थापना की थी।

15 अगस्त 1872 को कलकत्ता (अब कोलकाता) में जन्मे अरविंदो घोष को ही हम लोग श्री अरविंदो के नाम से जानते हैं। वह स्वाधीनता सेनानी थे तो दार्शनिक, कवि और योगी भी। उन्होंने आध्यात्मिक विकास के जरिए संसार को ईश्वरीय अभिव्यक्ति के रूप में स्वीकार किया था। यानी उन्होंने नव्य वेदांत दर्शन को प्रतिपादित किया था।

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महर्षि महेश योगी ने दुनिया को भावातीत ध्यान से परिचित कराया

महर्षि महेश योगी ने ट्रांसिडेंटल मेडिटेशन यानी भावातीत ध्यान को प्रतिपादित किया और इसे पूरी दुनिया तक पहुंचाया। अमेरिका से विदेश यात्रा शुरू कर हॉलैंड तक पहुंचाया और फिर वहीं स्थायी निवास बना लिया था। महर्षि महेश योगी का जन्म 12 जनवरी 1918 को छत्तीसगढ़ में हुआ था और उन्होंने इलाहाबाद विश्वविद्यालय से फिजिक्स में ग्रेजुएशन किया था।

इसके बाद 13 साल ज्योतिर्मठ के शंकराचार्य स्वामी ब्रह्मानंद सरस्वती के पास रहकर शिक्षा ग्रहण की और उनकी मौजूदगी में रामेश्वरम् में 10 हजार बाल ब्रह्मचारियों को आध्यात्मिक योग और साधना की दीक्षा दी थी। साल 1957 से उन्होंने भावातीत ध्यान का आंदोलन चलाया और साल 1968 में रॉक बैंड बीटल्स के सदस्य उनके आश्रम में पहुंचे तो भावातीत ध्यान की गूंज पूरी दुनिया तक सुनाई पड़ने लगी।

बीकेएस अयंगर ने की थी अयंगर योग की स्थापना

बीकेएस अयंगर यानी बेल्लूर कृष्णमचारी सुंदरराज अयंगर का जन्म 14 दिसम्बर 1918 को हुआ था। उन्होंने अयंगर योग की स्थापना की और इसे पूरी दुनिया तक पहुंचाया। आधुनिक ऋषि के रूप में जाने जाने वाले बीकेएस अयंगर ने साल 1975 में योग विद्या नाम से एक संस्थान की स्थापना की और फिर देखते ही देखते देश-दुनिया में इसकी 100 से अधिक शाखाएं खोलीं। समकालीन समय में भारतीय योग को यूरोप में फैलाने वालों में उनका नाम अग्रणी है।

इनके अलावा श्री योगेंद्र, स्वामीराम, आचार्य रजनीश, पट्टाभिजोइस और स्वामी सत्येंद्र सरस्वती जैसी महान हस्तियों ने पूरी दुनिया में योग को फैलाया। बीकेएस अयंगर के बाद बाबा रामदेव जैसे योग गुरु योग को देश-विदेश में पहुंचा रहे हैं।

स्वामी रामदेव का बढ़ता वर्चस्व

स्वामी रामदेव ने सबसे पहले 1995 में कनखल, हरिद्वार, उत्तराखंड में दिव्य योग मंदिर (ट्रस्ट) की स्थापना की थी। जिसके बाद हिमालय में गंगोत्री में मेडिटेशन सेंटर, ब्रह्मकल्प चिकित्सालय स्थापित किया गया. इसके साथ ही दिव्य फार्मेसी, दिव्य प्रकाशन, दिव्य योग साधना, 2005 में दिल्ली में पतंजलि योगपीठ (ट्रस्ट), पतंजलि योगपीठ, हरद्वार, महाशय हीरालाल अर्श गुरुकुल, किशनगढ़ घसेदा, महेंद्रगढ़, हरियाणा, योग ग्राम और हाल ही में भारत स्वाभिमान (ट्रस्ट) एन दिल्ली की स्थापना की गई है। स्वामी रामदेव ने भारत स्वाभिमान आंदोलन भी शुरू किया है. जिसमें भारतीय सामाजिक, राजनीतिक और इकॅानोमिकल एस्पेक्ट के बारे में लोगों को अवेयर किया जाता है।

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अंतरराष्ट्रीय योग दिवस

दुनियाभर में 21 जून के दिन अंतरराष्ट्रीय योग दिवस मनाया जाता है। दुनिया को योग सिखाने का श्रेष्य भी भारत को ही जाता है। लेकिन क्या आप जानते हैं कि हर साल 21 जून के दिन ही क्यों योग डे मनाया जाता है। क्योंकि किसी और दिन और महीने में इस दिन को नहीं मनाया जाता है। आज हम आपको 21 जून योग डे मनाने के पीछे की वजह बताएंगे...

इंटरनेशनल योग डे का इतिहास

इंटरनेशनल योग डे को मनाने का श्रेय भारत के वर्तमान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को जाता है। उन्होंने 27 सितंबर 2014 में पहली बार संयुक्त राष्ट्र महासभा के सामने इंटरनेशनल योग डे मनाने का प्रस्ताव रखा था। पीएम मोदी के प्रस्ताव के बाद दुनिया के 177 देशों ने इंटरनेशनल योग डे मनाने का समर्थन किया और 11 दिसंबर 2014 को संयुक्त राष्ट्र महासभा ने इस प्रस्ताव को मंजूरी दी। इसी के बाद से हर साल 21 जून को अंतरराष्ट्रीय योग दिवस मनाया जा रहा है। यही वजह है कि हर सालइंटरनेशनल योग डे का प्रतिनिधित्व भारत ही करता है। इस दिन दिल्ली के राजपथ से लेकर कश्मीर तक लोग सामूहिक रूप से योगाभ्यास करते हैं।

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इंटरनेशनल योग डे मनाने का प्रस्ताव

पहली बार 27 सितंबर 2014 को संयुक्त राष्ट्र महासभा में भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने भाषण में इंटरनेशनल योग डे मनाने का प्रस्ताव रखा था। उसी साल 11 दिसंबर 2014 को संयुक्त राष्ट्र महासभा ने इस प्रस्ताव को स्वीकृति देते हुए 21 जून को अंतरराष्ट्रीय योग दिवस के रूप में मनाने की घोषणा की थी। बता दें कि इस प्रस्ताव को 177 देशों का समर्थन मिला था। जिसके बाद पहली बार दुनियाभर में योग दिवस 21 जून 2015 को मनाया गया था। इस दिन विश्व के लाखों लोगों ने सामूहिक रूप से योगाभ्यास किया था।

 

कब से शुरू हुआ योग कैसे मिली अंतरराष्ट्रीय पहचान

 

योग भगवाव शिव योग का इतिहास स्वामी विवेकानंद योग योग कब  से हो रहा है

कैसे मिली अंतरराष्ट्रीय पहचान कब से शुरू हुआ योग शास्त्रों अनुसार योग का प्रारंभ भगवान शिव से हुआ स्वामी विवेकानंद योग योग का इतिहास योग के जनक महर्षि पतंजलि सबसे पहले योग अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस