19 साल बाद आत्मसमर्पित महिला नक्सलियों ने मनाई दीपावली,बोलीं- 'ये जिंदगी की पहली आजाद दिवाली है'

गरियाबंद जिले में वो महिलाएं, जो कभी जंगलों में बंदूक थामे खौफ का पर्याय थीं, अब दीयों की रोशनी में मुस्कुराते हुए नजर आईं। 19 साल तक नक्सली संगठन में रही 8 लाख की इनामी जानसी और उसकी साथी जुनकी ने पहली बार ‘आजाद दीपावली’ मनाई।

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Harrison Masih
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Gariaband. छत्तीसगढ़ के गरियाबंद जिले से एक प्रेरणादायक खबर सामने आई है। कभी बंदूक उठाने वाली और जंगलों में सालों तक रहने वाली 5 महिला नक्सलियों ने इस बार अपनी जिंदगी की पहली “आजाद दीपावली” मनाई। हिंसा का रास्ता छोड़कर समाज की मुख्यधारा में लौट चुकी इन महिलाओं ने दीपों के इस पर्व पर पहली बार आजादी और खुशियों की रोशनी महसूस की।

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पहली बार खुले दिल से त्योहार की खुशी

ये महिलाएं हैं - 8 लाख की इनामी जानसी, 5 लाख की इनामी जुनकी, वैजंती, मंजुला, और मैना। कभी ये सभी जंगलों में हथियार लेकर घूमती थीं और इलाके में इनके नाम से लोग कांपते थे। लेकिन अब वे वही महिलाएं, बाजार में आम लोगों की तरह कपड़े, मिठाई और पूजा का सामान खरीदती दिखीं।

जानसी, जो पहले नगरी एरिया कमेटी की कमांडर थी और धमतरी के रिसगांव नक्सली हमले में शामिल रही, अब शांत जीवन की ओर लौट चुकी हैं। वहीं जुनकी, जिस पर 5 लाख का इनाम था, अब घर की दीवारों को दीयों से सजाने की तैयारी कर रही है। बाकी तीनों महिलाएं, जो पहले बड़े नक्सलियों की सुरक्षा में तैनात रहती थीं, अब आम नागरिकों की तरह समाज में घुल-मिल गई हैं।

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'यह हमारी जिंदगी की पहली दिवाली है'

8 लाख की इनामी पूर्व नक्सली जानसी ने कहा - “19 साल तक जंगल में रही, वहां न दिवाली थी, न कोई खुशी। अब यह हमारी जिंदगी की पहली आजाद दिवाली है।”

वहीं, जुनकी ने बताया - “हमने पहले कभी दीपावली नहीं देखी थी। जंगल में त्योहार मनाने की अनुमति नहीं थी। अब जब मौका मिला है, तो मन से दीए जलाने की खुशी अलग ही है।”

मैना, जो कभी नक्सलियों की सुरक्षा टीम में थी, ने कहा — “जंगल में त्योहार का नाम लेना भी मना था। अब हम आजादी से जी रहे हैं, यह एहसास ही सबसे बड़ा त्योहार है।”

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अन्य नक्सलियों को लिखा पत्र - लौट आओ!

इन महिलाओं ने न केवल खुद हिंसा छोड़ी बल्कि अब वे बाकी नक्सलियों को भी लौटने की अपील कर रही हैं। जानसी और जुनकी ने गरियाबंद में सक्रिय दो एरिया कमांडर बलदेव और ज्योति को एक पत्र भेजा है।

पत्र में उन्होंने लिखा है कि - “जंगल में रहने से अच्छा है, समाज के बीच रहो। सरकार हमें सम्मान और सुरक्षा दोनों दे रही है। अब की जिंदगी पहले से कहीं बेहतर है।”

सरकार की आत्मसमर्पण नीति का असर

इन सभी महिलाओं ने राज्य सरकार की आत्मसमर्पण और पुनर्वास नीति से प्रभावित होकर सरेंडर किया था। सरकार ने इन्हें न सिर्फ पुनर्वास का अवसर दिया, बल्कि प्रशिक्षण और रोजगार की दिशा में भी मदद की। पूर्व महिला नक्सलियों ने मनाई दिवाली। अब ये महिलाएं समाज में खुद को स्थापित कर रही हैं और अपने जीवन को नई दिशा दे रही हैं।

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बंदूक छोड़ दीया जलाना सीखा

इन पूर्व नक्सलियों की कहानी यह बताती है कि अगर किसी को मौका दिया जाए, तो वह हिंसा की अंधेरी राह छोड़कर शांति और उजाले की ओर लौट सकता है। 19 साल बाद दीयों की यह रोशनी सिर्फ उनके घरों को नहीं, बल्कि समाज के दिलों को भी रोशन कर रही है।

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