छत्तीसगढ़ में बारिश की शुरुआत हो चुकी है। इसके साथ ही उपार्जन केंद्रों में खुले में पड़े धान पर संकट मड़राने लगा है। प्रदेश में लगभग 92,303 मीट्रिक टन धान आज भी खुले में पड़ा है। इसका मूल्य लगभग 211 करोड़ रुपये है। बारिश की तीव्रता बढ़ने के साथ इस धान के भीगकर खराब होने का खतरा मंडरा रहा है। इस नुकसान की जिम्मेदारी उन सहकारी समितियों पर आएगी, जिन्होंने धान की खरीदी की थी। गर्मी के कारण पहले ही कई समितियों में धान की कमी दर्ज की गई है, और अब बारिश इस समस्या को और गंभीर बना सकती है।
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बारिश से धान बर्बाद होने का खतरा
धान की खरीदी न्यूनतम समर्थन मूल्य पर 149 लाख मीट्रिक टन हुई थी। इसमें से अधिकांश धान मार्कफेड या मिलरों के गोदामों में पहुंचा दिया गया, लेकिन 27 मई तक के आंकड़ों के मुताबिक, 92,303.38 मीट्रिक टन धान अभी भी उपार्जन केंद्रों में पड़ा है। कुछ धान गर्मी या पहले हुई बारिश में खराब हो चुका हो सकता है, लेकिन बचा हुआ धान अब बारिश के कारण पूरी तरह बर्बाद होने के कगार पर है।
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सहकारी समितियों पर जिम्मेदारी का बोझ
राज्य की नीति के अनुसार, धान की बफर स्टॉक सीमा समाप्त होने के 72 घंटों के भीतर इसका उठाव अनिवार्य है। हालांकि, कई समितियों में बफर सीमा से कई गुना अधिक धान जमा होने के बावजूद उठाव नहीं हो सका। गर्मी के कारण धान में सूखत से वजन कम हुआ, जिसका खामियाजा समिति प्रबंधकों को भुगतना पड़ रहा है। प्रबंधकों को प्रति क्विंटल 2300 रुपये के हिसाब से नुकसान की भरपाई या राशि जमा करने का दबाव है। ऐसा न करने पर उनके खिलाफ एफआईआर की चेतावनी दी गई है। कई समिति संचालक इस मामले को लेकर हाईकोर्ट पहुंच चुके हैं।
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केवल पांच जिलों में पूरा हुआ उठाव
राज्य के 33 में से सिर्फ पांच जिले जांजगीर-चांपा, धमतरी, कोरिया, सरगुजा और सूरजपुर ऐसे हैं, जहां खरीदे गए धान का पूरा उठाव हो चुका है। बाकी जिलों में अलग-अलग मात्रा में धान अब भी पड़ा है। सूखत के कारण धान की कमी वाले प्रबंधकों को 2300 रुपये प्रति क्विंटल के हिसाब से नोटिस जारी किए गए हैं। अगर बारिश से बचा हुआ 211 करोड़ रुपये का धान खराब होता है, तो इसका जिम्मा भी समितियों पर ही आएगा। इस स्थिति ने न केवल धान की बर्बादी का खतरा बढ़ाया है, बल्कि सहकारी समितियों और उनके प्रबंधकों पर आर्थिक और कानूनी दबाव भी डाल दिया है। तत्काल उठाव न होने पर यह संकट और गहरा सकता है।
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Paddy | procurement | उपार्जन केंद्रों में लापरवाही