जशपुर में आदिवासी परंपरा बनाम धर्मांतरण, खेतों में भागदंड और क्रॉस का टकराव

छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री के गृह जिले जशपुर में आदिवासी संस्कृति और धर्मांतरण को लेकर नया विवाद सामने आया है। यहां आदिवासी अपनी पुरानी परंपरा के अनुसार 'भागदंड' लगाते हैं, वहीं धर्मांतरित ईसाई आदिवासी उसी जगह पर 'क्रॉस' लगा रहे हैं।

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Krishna Kumar Sikander
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Bhagdand and cross in the fields clash the sootr
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छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय के गृह जिले जशपुर में आदिवासी संस्कृति और धर्मांतरण या मतांतरण बीच एक नया टकराव उभर रहा है। यह टकराव खेतों में देखने को मिल रहा है, जहां आदिवासी अपनी सदियों पुरानी परंपरा के तहत 'भागदंड' लगाते हैं, वहीं धर्मांतरित ईसाई आदिवासी उसी खेत में 'क्रॉस' लगाकर नई परंपरा को स्थापित करने की कोशिश कर रहे हैं। 

यह वह क्षेत्र है, जहां पूर्व केंद्रीय मंत्री स्वर्गीय दिलीप सिंह जूदेव ने जीवनभर मतांतरण के खिलाफ अभियान चलाया और सैकड़ों धर्मांतरित आदिवासियों की 'घर वापसी' करवाई। उनके पुत्र प्रबल प्रताप सिंह जूदेव इस मिशन को आगे बढ़ा रहे हैं। इसके बावजूद, जशपुर में मिशनरी गतिविधियां तेज हैं, जो खेतों को अपनी शक्ति प्रदर्शन का माध्यम बना रही हैं।

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आदिवासियों परंपरा और भागदंड का महत्व

जशपुर के आदिवासियों में खेतों में भागदंड लगाने की परंपरा सदियों से चली आ रही है। हर साल रक्षाबंधन के दिन आदिवासी अपने खेतों में फसल की रक्षा के लिए भागदंड स्थापित करते हैं। यह परंपरा न केवल सांस्कृतिक, बल्कि आध्यात्मिक रूप से भी महत्वपूर्ण है। स्थानीय आदिवासियों का मानना है कि भागदंड फसलों को कीटों, प्राकृतिक आपदाओं और अन्य व्याधियों से बचाता है।

भागदंड को तेंदू की लकड़ी से बनाया जाता है। इसकी डंडी के ऊपरी सिरे को चीरकर उसमें भेलवा का पत्ता लगाया जाता है। स्थानीय भाषा में इसे 'महादेव जट' कहा जाता है, जो आदिवासियों की आस्था का प्रतीक है। यह प्रथा न केवल उनकी सांस्कृतिक पहचान को दर्शाती है, बल्कि उनके प्रकृति और परंपराओं से गहरे जुड़ाव को भी उजागर करती है।

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धर्मांतरित आदिवासियों की नई परंपरा में क्रॉस

दूसरी ओर, धर्मांतरण कर ईसाई बने आदिवासी अब भागदंड की जगह अपने खेतों में क्रॉस लगाने लगे हैं। उन्होंने इसके लिए स्वतंत्रता दिवस यानी 15 अगस्त का दिन चुना है, क्योंकि इस दिन ईसाई समुदाय में माता मरियम की आराधना की जाती है।

इस दिन वे खेतों में क्रॉस लगाकर फसलों की सुरक्षा के लिए प्रार्थना करते हैं। यह नई प्रथा आदिवासी परंपराओं के समानांतर चल रही है, जिससे खेतों का स्वरूप भी बदल रहा है। अब खेतों में लगे भागदंड और क्रॉस यह स्पष्ट करने लगे हैं कि वह खेत मूल आदिवासी का है या धर्मांतरित व्यक्ति का।

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जशपुर में बढ़ता तनाव

खेतों में भागदंड और क्रॉस के इस समानांतर प्रचलन ने जशपुर में सांस्कृतिक और सामाजिक टकराव की आशंका को जन्म दिया है। आदिवासी समुदाय अपनी परंपराओं को बचाने के लिए सजग है, वहीं मिशनरी गतिविधियों के तहत धर्मांतरित समुदाय अपनी पहचान को स्थापित करने में जुटा है। यह टकराव केवल खेतों तक सीमित नहीं है, बल्कि यह क्षेत्र की सामाजिक और धार्मिक संरचना पर भी असर डाल रहा है।

 जशपुर का यह क्षेत्र पहले से ही धर्मांतरण को लेकर संवेदनशील रहा है। स्वर्गीय दिलीप सिंह जूदेव ने यहां 'घर वापसी' अभियान के जरिए आदिवासियों को उनकी मूल संस्कृति और धर्म से जोड़ने का प्रयास किया था। उनके पुत्र प्रबल प्रताप सिंह जूदेव इस अभियान को आगे बढ़ा रहे हैं, लेकिन मिशनरी संगठनों की सक्रियता ने इस क्षेत्र में एक नया वैचारिक संघर्ष खड़ा कर दिया है।

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मिशनरी गतिविधियों का प्रभाव

मिशनरी संगठन जशपुर में लंबे समय से सक्रिय हैं। वे न केवल धर्मांतरण को बढ़ावा दे रहे हैं, बल्कि खेतों जैसे स्थानीय संसाधनों का उपयोग अपनी शक्ति प्रदर्शन के लिए कर रहे हैं। क्रॉस लगाने की प्रथा को बढ़ावा देकर वे स्थानीय परंपराओं को चुनौती दे रहे हैं, जिससे आदिवासी समुदाय में असंतोष बढ़ रहा है। यह स्थिति जशपुर के सामाजिक ताने-बाने को प्रभावित कर रही है, जहां पहले से ही आदिवासी और धर्मांतरित समुदायों के बीच तनाव देखा जा रहा है।

आदिवासी संस्कृति का संरक्षण जरूरी

जशपुर के आदिवासियों की भागदंड परंपरा उनकी सांस्कृतिक और आध्यात्मिक विरासत का हिस्सा है। यह न केवल फसलों की रक्षा से जुड़ी है, बल्कि यह उनकी पहचान और प्रकृति के साथ उनके रिश्ते को भी दर्शाती है। दूसरी ओर, क्रॉस लगाने की प्रथा को बढ़ावा देकर मिशनरी संगठन आदिवासी संस्कृति को कमजोर करने की कोशिश कर रहे हैं। 

प्रशासन और सामाजिक संगठनों के सामने चुनौती

जशपुर में खेतों में भागदंड और क्रॉस का यह टकराव केवल सांस्कृतिक नहीं, बल्कि सामाजिक और राजनीतिक दृष्टिकोण से भी महत्वपूर्ण है। एक ओर जहां आदिवासी अपनी परंपराओं को बचाने के लिए संघर्ष कर रहे हैं, वहीं मिशनरी गतिविधियां क्षेत्र में अपनी पैठ बढ़ाने में जुटी हैं।

इस स्थिति ने स्थानीय प्रशासन और सामाजिक संगठनों के सामने एक नई चुनौती खड़ी कर दी है। प्रबल प्रताप सिंह जूदेव जैसे नेताओं के सामने अब यह जिम्मेदारी है कि वे आदिवासी संस्कृति को संरक्षित करते हुए सामाजिक सौहार्द बनाए रखें।

साथ ही, यह सुनिश्चित करना होगा कि जशपुर जैसे संवेदनशील क्षेत्र में टकराव की स्थिति को रोका जाए। इस मामले में स्थानीय प्रशासन की भूमिका भी अहम होगी, ताकि परंपराओं और आधुनिकता के बीच संतुलन स्थापित किया जा सके।

FAQ

जशपुर के आदिवासियों द्वारा खेतों में भागदंड लगाने की परंपरा का क्या महत्व है?
जशपुर के आदिवासी रक्षाबंधन के दिन अपने खेतों में 'भागदंड' लगाते हैं, जो फसलों की रक्षा के प्रतीक होते हैं। इसे तेंदू की लकड़ी और भेलवा के पत्तों से बनाया जाता है। यह परंपरा न केवल सांस्कृतिक और आध्यात्मिक महत्व रखती है, बल्कि यह आदिवासियों के प्रकृति के साथ जुड़ाव और उनकी सांस्कृतिक पहचान को भी दर्शाती है।
खेतों में क्रॉस लगाने की परंपरा कब और क्यों शुरू हुई?
धर्मांतरण कर ईसाई बने आदिवासियों ने 15 अगस्त (जो ईसाई समुदाय में माता मरियम की आराधना का दिन है) को खेतों में क्रॉस लगाना शुरू किया। यह नई परंपरा फसलों की सुरक्षा के लिए प्रार्थना के रूप में की जाती है, जो भागदंड परंपरा के समानांतर चल रही है और इससे खेतों की धार्मिक पहचान भी स्पष्ट होने लगी है।
जशपुर में भागदंड और क्रॉस के टकराव से क्या सामाजिक प्रभाव पड़ रहा है?
भागदंड और क्रॉस के समानांतर प्रचलन ने जशपुर में सांस्कृतिक टकराव को जन्म दिया है। इससे आदिवासी और धर्मांतरित समुदायों के बीच सामाजिक तनाव बढ़ रहा है। यह स्थिति स्थानीय प्रशासन और सामाजिक संगठनों के लिए चुनौती बन गई है, क्योंकि उन्हें परंपराओं का संरक्षण करते हुए सामाजिक सौहार्द बनाए रखना है।

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