मध्यप्रदेश में विधानसभा चुनाव से पहले बीजेपी के सामने चुनौतियां का दरिया, कैसे पार लगेगी नैया ?

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Rajeev Khandelwal
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मध्यप्रदेश में विधानसभा चुनाव से पहले बीजेपी के सामने चुनौतियां का दरिया, कैसे पार लगेगी नैया ?

BHOPAL. इस साल के अंत में होने वाले मध्यप्रदेश विधानसभा के चुनाव परिणाम का आकलन आरंभ किए हुए 5 महीने व्यतीत हो चुके हैं। राजनीतिक स्थिति दिन-प्रतिदिन जटिल होती जा रही है। सत्ता के दावेदार मुख्य राजनीतिक दल बीजेपी और कांग्रेस सक्रिय हो गए हैं। तथापि हमेशा की तरह बीजेपी, कांग्रेस की तुलना में पूरी तरह से 24X7 समान सक्रिय हो गई है। मेहनत का फल मिलता है, ऐसा कहा जाता है, परंतु राजनीति में ऐसा होना हमेशा जरूरी नहीं होता है। आइए, पिछले 15 दिनों में प्रदेश में हुई राजनीतिक गतिविधियों और घटनाक्रम का आगामी चुनाव की परिणाम की संभावना की दृष्टि से चर्चा कर लें।



लोक लुभावन घोषणाओं की बौछार



मध्यप्रदेश के आगामी विधानसभा चुनाव के संबंध में जितने भी सर्वे अभी तक आए हैं, उस में बीजेपी की सत्ता में निश्चित वापसी कोई सर्वे नहीं बता रहा है, जबकि अधिकांश मीडिया पर आजकल बहुत आसानी से 'गोदी मीडिया का स्लोगन' चिपका लगा दिया जाता है। इसका प्रमुख कारण सत्ता विरोधी कारक बताया जा रहा है। शायद इसलिए शिवराज सिंह चौहान ने सत्ता विरोधी कारक से निपटने के लिए एक तरह से 'खजाने का पिटारा' ही खोल दिया है। हाल में ही मुख्यमंत्री ने संविदाकर्मियों के लिए भत्ता 50 प्रतिशत, आरक्षण, पेंशन, ग्रेच्युटी, बीमा और अवकाश का लाभ देने की जो घोषणा की है, वो जनता या कुछ वर्गों में फैले असंतोष को दूर करने का ही प्रयास है। येन चुनावी समय पर घोषणा करने के प्रयास कितने सफल होंगे, इनका आकलन करना होगा। रीवा के पूर्व महाराज पूर्व मंत्री पुष्पराज सिंह बीजेपी में शामिल हो गए हैं, जो पिछले कुछ समय से भर्ती होने की प्रक्रिया के विपरीत है। अर्थात बीजेपी से कांग्रेस में जाने की प्रक्रिया को रोककर कांग्रेस से बीजेपी में जाने की रुकी हुई प्रक्रिया फिर से प्रारंभ हुई है।



संगठन में कसावट की कवायद



बीजेपी हाईकमान ने मध्यप्रदेश के लिए चुनाव की दृष्टि से नए चुनाव प्रभारी भूपेंद्र यादव के साथ सह-प्रभारी अश्विनी वैष्णव को बनाकर संगठन में कसावट लाने का प्रयास किया है। 'शिवराज भाजपा', 'महाराज भाजपा', 'नाराज भाजपा' 'राज भाजपा' (सत्ता का सुख भोगते गिने-चुने लोग) और शेष भाजपा के बीच स्थित दूरियां कितनी मिटेगी, यह भी देखने की बात होगी। अभी-अभी केंद्रीय कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर को मध्यप्रदेश की चुनाव प्रबंध समिति के संयोजक की कमान बीजेपी हाईकमान द्वारा सौंपी गई है। वास्तव में यदि नरेंद्र सिंह तोमर को वास्तविक फ्री हैंड दिया जाएगा तो निश्चित रूप से प्रदेश के बहुत ही अनुभवी नेता होने के कारण साथ ही उनके पूर्व में प्रदेश अध्यक्ष रहने के कारण पूरे प्रदेश के कार्यकर्ताओं से उनका जीवंत संपर्क रहने के कारण वे वर्तमान में विद्यमान जनता और कार्यकर्ताओं के असंतुष्ट और विरोधी मूड को बदलने में सक्षम और सफल सिद्ध हो सकते हैं। ऐसा लगता है कि बीजेपी हाईकमान का यह कदम कहीं 'तुरुप का इक्का' सिद्ध न हो जाए।



प्रदेश में नेतृत्व परिवर्तन नहीं ?



अमित शाह के अचानक भोपाल दौरे में उन्होंने यह स्पष्ट कर दिया है कि आगामी विधानसभा के चुनाव वर्तमान नेतृत्व में ही लड़े जाएंगे। हमने देखा है, पूर्व में भी राजनीति में इस तरह की बयानबाजी होती रही है, जिसका वास्तविकता से कोई लेना-देना नहीं होता है। तब अमित शाह एक तरफ 'वर्तमान नेतृत्व न बदलने' की बात के साथ दूसरी ओर यह प्रश्न भी खड़ा कर देते है कि 'कार्यकर्ताओं में असंतोष क्यों है? तब इसका उत्तर अथवा निदान क्या हो सकता है? इसे समझने की आवश्यकता है। आगामी कुछ समय गुजरने के बाद शायद स्थिति स्पष्ट हो सकती है। परंतु मेरा अभी भी दृढ़ मत है कि शिवराज सिंह का 'रहना ब्रेकिंग न्यूज है, जाना नहीं?' इसलिए इस 'ब्रेकिंग न्यूज' का कुछ समय बाद 'ब्रेक' होना लाजिमी है। यद्यपि शिवराज सिंह इसे ब्रेक (रोके) किए हुए हैं। अन्यथा आगामी सरकार बीजेपी से कोसों दूर है।



158 कांड की सूची में एक और नया भ्रष्टाचार कांड



'पटवारी भर्ती कांड' के सामने आने पर कांडों को लेकर प्रदेश की राजनीति में पुनः भूचाल आ गया है। पुराने अनेकानेक कांड (स्कैंडल्स), भ्रष्टाचार के मामलों को खखोलकर याद किया जा रहा है या याद दिलाए जाने की चेष्टा हो रही है। ग्वालियर के वरिष्ठ पत्रकार राकेश अचल के अनुसार शिवराज सिंह के कार्यकाल में रिकॉर्ड पर कम से कम लगभग 156 भ्रष्टाचार के स्कैंडल्स हो चुके हैं। चूंकि पटवारी भर्ती कांड का मामला बेरोजगारी से जुड़ा है, जो गंभीर इसलिए है कि वर्ष 2020-2022 के बीच मात्र 21 बेरोजगारों को सरकारी नौकरी दी गई जबकि 34 लाख से ज्यादा बेरोजगार अभी भी रजिस्टर्ड हैं। यह जानकारी विधानसभा में मंत्री यशोधरा राजे सिंधिया ने दी थी। विश्व कुख्यात व्यापमं का नाम बदलने से घोटाले नहीं रुक सकते हैं, बल्कि दृढ़ इच्छा शक्ति और कार्य करने की पद्धति में आमूलचूल परिवर्तन लाने पर ही कांड रुक पाएंगे। तब ऐसी स्थिति में राजनीति में सिर-फुटव्वल होना स्वाभाविक ही है।



मामा पर भारी पड़ेंगे भैया ?



बड़ा प्रश्न यह है कि 156 घोटालों, कांड की सरकार के मुखिया मामा शिवराज सिंह, लाड़ली बहना योजना के द्वारा भाई बनकर, वॉशिंग मशीन होकर क्या उन कांड के दागों को धो पाएंगे? यह इस योजना का लाभ प्राप्त करने वाली लाभार्थियों पर होने वाले प्रभाव पर निर्भर करेगा। वैसे कर्नाटक में भी केंद्रीय और राज्य सरकार की विभिन्न योजनाओं के लाभार्थियों का बहुत बड़ा वर्ग बनने के बावजूद बीजेपी वहां हार गई थी।



चरमराती कानून व्यवस्था



पिछले कुछ समय से प्रदेश की कानून की व्यवस्था चरमरा सी गई है, जिसका सत्तारूढ़ दल की चुनावी संभावनाओं पर विपरीत प्रभाव कहीं न कहीं अवश्य पड़ सकता है। आदिवासी युवक पर बीजेपी विधायक के तथाकथित प्रतिनिधि द्वारा पेशाब करने का मामला तूल पकड़ता जा रहा है। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान द्वारा पेशाब कांड पर जिस तरह की व्यक्तिगत क्रिया-प्रतिक्रिया कर मामले को शांत करने का प्रयास किया गया, लेकिन उक्त पीड़ित आदिवासी व्यक्ति के घटना में शामिल न होने के बयान ने शिवराज सिंह सरकार की काफी किरकिरी और छीछालेदर की है। सीधी की इस अत्यंत दुर्भाग्यपूर्ण पेशाब घटना से लेकर तत्पश्चात इंदौर, ग्वालियर, सागर, उज्जैन और शिवपुरी में आदिवासियों और दलितों के साथ हुई बर्बरतापूर्ण घटनाओं ने बीजेपी के माथे पर गहरी चिंता की लकीरें खींची हैं। नवीनतम घटना विदिशा में बेटी (छेड़छाड़ के कारण) और तत्पश्चात उचित जांच न होने के कारण उसके पिता द्वारा भी आत्महत्या कर लेने की घटना कानून व्यवस्था पर पुनः गंभीर प्रश्न खड़े करती है। नेशनल क्राइम रिपोर्ट ब्यूरो (एनसीआरबी) की वर्ष 2022 की रिपोर्ट के अनुसार मध्यप्रदेश में अपराधों की संख्या बढ़ती जा रही है। पिछले वर्ष की तुलना में 42 हजार ज्यादा अपराध अधिक हुए हैं। आदिवासियों पर अत्याचार के मामलों में प्रदेश नंबर-1 पर है। अश्लीलता से जुड़े मामलों में भी मध्यप्रदेश पहले नंबर पहुंच गया है। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान इन सब स्थितियों से कैसे निपटते हैं, इसके लिए कुछ इंतजार अवश्य करना होगा। लेकिन निश्चित रूप से शिवराज सिंह के लिए सत्ता के कांटों भरे रास्ते में कांटे दूर होना कम, बढ़ते ज्यादा दिखाई दे रहे हैं, जो उनको सत्ता में आने से रोकने में कहीं न कहीं बड़ा कारक बनते दिखाई दे रहे हैं।


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