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रिटायर्ड जिला आबकारी अधिकारी (डीईओ) धर्मेंद्र सिंह भदौरिया के पास आय से 829 फीसदी ज्यादा संपत्ति मिली है। उन्हें पूरे सेवाकाल में दो करोड़ का वेतन मिला था, लेकिन लोकायुक्त के 15 अक्टूबर के छापे में 18.59 करोड़ की संपत्ति मिली।
इसके बाद सवाल उठता है कि लोकायुक्त ने उन्हें हाथों हाथ क्यों छोड़ दिया। ऐसे भ्रष्ट अधिकारियों को लोकायुक्त या ईओडब्ल्यू क्यों छोड़ देती है? वहीं सीबीआई जैसी एजेंसियां अधिकारियों की तुरंत गिरफ्तारी कर लेती हैं। इसके पीछे की वजह जानकर आप हैरान रह जाएंगे।
जिन धाराओं में पकड़ते हैं, वह गैर जमानती
आपको जानकर आश्चर्य होगा कि जिन धाराओं में भ्रष्ट अधिकारियों पर केस बनता है इनमें अधिकांश धाराएं गैर जमानती हैं। इन पर भ्रष्टाचार निवारण एक्ट 2018 के तहत केस होते हैं। इसमें आय से अधिक कमाई के मामले में मुख्य धारा 13(1) बी, 13(2) होती है जिसमें सजा 3 से 7 साल और दूसरे में 4 से 10 साल की सजा है। इसी तरह रिश्वत लेने के मामले में धारा 7 ए लगती है जिसमें सजा एक से सात साल की है। यह धाराएं गैर जमानती हैं।
भदौरिया हो या जीपी मेहरा या दूसरे अधिकारी
लोकायुक्त भोपाल ने सात दिन पहले पीडब्ल्यूडी के पूर्व चीफ इंजीनियर जीपी मेहरा के यहां छापा मारा था। इस दौरान करोड़ों की बेहिसाब संपत्ति पकड़ी, लेकिन उन्हें छोड़ दिया।
फिर 15 अक्टूबर को भदौरिया को पकड़ा और 18.59 करोड़ की संपत्ति मिली। इसके अलावा 1.13 करोड़ नकद, 5.48 करोड़ का सोना और 8 लाख की चांदी भी मिली, लेकिन फिर भी छोड़ दिया गया। इसी तरह भ्रष्टाचार में फंसे आबकारी डीसी आलोक खरे या कोई और, किसी को भी गिरफ्तार नहीं किया गया।
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यह है गिरफ्तार नहीं करने की वजह
इसकी मुख्य वजह यह है कि बीएनएस या भ्रष्टाचार एक्ट के तहत गिरफ्तारी के बाद तय दिन में चालान लगाना जरूरी होता है। सात साल तक की सजा वाले मामलों में 60 दिन के अंदर चालान, और गंभीर मामलों में 90 दिन के भीतर चालान पेश करना होता है।
यह जांच एजेंसियों के लिए बड़ी मुश्किल बन जाती है। सबसे बड़ी समस्या है अभियोजन की मंजूरी। अधिकारियों के खिलाफ एजेंसियों को पहले मप्र शासन से मंजूरी लेनी होती है, तभी चालान पेश होता है। इस मंजूरी में एक-दो महीने नहीं, बल्कि सालों तक फाइल अटकी रहती है। बिना मंजूरी के चालान पेश नहीं होता, जिससे अधिकारी को राहत मिल जाती है।
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परिवहन कांस्टेबल सौरभ शर्मा ऐसे ही बचा था
लोकायुक्त ने परिवहन विभाग के पूर्व कांस्टेबल सौरभ शर्मा (सौरभ शर्मा भ्रष्टाचार मामला) को गिरफ्तार किया था, लेकिन समय पर चालान पेश नहीं हुआ और उसे जमानत मिल गई।
हालांकि, ईडी ने मनी लॉन्ड्रिंग का केस दर्ज किया था, इसलिए वह जेल में रहा। वहीं भ्रष्टाचार के मामले में चालान न होने की वजह से उसे जमानत मिल गई।
ऐसे में सभी जांच एजेंसियां विवेचना में लगने वाले समय और अभियोजन मंजूरी के कारण भ्रष्ट अधिकारियों को रंगे हाथ पकड़ने के बाद भी जेल नहीं भेज पातीं।
सीबीआई के केस भी इसलिए बिगड़ते हैं
उधर सीबीआई इस मामले में तुरंत गिरफ्तारी करती है। जैसे नर्सिंग घोटाले के केस में सीबीआई ने अपने ही अधिकारियों को पकड़ा, लेकिन फिर चालान की समस्या आई और कई को जमानत मिल गई।
इस पर हाईकोर्ट जज ने सीबीआई को देरी पर फटकार लगाई। असल में, जैसे ही आरोपी गिरफ्तार होता है, वह जमानत के लिए लग जाता है।
जांच एजेंसियों को फिर कोर्ट में जवाब देना पड़ता है, जिससे वह भी बचना चाहती हैं। सीबीआई जरूरी मामलों में ही गिरफ्तारी करती है। जैसे रावतपुरा रायपुर मेडिकल घोटाले में कुछ ही आरोपियों को गिरफ्तार किया गया।
इसमें 30 से ज्यादा आरोपी हैं, जैसे इंडेक्स के सुरेश भदौरिया और इंदौर के पूर्व कुलपति डीपी सिंह, लेकिन इन्हें अभी तक गिरफ्तार नहीं किया गया। जांच पूरी होने के बाद आगे कार्रवाई होगी।