बसंत पंचमी पर धार भोजशाला बनी छावनी, अयोध्या, ज्ञानवापी की तरह यहां भी स्थल पाने हाईकोर्ट में लड़ रहे हिंदू संगठन

अयोध्या में राम मंदिर बनने और ज्ञानवापी में काफी लड़ाई जीतने के बाद अब धार में भी हिंदू संगठन जोश में हैं और उन्हें उम्मीद है कि यह स्थल उन्हें पूरी तरह मिलेगा। इसके लिए हाईकोर्ट इंदौर में याचिका चल रही है।

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Pratibha Rana
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धार भोजशाला बनी छावनी

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संजय गुप्ता, INDORE. बसंत पंचमी( vasant-panchami ) के मौके पर धार भोजशाला का मुद्दा फिर गर्माया हुआ है। धार में भोजशाला और इसके आसपास चप्पे-चप्पे पर पुलिस मौजूद है और स्थल पुलिस छावनी में तब्दील हो चुका है। अंदर भगवा झंडे लग गए हैं और सरस्वती पूजन की तैयारियां है। अयोध्या में राम मंदिर( ayodhya-ram-temple )बनने और ज्ञानवापी में काफी लड़ाई जीतने के बाद अब धार(  Dhar Bhojshala cantonment built on Basant Panchami ) में भी हिंदू संगठन जोश में हैं और उन्हें उम्मीद है कि यह स्थल उन्हें पूरी तरह मिलेगा। इसके लिए हाईकोर्ट इंदौर में याचिका चल रही है, जिस पर सभी पक्षकारों को नोटिस जारी कर जवाब मांगा गया है, इसमें 19 फरवरी को सुनवाई होना है। 

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हाईकोर्ट याचिका में यह है पक्षकार

हाईकोर्ट में दायर याचिका में हिंदू फ्रंट फॉर जस्टिस ट्रस्ट, रंजना अग्निहोत्री, आशीष गोयल, आशीष जनक, मोहित गर्ग, जितेंद्र बिसने, सुनील सास्वत ने याचिका दायर की है। इसमें केंद्र सरकार, आर्कियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया (एएसआई), आर्कियोलॉजिकल ऑफिसर, मप्र सरकार, डिला कलेक्टर, एसपी, मौलाना कमालुद्दीन थू इट्स प्रेसीडेंट अब्दुल समद खान, श्री महाराजा भोजशाला संस्थान समिति को पार्टी बनाया गया है। 

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भोजशाला पर अभी क्या है स्थिति

भोजशाला पर साम्प्रदायिक तनाव को देखते हुए मौजूदा शासन, प्रशासन ने व्यवस्था की हुई है कि शुक्रवार को मुस्लिम वर्ग दोपहर एक से तीन बजे तक नमाज अदा कर सकता है। वहीं हिंदुओ को मंगलवार को सूर्योदय से सूर्यास्त तक पूजा करने की मंजूरी है। 

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बसंत पचंमी पर ही समस्या क्यों आती है

समस्या बसंत पंचमी के दिन आती है, इसका कारण है कि हिंदू मान्यता के अनुसार यह सरस्वती देवी (वाग्देवी) का पूज्य स्थल है और बसंत पंचमी का दिन बाग्देवी से ही जुड़ा हुआ है। ऐसे में इस दिन हिंदू यहां पूजन के लिए जाते हैं। यदि बसंत पंचमी मंगलावार के दिन नहीं है तो फिर इसमें हिंदू पक्ष की पूजन पर दूसरे पक्ष द्वारा आपत्ति ली जाती है। वहीं जब मामला शुक्रवार के दिन बसंत पचंमी का आ जाता है तो फिर दोनों पक्ष खुलकर आमने-सामने हो जाते हैं, क्योंकि दोनों ही पक्ष अपने अधिकार नहीं छोडते हैं। 

क्या है भोजशाला का रिकार्ड

मुस्लिम पक्ष के अनुसार

इस वर्ग का मानना है कि यहां कमाल मौलाना की दरगाह है। यह मस्जिद ही है और 1985 के वक्फ बोर्ड बनने पर उनके आर्डर में इसे जामा मस्जिद कहा गया है। इसलिए यह हमारा धर्मस्थल है। अलाउद्दीन खिलजी के समय 1307 से ही यह हमारा स्थल है, उन्हीं के समय से मस्जिद बनी हुई है। रिकार्ड में भोजशाला के साथ कमाल मौला की मस्जिद लिखा हुआ है। यह पूरा स्थल हमारा है।

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हिंदू संगठन का पक्ष

-    हिंदू संगठनों का कहना है कि यह परमार वंश के राजा भोज द्वारा बनवाया गया विश्वस्तरीय स्कूल था। जहां पर इंजीनियरिंग, म्यूजिक, आर्कियोलॉजी व अन्य विषय की श्रेठ पढाई होती थी और इसकी प्रसिद्धी का स्तर नालंदा, तक्षशिला जैसा ही था।

-    यह साल एक हजार में स्थापित हुआ था। यहां मां वाग्देवी की प्रतिमा थी। साथ ही यहां पर हिंदू स्ट्रक्चर के पूरे साक्ष्य मौजूद है। खंबों पर हिंदू संस्कृति की नक्काशी है, संस्कत व प्राकूत भाषा में शब्द लिखे हुए हैं। 

-    यहां कभी भी मस्जिद नहीं रही है। पुराने रिकार्ड में भी हमेशा भोजशाल शब्द का उपयोग हुआ है।

-    इसलिए यह स्थल हमारी उपासना का केंद्र है यह पूरी तरह हमे मिलना चाहिए। हिंदू पक्ष का यह भी तर्क है कि जिन कमाल मौलान की यहां मजार बताई जाती है, वह तो धार में कभी दफनाए ही नहीं गए। आर्कियोलॉजिकल सर्वे आफ इंडिया ने पहले यहां खुदाई भी की थी जब हिंदू स्थल के सबूत मिले थे लेकिन फिर रोक दी गई। इसलिए यह खुदाई यहां की और दरगाह स्थल की भी होना चाहिए, इससे सब साफ हो जाएगा। 

-    यह भी तथ्य कहा जाता है कि अलाउद्दानी खिलजी ने 1300 में अटैक किया था और फिर 1540 में मोहम्मद खिलजी ने भोजशाला पर अटैक किया था। इस दौरान दरगाह बनाई गई, जो वास्तव में है ही नहीं। जबकि यह स्थल मूल रूप से एक हजार साल में राजा भोज द्वारा तैयार कराया गया स्कूल था।

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रिकार्ड में क्या- क्या रहा है-

  •    साल 1902-03 के दौरान लार्ड कर्जन ने धार,. मांडू की दौरा किया था, तब भोजशाला में मेंटनेंस के लिए 50 हजार राशि खर्च करने के आदेश दिए थे। एएसआई की तब की रिपोर्ट में भोजशाला वर्णन है, साथ ही लिखा है कि यहां संस्कृत, प्राकृत भाषा में लिखे शब्द हैं। 

    -    साल 1951 के नोटिफिकेशन में इसे राष्ट्रीय स्मारक घोषित किया गया है और इसमें भोजशाल व कमाल मौला की मस्जिद शब्द लिखा हुआ है। साल 1935 में तत्कालीन धार महाराज ने यहां पर विवादों को देखते हुए साम्प्रदायिक सद्भाव बनाए रखने के लिए नमाज की मंजूरी दे दी थी। साल 1944 में यहां दंगे भी हुए।

    - बाबरी कांड के बाद फिर जयभान सिंह पवैया ओर साध्वी ऋतिम्भरा ने यहां 1993, 1994 में आंदोलन किया

    - 1995 में विवाद पर तत्कालीन जिला  कलेक्टर सुब्रह्मण्यम स्वामी ने आदेश जारी किया कि मुस्लिम हर शुक्रवार को नमाज अदा करेंगे और हिंदू साल में सिर्फ

ललललल

एक बार बसंत पंचमी पर पूजन कर सकेंगे

- साल 2003 में प्रवीण तोगड़िया ने यहां पर आंदोलन किया इस दौरान तत्कालीन कलेक्टर संजय दुबे के साथ धक्का मुक्की भी हुई इसके बाद फिर नया आदेश निकाला जिसमें व्यवस्था की गई की हिंदू मंगलवार को सूर्योदय से सूर्यास्त तक पूजन कर सकेंगे और मुस्लिम हर शुक्रवार को दोपहर एक से तीन नमाज अदा कर सकेंगे। साथ ही बसंत पंचमी के दिन हिंदू पूजा कर सकेंगे

-     यही स्थिति अब भी है

-    एक तथ्य यह भी कहा जाता है कि यह 0.405 हेक्टयर का एरिया मूल रूप से सर्वे नंबर 313 (ओल्ड व न्यू सर्वे नंबर 604) भोजशाल से जुड़ा हुआ है, वहीं सर्वे नंबर 302 अलग है जिसमें दरगाह है। इसका भोजशाला से कोई वास्ता नहीं है। 

-    आर्कियोलॉजिकल की रिपोर्ट में भी यह इसके हिंदू स्थल के कई प्रमाण मिले हैं, जैसे कि यहां मुख्य अधिस्थान सुरक्षित है, प्रवेश पर अर्धचंद्रकीय है, भगवान गणेश का भी स्वरूप मिला है। विष्णु का कुर्मावतार के भी चिन्ह मिले हैं।

Basant Panchami Ayodhya Ram Temple