पूर्व सीएम दिग्विजय सिंह ने सांसद रोडमल नागर पर चुनाव याचिका के बहाने इस तरह EVM को घेरा

दिग्विजय सिंह ने चुनाव याचिका में EVM के घेरने के लिए एसएलयू को टारगेट किया है। याचिका में कहा गया है कि आयोग का दावा है कि ईवीएम स्टेंड अलोन मशीन है। यानी यह किसी भी तरह से इंटरनेट या बाहरी संसाधन से लिंक नहीं होती है।

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Sanjay gupta
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पूर्व सीएम दिग्विजय सिंह
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पूर्व सीएम दिग्विजय सिंह और EVM का 36 का आंकड़ा है। ईवीएम को लेकर पहले भी कई आवेदन, याचिकाएं दायर हुई हैं, जो खारिज हो चुकी हैं, लेकिन अब एक बार फिर दिग्विजय सिंह ( Digvijay Singh ) ने ईवीएम को घेरा है।

इसके लिए राजगढ़ सांसद रोडमल नागर के खिलाफ चुनाव याचिका (EP) को आधार बनाया गया है। इस नोटिस में हाईकोर्ट इंदौर ने नागर और चुनाव आयोग को नोटिस जारी कर जवाब मांगा है। इस पूरी याचिका में निशाना नागर नहीं बल्कि चुनाव आयोग और ईवीएम है। 

अब SLU के जरिए EVM टारगेट

दिग्विजय सिंह ने चुनाव याचिका में ईवीएम के घेरने के लिए एसएलयू यानी सिंबल लोडिंग यूनिट को टारगेट किया है। याचिका में कहा गया है कि आयोग का दावा है कि ईवीएम स्टेंड अलोन मशीन है। यानी यह किसी भी तरह से इंटरनेट या बाहरी संसाधन से लिंक नहीं होती है, लेकिन एसएलयू के लिए नेट का प्रयोग किया जाता है।

इसमें सर्वर पर साफ्टवेयर को इंटरनेट के जरिए भेजा गया। फिर इसे एसएलयू पर अपलोड किया गया। दिग्विजय सिंह ने एसएलयू पर जो साफ्टेवयर डाला है उसकी पूरी जानकारी ईसी से मांगने का जिक्र भी याचिका में किया है, लेकिन उन्हें चुनाव के समय नहीं दी गई। इसके लिए एजेंट के जरिए निर्वाचन अधिकारी के सामने लिखित आपत्ति लगाई गई थी।

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क्या होती ही एसएलयू

दरअसल चुनाव में वोटिंग से पहले फाइनल नाम तय हो जाने के बाद वीवीपैट पर उम्मीदवार का नाम और प्रतीक चिन्ह अपलोड होता है। यह करने का काम एक छोटी मशीन एसएलयू के जरिए होता है। कम्प्यूटर पर पहले नाम और चिन्ह अंकित एक साफ्टेवयर पर अपलोड होता है और फिर यह एसएलयू में शिफ्ट होता है।

इसके बाद हर वीवीपैट पर एसएलयू को लिंक करके उसमें यह अपलोड किए जाते हैं। सामान्य तौर पर हर विधानसभा के लिए एक एसएलयू होती है। यह काम पूरा होने के बाद इसे निर्वाचन अधिकारी की सुरक्षा में रखा जाता है।  

दिग्गी का यह कहना और आयोग के यह दावे

दिग्गी का याचिका में कहना है कि सर्वर पर साफ्टवेयर को इंटरनेट के माध्यम से BEL के इंजीनियरों के पास भेजा गया और फिर इंजीनियर से इंटरनेट के माध्यम से मिले साफ्टेवयर पर प्रत्याशी का नाम और चिन्ह, सीरियल नंबर बनाकर उसे साफ्टवेयर पर अपलोड किया गया और नेट का ही प्रयोग कर इसे एसएलयू में अपलोड किया गया। इस तरह अब यह स्टेंड अलोन मशीन नहीं हुई और इंटरनेट का प्रयोग हुआ।

 वहीं आयोग का दावा रहा है कि इसमें नेट का प्रयोग नहीं होता है। कम्प्यूटर से लिंक कर प्रत्याशी का नाम और चिन्ह लिया जाता है। फिर वीवीपैट से एसएलयू को लिंक कर वीवीपैट में यह अपलोड किया जाता है। इसमें किसी तरह से नेट का प्रयोग नहीं किया जाता है।

sanjay gupta

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