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INDORE. इंदौर शहर की मशहूर सराफा चौपाटी अब विवाद में फंस गई है। पहले यह सिर्फ स्वाद और रौनक के लिए जानी जाती थी। अब यहां कई तरह की परेशानियां सामने आ रही हैं। सराफा एसोसिएशन का कहना है कि चौपाटी खतरा बन गई है। वे सुरक्षा और सफाई की मांग कर रहे हैं। वहीं, पारंपरिक दुकानदार अपनी पहचान बचाने की कोशिश में हैं। स्ट्रीट फूड वाले अपनी रोजी का हवाला दे रहे हैं।
बीच में नगर निगम फंसा हुआ है। उसने आदेश तो दिए, पर उन पर अमल नहीं कराया। इससे मामला और उलझ गया है। कमरे में फैसले हुए, लेकिन मैदान में कुछ भी नहीं बदला है।
सराफा एसोसिएशन ने जताई चिंता
सराफा एसोसिएशन के अध्यक्ष हुकुम सोनी ने चिंता जताई है। उनका कहना है कि चौपाटी बारूद के ढेर पर बैठी है। यहां खुले में खाना बनता है और गलियां बहुत संकरी हैं। गैस भट्टियां बिना सुरक्षा के चलते हैं।
वहीं सराफा में सोना-चांदी का काम भी होता है। इसमें तेजाब और गैस दोनों का इस्तेमाल होता है। ऐसे में जरा सी चूक बड़ा हादसा कर सकती है। सोनी का कहना है कि शहर को भारी नुकसान झेलना पड़ सकता है।
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निगम का शिफ्टिंग प्लान और विवाद की शुरुआत
सराफा चौपाटी में बढ़ती भीड़ और सुरक्षा की चिंता को देखकर नगर निगम ने एक रिपोर्ट बनाई है। रिपोर्ट में कहा गया कि चौपाटी को दूसरी जगह शिफ्ट किया जाए। जैसे ही यह बात लोगों तक पहुंची, विरोध शुरू हो गया। चौपाटी संचालक और व्यापारी दोनों नाराज हो गए। इसी वजह से मामला विवादों में फंस गया है।
इंदौर सराफा बाजार की खबर पर एक नजर...
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विवाद बढ़ने पर बनी कमेटी
विवाद बढ़ने पर इंदौर नगर निगम ने एक कमेटी बना दी। इसमें सराफा एसोसिएशन के दो सदस्य शामिल थे। चौपाटी के भी दो सदस्य लिए गए। साथ में निगम के अधिकारी भी थे।
इस टीम की अगुवाई अपर आयुक्त रोहित सीसोनिया ने की। कई मीटिंग हुईं और बात आगे बढ़ी। आखिर में तय हुआ कि यहां सिर्फ पारंपरिक दुकानें ही लगेंगी। इससे सराफा की पहचान और सुरक्षा दोनों बनी रहेंगी।
राजनीतिक दबाव भी दिखा
जब 50 से 55 पारंपरिक दुकानों की पहली सूची बनी तो दबाव बढ़ गया। कई नेताओं ने मांग की कि उनके लोगों को भी जगह दी जाए। इसी वजह से सूची बार-बार बदली गई। आखिर में 80 पारंपरिक दुकानदारों को अनुमति देने का फैसला हुआ। राजनीति की खींचतान ने पूरे सिस्टम को हिला कर रख दिया।
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चाइनीज व फास्ट-फूड स्टॉल बाहर
कमेटी ने साफ किया कि कुछ स्टॉल हटाए जाएंगे। इनमें चाइनीज फूड और मोमोज वाले स्टॉल शामिल थे। फास्ट फूड और ऐसे अनियमित स्टॉल भी हटाने की बात हुई।
इस फैसले से सराफा व्यापारी राहत में थे। उन्हें लगा कि अब पारंपरिक दुकानों की पहचान बची रहेगी। एसोसिएशन ने भी मुश्किल से इस समझौते को मान लिया।
फैसले के बाद नया विवाद, पुराने संचालक मैदान में
फैसला आते ही वे लोग सामने आ गए जिन्हें सूची में जगह नहीं मिली। ये वही लोग हैं जो 15, 20 या 25 साल से यहां खाने की दुकान चला रहे थे। उनका कहना है कि पारंपरिक दुकानदार तो अमीर हैं। उन्हें हटाकर उनका घर कैसे चलेगा। वे चाहते हैं कि उनकी दुकानें भी चलने दी जाएं। इसी मांग को लेकर वे सराफा थाने के सामने धरने पर बैठ गए।
निगम ने मैदान में हाथ खड़े किए
बुधवार, 27 नवंबर को सराफा की टीम मौके पर पहुंची। उन्होंने दुकानदारों से कहा कि दुकानें रात 9:30 बजे के बाद ही लगें। निगम कर्मचारी भी आए, लेकिन उन्होंने साफ कहा कि उन्हें कोई सूची नहीं मिली। उन्हें सिर्फ इतना कहा गया है कि दुकानें साढ़े 9 के बाद लगें।
अपर आयुक्त ने एसोसिएशन अध्यक्ष हुकुम सोनी से कहा कि वे 80 दुकानदारों को ही लगाने दें और बाकी को रोकें। हुकुम सोनी ने यह काम करने से मना कर दिया। उन्होंने कहा कि यह जिम्मेदारी निगम की है। नतीजा यह हुआ कि चौपाटी में हर दुकान लग गई। निगम कोई फैसला लागू नहीं करा सका। कमरे में फैसले बने, लेकिन जमीन पर कुछ भी नहीं हुआ।
महापौर का बयान
जब इस मामले पर इंदौर महापौर पुष्यमित्र भार्गव से बात की गई तो उन्होंने कहा कि वही दुकानें लगेंगी जिन्हें कमेटी ने तय किया है। वहीं, जमीनी स्तर पर स्थिति बिल्कुल अलग दिख रही है। ग्राउंड पर फैसलों का असर नजर ही नहीं आ रहा।
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