2800 करोड़ डुबोने वाले PHE के 121 इंजीनियर नपेंगे, फिर मिलेंगे 2100 करोड़

जल जीवन मिशन में पीएचई के 121 इंजीनियरों की लापरवाही से 2800 करोड़ का अतिरिक्त बोझ राज्य सरकार पर पड़ा। डीपीआर में मनमानी बढ़ोतरी और कई गांवों में सर्वे की कमी सामने आई है। राज्य सरकार ने इंजीनियरों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई का आदेश दिया है।

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Jitendra Shrivastava
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Photograph: (THESOOTR)

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लगता है मोहन सरकार, पीएचई के लापरवाह इंजीनियरों को बख्शने के मूड में बिल्कुल नहीं है। जल जीवन मिशन के तहत मनमर्जी से डीपीआर (डिटेल प्रोजेक्ट रिपोर्ट) बनाकर इन इंजीनियरों ने विभाग को 2800 का झटका लगवा दिया है। 

'thesootr' को मिली जानकारी के अनुसार विभाग की प्रमुख सचिव पी नरहरि को साफ कह दिया गया है कि पहले इन लोगों पर एक्शन लें, इसके बाद ही सरकार योजना के करीब 2100 करोड़ खर्च करने की अनुमति देगी। 

आइए पहले समझें कि पूरा मामला क्या है? 

मध्य प्रदेश में जल जीवन मिशन के तहत पानी पहुंचाने की योजना में बड़ा घोटाला सामने आया था। इंजीनियरों ने गांवों में सर्वे से छूटे घरों तक पानी पहुंचाने के नाम पर टेंडर की डीपीआर में गड़बड़ी कर बदल दी थी। रिपोर्ट में लागत 50 से 60 फीसदी तक बढ़ा दी गई थी। यह पूरा खेल विभाग के बड़े अधिकारियों और इंजीनियरों की मिलीभगत से हुआ था।

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शिकायत से खुली पोल

गांवों में जल जीवन मिशन के तहत सही ढंग से सर्वे न होने की शिकायत जिलों के कलेक्टरों के जरिए पीएचई के प्रमुख सचिव पी. नरहरि तक पहुंची थीं। इसके बाद नरहरि ने गांवों का जायजा लिया था, जहां चौंकाने वाली सच्चाई सामने आई थी- प्रदेश के करीब 8 लाख घरों का सर्वे हुआ ही नहीं था। जांच रिपोर्ट उन्होंने मुख्य सचिव अनुराग जैन को सौंपी थी और मामला आगे मुख्यमंत्री मोहन यादव तक पहुंच गया था।

जिम्मेदार मंत्री के जिले में सबसे ज्यादा गड़बड़ी

चौंकाने वाली बात यह भी थी कि मंत्री संपतिया उईके के गृह जिला मंडला में टेंडर की दरें 117 फीसदी तक बढ़ा दी गई थीं। वहीं उनके प्रभार वाले जिले सिंगरौली में यह बढ़ोतरी रिकॉर्ड स्तर पर, यानी 265 फीसदी तक पहुंच गई थी।

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2800 करोड़ पर अटकी मंजूरी

इंजीनियरों की लापरवाही से न सिर्फ लाखों घर सर्वे से छूट गए थे, बल्कि योजना की लागत भी बेहिसाब बढ़ गई थी। इस कारण मुख्य सचिव ने 2800 करोड़ रुपए की बढ़ी हुई राशि को मंजूरी के लिए कैबिनेट में पेश करने का प्रस्ताव रखा था और दोषी अधिकारियों पर कार्रवाई के निर्देश भी दिए थे।

आठ लाख घरों तक पहुंचा ही नहीं पानी

इंजीनियरों की लापरवाही से प्रदेश के 8 लाख से ज्यादा घरों तक पानी पहुंचाने का सर्वे ही नहीं हो पाया था। इस गड़बड़ी के बाद CS अनुराग जैन ने 2800 करोड़ की बढ़ी हुई लागत को मंजूरी देने के लिए कैबिनेट में प्रस्ताव भेजने को कहा था, साथ ही दोषी अधिकारियों पर कार्रवाई के निर्देश भी दिए थे। अब उन टेंडरों की जांच जारी है, जिनकी डीपीआर में लागत 30 प्रतिशत से ज्यादा बढ़ाई गई थी।

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8425 योजनाओं की असलियत

जांच में सामने आया था कि प्रदेश में 8425 एकल ग्राम नल जल योजना के लिए कुल 6340 करोड़ रुपए के टेंडर मंजूर हुए थे। लेकिन कई गांवों में नल कनेक्शन कभी पहुंचे ही नहीं थे। इसके बाद इंजीनियरों से डीपीआर को रिवाइज्ड करवाया गया था, जिसके चलते कुल लागत बढ़कर 9165 करोड़ तक पहुंच गई थी। यानी अकेले इस हेरफेर से प्रदेश पर करीब 2800 करोड़ रुपए का अतिरिक्त बोझ पड़ा था।

केंद्र ने किया इंकार, राज्य पर बोझ

केंद्र सरकार ने रिवाइज्ड डीपीआर के लिए फंड देने से साफ मना कर दिया था। नतीजतन राज्य सरकार को ही इस अतिरिक्त 2800 करोड़ रुपए का भार उठाना पड़ा था। इसके बाद जिम्मेदारी तय करने के लिए कार्रवाई शुरू की गई और 141 इंजीनियरों को नोटिस थमा दिए गए थे।

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इधर केबिनेट में सरकार ने मंजूर किए, लेकिन… 

2 सितंबर को हुई मोहन केबिनेट की बैठक में सरकार ने राशि 2,813 करोड़ 21 लाख रुपए पीएचई को मंजूर कर दिए हैं। यह राशि योजना का लगभग 13.55 प्रतिशत है, लेकिन असल पेच यहीं फंस गया है।

सरकार को 2800 करोड़ का नुकसान करवाने वाले पीएचई के इंजीनियर्स को सीएस अनुराग जैन के निर्देश पर पहले ही नोटिस जारी कर दिए गए हैं, मगर इस केबिनेट में एक बार फिर सीएस ने पीएचई के प्रमुख सचिव पी नरहरि से साफ कर दिया है कि “ PHE 2,813 करोड़ 21 लाख रुपए की राशि तभी खर्च कर सकेगा, जब 141 इंजीनियरों के खिलाफ सख्त कार्रवाई होगी।”

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2800 करोड़ का नुकसान: 

जल जीवन मिशन के तहत पीएचई विभाग ने डीपीआर में हेरफेर कर सरकार को 2800 करोड़ का नुकसान पहुंचाया।

141 इंजीनियरों को नोटिस:

मामले के उजागर होने पर 141 इंजीनियरों को नोटिस जारी किए गए, जिन्होंने टेंडर लागत 50-60% तक बढ़ाई थी।

मंत्री के जिलों में रेट में भारी बढ़ोतरी:

मंत्री के गृह जिले मंडला में 117% और प्रभार वाले सिंगरौली में 265% तक रेट बढ़ाए गए।

केंद्र ने फंड देने से किया इनकार:

केंद्र सरकार ने रिवाइज्ड डीपीआर के लिए फंड देने से मना कर दिया, जिससे राज्य सरकार पर अतिरिक्त बोझ पड़ा।

फर्जीवाड़ा और जांच:

डीपीआर में बदलाव, पाइप खरीदी में गड़बड़ी और डिज़ाइन में फर्जीवाड़ा उजागर हुआ। अब उच्चस्तरीय जांच और कार्रवाई जारी है।

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