कमलनाथ के साथ ये MLA और मेयर जा सकते हैं BJP में, पढ़िए नाम

छिंदवाड़ा जिले के समर्थक विधायक सहित 10 पूर्व विधायकों के कांग्रेस छोड़ने की अटकलें चल रही हैं। वहीं ग्वालियर महापौर शोभा सिकरवार, मुरैना महापौर शारदा सोलंकी, पूर्व विधायक निशंक जैन, शशांक भार्गव, हर्ष यादव भी बीजेपी में जा सकते हैं! मध्यप्रदेश

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Jitendra Shrivastava
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BHOPAL. पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ के करीबी विधायकों ने दावा किया है कि कांग्रेस नेता अपने बेटे नकुलनाथ के साथ 19 फरवरी को बीजेपी में शामिल हो सकते हैं। उनके साथ 10 से 12 विधायक, 2 नगर अध्यक्ष और एक महापौर भी कांग्रेस छोड़कर बीजेपी में शामिल हो सकते हैं। इस बात में सच्चाई इसलिए भी नजर आ रही है, क्योंकि छिंदवाड़ा दौरा 18 फरवरी तक होना था, जबकि कमलनाथ इसे बीच में छोड़कर दिल्ली चले गए हैं। 

कमलनाथ के साथ ये भी जा सकते हैं 

छिंदवाड़ा से सांसद नकुलनाथ ने जैसे ही एक्स से कांग्रेस का लोगो हटाया वैसे ही पूर्व मंत्री सज्जन सिंह वर्मा ने भी अपने ट्विटर हैंडल से लोगो हटा दिया। इसको लेकर कयास लगने लगे हैं कि वर्मा भी कांग्रेस छोड़ सकते हैं। इसी तरह सांसद विवेक तन्खा के नाम की भी चर्चा कांग्रेस छोड़ने को लेकर हो रही है।

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इनको लेकर भी कांग्रेस छोड़ने की अटकलें

छिंदवाड़ा जिले के विधायक जो कमलनाथ समर्थक हैं उनमें दिनेश गुर्जर, लखन घनघोरिया, निर्मला सप्रे, सुनील उइके, अभिजीत शाह, आरके दोगने, बाला बच्चन, महेश परमार, नारायण पट्टा, रामसिया भारती, मधु भगत, संजय उइके, अनुभा मुंजारे, विक्की पटेल, फुंदेलाल मार्को, चैनसिंह वरकड़े, कमलेश प्रताप शाह, चौधरी सुमेर सिंह, विजय रेवनाथ चौरे, सोहन वाल्मीकि, नीलेश उइके सहित 10 पूर्व विधायकों के कांग्रेस पार्टी छोड़ने की अटकलें चल रही हैं। वहीं विधायक सतीश सिकरवार की पत्नी ग्वालियर महापौर शोभा सिकरवार, मुरैना महापौर शारदा सोलंकी, पूर्व विधायक निशंक जैन, शशांक भार्गव, हर्ष यादव भी बीजेपी में जा सकते हैं!

जीतू पटवारी के सामने आ सकती है ये चुनौतियां...

  • समर्थकों का क्या होगा, क्या वे भी जाएंगे।
  • संजय शुक्ला, तरुण भनोट, सुखदेव पांसे, निलय डागा, पीयूष बबेले, सैयद जाफर सतना समेत 13 विधायक एवं रीवा समेत 3 महापौर बताए जा रहे कमलनाथ के नजदीकी।

कमलनाथ के बीजेपी में जाने के अहम कारण...

  1. विधानसभा चुनाव में हारः मध्य प्रदेश विधानसभा चुनावों में कांग्रेस ने कमलनाथ के नेतृत्व में चुनाव लड़ा। प्रदेश की 230 में से भाजपा ने 163, कांग्रेस ने 66 और भारत आदिवासी पार्टी ने एक सीट जीती थी। कांग्रेस ने विधानसभा चुनावों में हार का ठीकरा फोड़ दिया। उन्हें इसके लिए जिम्मेदार ठहराया गया। अन्य नेताओं ने भी उन्हें अलग-थलग कर दिया। 
  2. अध्यक्ष पद से हटायाः विधानसभा चुनावों में हार के बाद कांग्रेस ने एकाएक अपना प्रदेश अध्यक्ष बदल दिया। राहुल गांधी के करीबी रहे जीतू पटवारी को प्रदेश कांग्रेस की बागडोर सौंपी गई। न तो कमलनाथ से रायशुमारी हुई और न ही उन्हें बताया गया और अचानक उन्हें बदलने का फरमान जारी हो गया। इससे भी आहत हुए थे। भले ही सार्वजनिक मंच पर उन्होंने इसे छिपाया, लेकिन नाराजगी नहीं छिपा सके। 
  3. केंद्र में जाना चाहते थेः नाथ की सक्रियता हमेशा से केंद्रीय राजनीति में रही है। 2018 के विधानसभा चुनावों से ठीक पहले उन्हें मध्य प्रदेश में भेजा गया था। जब सरकार चली गई तो लगा कि उन्हें फिर से दिल्ली बुला लिया जाएगा। इसके विपरीत पार्टी ने उन्हें मध्य प्रदेश में ही उलझाए रखा। 2023 के विधानसभा चुनावों में हार के बाद वे फिर दिल्ली जाना चाहते थे, लेकिन पार्टी ने उनकी नहीं सुनी।   
  4. दिल्ली का टिकट न मिलनाः कमलनाथ राज्यसभा का चुनाव लड़कर केंद्रीय राजनीति का हिस्सा बनना चाहते थे। उन्होंने कांग्रेस विधायकों के लिए एक डिनर भी रखा था। तब पार्टी ने मध्य प्रदेश से राज्यसभा के लिए सोनिया गांधी को चुनाव लड़ने का आग्रह किया। जब सोनिया गांधी ने राजस्थान को चुना तो दिग्विजय सिंह के समर्थक अशोक सिंह को राज्यसभा का उम्मीदवार बना दिया गया। यह पूर्व मुख्यमंत्री को अच्छा नहीं लगा। 
  5. दिग्विजय सिंह से अनबनः विधानसभा चुनावों के दौरान बीजेपी से आए कुछ विधायकों और पूर्व विधायकों के टिकट को लेकर पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह से भी अनबन हुई थी। इसका एक वीडियो भी वायरल हुआ था, जिसमें वह टिकट मांग रहे नेताओं को कह रहे हैं कि जाकर दिग्विजय सिंह के कपड़े फाड़ो। अब नाथ खेमे को लगता है कि यह सब पार्टी के एक धड़े ने किया। उनके खिलाफ माहौल बनाया गया।
कांग्रेेस कमलनाथ