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Photograph: (the sootr)
राकेश कुमार शर्मा @ जयपुर
राजस्थान कांग्रेस में अब भी सब कुछ ऑल इज वैल नहीं है। आपसी गुटबाजी और एक-दूसरे को पटखनी देने के चलते करीब पौने दो साल पहले राजस्थान की सत्ता से बाहर हुई कांग्रेस के वरिष्ठ नेताओं में खींचतान थमने का नाम नहीं ले रही है।
अंदरखाने कांग्रेस दिग्गज अपने अपने समर्थकों के लिए संघर्ष करते देखे जा सकते हैं। हाल ही में पार्टी में 6 निष्कासित नेताओं की घर वापसी हुई है। घर वापसी की इस सियासत में भी अपने अपने समर्थकों के लिए वरिष्ठ नेताओं का अहम रोल माना जा रहा है। पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत और पूर्व उपमुख्यमंत्री सचिन पायलट ने अपने समर्थकों को पार्टी में वापसी के लिए पूरी जोर आजमाइश की।
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कांग्रेसी बता रहे सामान्य घटना
पूर्व विधायक मेवाराम जैन और बालेंदु सिंह की वापसी को लेकर स्थानीय नेताओं की नाराजगी को भी नजरअंदाज कर दिया गया। एक स्थानीय पदाधिकारी ने तो मेवाराम जैन की वापसी को लेकर संगठन से इस्तीफा दे दिया था। मेवाराम जैन के निष्कासन रद्द होने के आदेश निकलते ही बाड़मेर में हंगामा हो गया। उनके अश्लील वीडियो कांड से जुड़े फोटोज के बड़े-बड़े होर्डिंग्स बाडमेर शहर में लगा दिए गए। बावजूद इसके वरिष्ठ नेता इसे सामान्य घटना बताकर नजरअंदाज करने के बयान दे रहे हैं।
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इन नेताओं की हुई वापसी
कांग्रेस ने अश्लील वीडियो के चलते संगठन से निकाले गए बाड़मेर से तीन बार के विधायक मेवाराम जैन, बालेंदु सिंह शेखावत सीकर, संदीप शर्मा चित्तौड़गढ़, बलराम यादव सीकर, अरविन्द डामोर बांसवाड़ा एवं तेजपाल मिर्धा नागौर का निष्कासन रद्द करते हुए पार्टी में वापस लिया है। मेवाराम जैन को छोड़कर शेष नेताओं को विधानसभा चुनाव में पार्टी प्रत्याशी को हराने और संगठन विरोधी कृत्यों की शिकायतों को लेकर पार्टी से छह साल के लिए निष्कासित किया गया था। बालेंदु सिंह कांग्रेस के वरिष्ठ नेता व राजस्थान विधानसभा के पूर्व अध्यक्ष दीपेन्द्र सिंह शेखावत के पुत्र हैं। वे श्रीमाधोपुर से टिकट मांग रहे थे, लेकिन पार्टी ने उनके पिता दीपेन्द्र सिंह शेखावत को टिकट दिया।
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कई लोगों की हुई थी शिकायत
बताया जाता है कि पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के बेटे वैभव गहलोत की शिकायत पर बालेंदु सिंह को पार्टी से निकाला गया। बालेन्दु सचिन पायलट के समर्थक हैं। वैभव गहलोत ने जालोर-सिरोही लोकसभा सीट से लोकसभा चुनाव लड़ने के दौरान उन्हें हराने के लिए पार्टी विरोधी गतिविधियों में लिप्त रहे नेताओं की शिकायत की थी। इनमें बालेंदु का भी नाम बताया जाता है। बांसवाड़ा सीट से लोकसभा चुनाव में अरविन्द डामोर पार्टी के मना करने पर भी चुनावी मैदान में डटे रहे और पार्टी प्रत्याशी को नुकसान पहुंचाया था। इसी तरह तेजपाल मिर्धा, संदीप शर्मा व बलराम यादव भी पार्टी विरोधी कृत्यों से पार्टी से बाहर किए गए।
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इसलिए हाथ से निकली सत्ता
कांग्रेस में अब भी ऑल इज वैल नहीं है। गुटबाजी और आपसी खींचतान के चलते पिछले विधानसभा चुनाव में पार्टी सत्ता से बाहर हो गई थी। तब मुख्यमंत्री अशोक गहलोत और पूर्व प्रदेश अध्यक्ष सचिन पायलट के अलग-अलग गुट थे। दोनों ही नेताओं ने अपने-अपने समर्थकों को टिकट दिलवाए और उन्हें जितवाने में कसर नहीं छोड़ी। जिन्हें टिकट नहीं मिले, उन्हें निर्दलीय लड़ाया। दोनों ही गुट अंदरखाने एक-दूसरे के समर्थकों को हराने में लगे रहे। नतीजा दो दर्जन से अधिक सीटें मामूली अंतरों से हार गई और कांग्रेस सत्ता से बाहर हो गई। तब कांग्रेस को 69 सीटें मिली थी। अगर गुटबाजी नहीं होती और दोनों नेता साथ मिलकर चुनावी मैदान में उतरते, तो भाजपा की जीत की राह मुश्किल हो जाती।
नहीं मिल पा रहे दिल
चुनाव हारने के बाद दोनों नेता अलग-अलग राह पर रहे, लेकिन पार्टी आलाकमान की समझाइश पर गहलोत व पायलट एकसाथ मंच पर दिखने लगे हैं। कभी एक-दूसरे के खिलाफ बयानबाजी करने वाले दोनों नेता अब सार्वजनिक रूप से एक-दूसरे की प्रशंसा भी करने लगे हैं। दिवंगत कांग्रेस नेता राजेश पायलट की स्मृति में आयोजित कार्यक्रम में अशोक गहलोत भी पहुंचे थे, तब पायलट उन्हें मंच तक लेकर गए। चुनाव हारने के बाद दोनों ही नेता एक-दूसरे के खिलाफ बयानबाजी से बच रहे हैं। हालांकि दिल अभी नहीं मिले हैं।
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मेवाराम को लाने में गहलोत कामयाब
घर वापसी कार्यक्रम में गहलोत तमाम विरोध व नैतिकता को दरकिनार करते हुए पूर्व विधायक मेवाराम जैन को फिर से पार्टी में लेने में सफल रहे। विरोधी गुट तमाम शिकायतों के बाद भी कुछ नहीं कर पाया। राष्ट्रीय अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे तक शिकायत की। अनुशासन समिति की सिफारिशों के आधार पर जैन की नई दिल्ली में वापसी करवा दी, इसकी खबर तक किसी को नहीं लगने दी।
वहीं पायलट ने बालेंदु और तेजपाल की फिर से वापसी करवाई। अब दोनों ही नेताओं की संगठन पर नजर है। वर्तमान पीसीसी चीफ गोविंद सिंह डोटासरा का कार्यकाल समाप्ति की ओर है। दोनों ही वरिष्ठ नेता इस पद पर अपने समर्थक नेताओं को बिठाने के लिए प्रयत्नशील हैं। वहीं डोटासरा भी लोकसभा में पार्टी को मिली जीत और प्रदेश में संगठन की मजबूती के आधार पर फिर से कमान संभालने के लिए लगे हुए हैं।
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गहलोत-पायलट की सक्रियता जारी
उधर, भले ही सार्वजनिक रूप से गहलोत व पायलट एक-दूसरे को सम्मान दे रहे हों या मंच शेयर कर रहे हों, लेकिन कांग्रेस सरकार के दौरान एक-दूसरे को पटखनी देने के कृत्यों, बयानबाजी, सरकार गिराने, सीडी प्रकरण, देशद्रोह के मुकदमे जैसे मामलों को भूले नहीं हैं। दोनों ही अपने दौरों के माध्यम से प्रदेश में पकड़ बनाने में लगे हुए हैं। साथ ही अपने समर्थकों को पार्टी जॉइन करवाने व मजबूत जिम्मेदारी देने में भी जुटे हुए हैं।