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Photograph: (the sootr)
मुकेश शर्मा @ जयपुर
राजस्थान में राज्य सरकार भले ही वन स्टेट वन इलेक्शन पॉलिसी के तहत प्रदेश की सभी ग्राम पंचायतों और नगर पालिकाओं के एकसाथ चुनाव कराए जाने का दावा करे, लेकिन संवैधानिक और कानूनी बाध्यताओं के कारण यह फिलहाल संभव होता नहीं दिख रहा है। संविधान के अनुसार, पंचायत और शहरी निकायों का कार्यकाल 5 साल होता है। कार्यकाल न पांच साल से कम हो सकता है, ना ही ज्यादा।
नियमों के अनुसार, राज्य निर्वाचन आयोग को पांच साल का कार्यकाल पूरा होने से 6 महीने पहले ही चुनाव करवाने की तैयारी शुरू करके चुनाव करवा लेने चाहिए थे, लेकिन अधिकांश पंचायतों और निकायों का कार्यकाल समाप्त हो चुका है, जबकि कुछ का होना बाकी है। सरकार और निर्वाचन आयोग ने चुनाव करवाने के अभी तक कोई कदम नहीं उठाए और वन स्टेट वन इलेक्शन करवाने का राग अलाप रही है।
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मंत्री समूह की सिफारिशें मंजूर, पर राह आसान नहीं
मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा ने 22 अगस्त को पंचायती राज और शहरी निकायों के परिसीमन और पनर्गठन के संबंध में मंत्रियों की दो सब कमेटियों की सिफारिशों को अनुमोदित कर दिया है। सरकार का दावा है कि इस फैसले से राजस्थान वन स्टेट वन इलेक्शन की तरफ अग्रसर है। जानकारों का कहना है कि वन स्टेट वन इलेक्शन की राह इतनी आसान नहीं है, जिसे सरकार तत्काल पूरी कर सके। सरकार के सामने सबसे बड़ी अड़चन संवैधानिक है। इसके बगैर पंचायती राज और शहरी निकायों के चुनाव एकसाथ नहीं कराए जा सकते हैं।
कोई भी कानून संविधान के विपरीत नहीं
सीनियर एडवोकेट आरबी माथुर का कहना है कि ग्राम पंचायत और स्थानीय निकाय संवैधानिक प्रावधानों के तहत बंधी हुई है। संविधान में पंचायतों व स्थानीय निकायों का कार्यकाल पांच साल तय है। विधि का यह सुस्थापित सिद्धांत है कि कोई भी कानून संविधान के विपरीत नहीं हो सकता। इसलिए राजस्थान पंचायती राज कानून और राजस्थान नगर पालिका कानून के तहत भी इन संस्थाओं का कार्यकाल पांच साल तय है।
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अदालती रोक से रुकी चुनावी तैयारियां
राज्य चुनाव आयोग ने हाल ही में एकल पीठ के एक आदेश में की गई टिप्पणियों के बाद चुनाव करवाने की तैयारियां शुरू कर दी थीं, लेकिन सरकार की अपील पर खंडपीठ के रोक लगाने से इन तैयारियों पर ब्रेक लग गया। दरअसल, सरकार ने कार्यकाल समाप्त होने के बाद पंचायतों में सरपंचों को प्रशासक लगा दिया था। बाद में इनको हटाने के कारण मामला राजस्थान हाई कोर्ट पहुंचा था। एकल पीठ ने इस मामले में दिए आदेश में कहा था कि निर्वाचन आयोग संवैधानिक रूप से पंचायतों व निकायों का कार्यकाल समाप्त होने के छह महीने के भीतर चुनाव करवाने के लिए बाध्य है।
जनहित याचिकाओं पर सुनवाई पूरी
उधर, ग्राम पंचायतों के चुनाव करवाने के लिए गिरिराज व अन्य और पालिका चुनाव के लिए पूर्व विधायक संयम लोढ़ा की जनहित याचिकाओं पर खंडपीठ सुनवाई पूरी कर फैसला सुरक्षित कर चुकी थी। सरकार ने एकल पीठ के आदेश के खिलाफ अपील की और कहा कि समान मुद्दे पर एकल पीठ का आदेश सही नहीं है। इस पर खंडपीठ ने इस आदेश पर रोक लगा दी थी। इससे निर्वाचन आयोग की तैयारियां भी ठहर गईं। जनहित याचिकाओं में परिसीमन के मुद्दे को भी चुनौती दी है। ऐसे में जब तक अदालती फैसला नहीं आता, तब तक चुनावी तैयारियां रुकी रहेंगी।
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ओबीसी आरक्षण भी बड़ा कारण
पंचायतों और निकायों के चुनाव में देरी का एक मुख्य कारण ओबीसी वार्डों का निर्धारण होना भी है। इसके लिए राजस्थान सरकार ने सुप्रीम कोर्ट के निर्देश के तहत पांच सदस्यीय राजस्थान पिछड़ा वर्ग (राजनीतिक प्रतिनिधित्व) आयोग का गठन कर दिया है। आयोग को पूरे राज्य में आर्थिक, सामाजिक और राजनीतिक प्रतिनिधित्व का घर-घर सर्वे करना होगा। साथ ही आयोग सभी राजनीतिक दलों और संबंधित पक्षकारों से सुझाव लेगा। सर्वे के आंकड़ों और सुझावों के आधार पर आयोग सरकार को ओबीसी आरक्षण के मैकेनिज्म पर रिपोर्ट देगा और फिर ओबीसी वार्ड तय होंगे। आयोग ने सभी कलेक्टरों को सर्वे का फॉर्मेट भेज दिया है। जल्द ही सर्वे प्रारंभ होगा और करीब 10 दिन में पूरा होगा। इसके बाद आयोग नवंबर के महीने तक सरकार को रिपोर्ट दे देगा।
कानून में बदलाव अभी संभव नहीं दिखता
एडवोकेट पीसी देवंदा ने बताया कि वर्ष 2020 में कोविड के बावजूद सरकार संवैधानिक बाध्यता के कारण पालिका चुनाव करवाने पर अड़ी हुई थी, लेकिन राजस्थान हाई कोर्ट के दखल के कारण चुनाव टल गए थे और अंतत: नवंबर में चुनाव हुए थे। सुप्रीम कोर्ट अनेक बार कह चुका है कि जब तक किसी प्राकृतिक आपदा के कारण जान-माल का भयंकर नुकसान ना हुआ हो, तो पंचायत और स्थानीय निकायों के चुनाव टाले नहीं जा सकते, लेकिन अभी कोविड जैसी स्थितियां नहीं होने के बावजूद सरकार राजनीतिक कारणों से समय पर चुनाव नहीं करवा रही है। वन स्टेट वन इलेक्शन के लिए संविधान और कानून में बदलाव करना होगा, जो कि आने वाले समय में तो संभव नहीं दिखता।
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प्रदेश में 312 निकाय, तीन घटेंगे
प्रदेश में अभी 312 शहरी निकाय हैं। इनमें से तीन निकाय कम किए जाने हैं। जयपुर, जोधपुर और कोटा में दो-दो नगर निगम हें। मौजूदा भाजपा सरकार इन शहरों में एक- एक नगर निगम रखेगी। इसके बाद प्रदेश में 309 नगर निगम रह जाएंगे। हालांकि सरकार का कहना है कि वह दिसंबर, 2025 तक चुनाव करा लेगी, लेकिन मौजूदा तैयारियों से यह संभव नहीं दिख रहा है।