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Photograph: (the sootr)
Jaipur. बिजली कार्य के ठेका लेने वाली एक कंपनी पर दस लाख का हर्जाना लगा है। राजस्थान हाई कोर्ट ने यह हर्जाना लगाते हुए ठेका कंपनी को दो महीने में यह राशि जमा करवाने के आदेश दिए हैं। हाई कोर्ट ने ठेका कंपनी धनलक्ष्मी इलेक्ट्रिकल्स प्राइवेट लि. की याचिका को खारिज करते हुए यह आदेश दिया है।
अजमेर विद्युत वितरण निगम ने ठेका कंपनी के तय शर्तों के मुताबिक कार्य नहीं करने, अन्य अनियमितताओं के चलते कंपनी को ब्लैक लिस्ट कर दिया था। कंपनी ने उक्त सभी तथ्यों को छिपाते हुए हाई कोर्ट में याचिका दायर की थी, जिसे कोर्ट ने खारिज कर दिया।
याचिका लगाना महंगा पड़ा
याचिकाकर्ता कंपनी को तथ्यों को छिपाते हुए याचिका लगाना महंगा पड़ गया है। हाई कोर्ट ने कंपनी की याचिका तो खारिज की है, साथ ही 10 लाख रुपए का हर्जाना भी लगाया है। जस्टिस समीर जैन ने विद्युत उप केन्द्र स्थापना आदि कार्य का टेंडर निरस्त किए जाने के मामले में दखल से इनकार कर दिया।
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डिस्कॉम ने प्रशासनिक कार्रवाई की
साथ तथ्य छिपाने पर कोर्ट ने कंपनी को अजमेर विद्युत वितरण निगम को 10 लाख रुपए हर्जाना दिए जाने के आदेश दिए हैं। कोर्ट ने आदेश में कहा कि मामले में मनमानी व दुर्भावना का कोई तथ्य नहीं है। अजमेर डिस्कॉम ने प्रशासनिक कार्रवाई की गई है। ठेका कंपनी को 60 दिन में हर्जाना राशि अजमेर डिस्कॉम को जमा करानी होगी।
यह है पूरा मामला
अजमेर डिस्कॉम के 12 विद्युत अभियंता वृत्तों में 33 केवी विद्युत उप केन्द्र स्थापित करने व अन्य विद्युत कार्य के लिए निविदा मांगी गई थी। यह मामला चित्तौड़गढ़ वृत्त के करीब 2536 करोड़ रुपए के टेंडर से जुड़ा हुआ है। याचिकाकर्ता कंपनी से जून, 2023 में औपचारिक कॉन्ट्रैक्ट हो गया। कंपनी ने बैंक गारंटी जमा करा दी, लेकिन तय अवधि में कंपनी कार्य नहीं कर पा रही थी।
कंपनी की गति धीमी
ऐसे में कार्य की गति बढ़ाने को लेकर डिस्कॉम ने कई नोटिस दिए। फिर भी कंपनी ने कार्य धीमी गति से ही किया। टेंडर शर्तों का उल्लंघन करने पर अजमेर डिस्कॉम ने ठेका निरस्त कर दिया और कंपनी को ब्लैक लिस्ट कर दिया। अजमेर डिस्कॉम के इस आदेश को ठेका कंपनी ने हाई कोर्ट में चुनौती देते हुए कहा कि ठेका निरस्त करने के दौरान प्राकृतिक न्याय के सिद्धांत की पालना नहीं की गई और सुनवाई का मौका नहीं दिया।
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डिस्कॉम का जवाब, पूरा मौका दिया
ठेका कंपनी ने कोर्ट में याचिका लगाकर कहा कि अजमेर डिस्कॉम ने ठेका कंपनी की बैंक गारंटी जब्त कर ली है। साथ ही कंपनी को तीन साल के लिए टेंडर से बाहर कर दिया, जो सिविल डेथ के समान है। ठेका कंपनी की इस याचिका का अजमेर डिस्कॉम की ओर से अतिरिक्त महाधिवक्ता विज्ञान शाह ने विरोध करते हुए कोर्ट को अवगत कराया कि इस तरह के मामले में याचिका दायर नहीं की जा सकती है।
कंपनी को कई बार नोटिस दिए
इस तरह के मामले को सिविल या वाणिज्यिक न्यायालय में मामला ले जाया जा सकता है। याचिकाकर्ता कंपनी के संचालकों को टेंडर शर्तों की पालना और टेंडर निरस्त करने से पहले कई बार नोटिस दिए हैं। कंपनी को सुनवाई का पूरा मौका दिया। ठेका कंपनी ने उक्त तथ्यों को छिपाते हुए याचिका दायर की है, जिसे खारिज किया जाए। दोनों पक्षों की सुनवाई के बाद कोर्ट ने याचिका खारिज कर दी और 10 लाख का हर्जाना लगाया।
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अभियंता पर 1.50 लाख का जुर्माना
अधूरे तथ्यों के आधार पर हाई कोर्ट पूर्व में भी कई याचिका खारिज कर चुका है और हर्जाना लगा चुका है। बावजूद इसके याचिकाकर्ता तथ्य छिपाते हुए याचिका और पीआईएल लगाने से बाज नहीं आ रहे हैं। पूर्व में भी हाई कोर्ट ने बिजली विभाग के एक रिटायर्ड मुख्य अभियंता पर डेढ़ लाख रुपए का जुर्माना लगाते हुए उसकी जनहित याचिका खारिज कर दी थी।
याचिका को स्वार्थ प्रेरित बताया
जनहित याचिका में उन्होंने राजस्थान राज्य विद्युत उत्पादन निगम लि. और नेशनल थर्मल पावर कॉरपोरेशन लि. के संयुक्त उद्यम को रद्द करने की मांग की थी। सीजे एमएम श्रीवास्तव और जस्टिस आनंद शर्मा की खंडपीठ ने यह आदेश अजय चतुर्वेदी की जनहित याचिका पर दिए थे। अदालत ने इस याचिका को स्वार्थ प्रेरित और कानूनी प्रक्रिया का दुरुपयोग बताया था।
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पीआईएल कर चुकी है खारिज
हाई कोर्ट कुछ माह पहले सरकारी स्कूलों में छात्राओं के लिए साइकिल खरीद के टेंडर की शर्तों में बदलाव व टेंडर प्रक्रिया को चुनौती देने वाली पीआईएल को खारिज कर चुकी है। कोर्ट ने इस तरह की याचिका को कानूनी प्रक्रिया का दुरुपयोग मानकर खारिज कर दिया। कोर्ट ने याचिकाकर्ता पर एक लाख रुपए का हर्जाना लगाया था। कोर्ट ने यह आदेश इशाक की जनहित याचिका को खारिज करते हुए दिए थे।
कोर्ट ने लगाया था जुर्माना
कोर्ट ने कहा कि साइकिल निर्माता और साइकिल बिक्री का व्यापार करने वालों ने टेंडर के नियम व शर्तो मे हुए बदलाव को चुनौती नहीं दी है। एक आम आदमी ने साइकिल के टेंडर की प्रक्रिया को चुनौती दी है। यह नहीं कहा जा सकता कि टेंडर की शर्तों में बदलाव जनहित के खिलाफ है। कोर्ट ने एक ऐसे ही मामले में बूंदी की निर्दलीय पार्षद का निर्वाचन रद्द करने की भाजपा प्रत्याशी की याचिका खारिज कर उस पर जुर्माना लगाया था।
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