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Photograph: (the sootr)
राकेश कुमार शर्मा @ जयपुर
Jaipur. ठीक 17 साल पहले नवरात्रि में आज के दिन ही 30 सितंबर, 2008 को राजस्थान में जोधपुर के मेहरानगढ़ किले में माताजी के मंदिर में दर्शनों के लिए आए सैकड़ों भक्तों की जान चली गई थी। भीड़ ज्यादा होने से लाइन में ही खड़े खड़े दर्जनों युवाओं की सांस थम गई थी। फिर मची भगदड़ में सैकड़ों लोग दब गए। हादसे में 216 लीगों की मौत हो गई, जिसमें अधिकांश युवा थे।
इस हादसे की जांच तत्कालीन मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे ने राजस्थान हाई कोर्ट के रिटायर्ड जस्टिस जसराज चोपड़ा को दी। जस्टिस चोपड़ा ने सालों की मेहनत से रिपोर्ट तैयार की और राजस्थान सरकार को सौंप भी दी। रिपोर्ट दिए एक दशक से ज्यादा हो गया है, लेकिन सरकार रिपोर्ट को बाहर नहीं आने दे रही है।
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कोई भी सरकार प्रभावित परिवारों के साथ नहीं
चाहे कांग्रेस हो या भाजपा की सरकार, कोई भी जान गंवाने वाले परिवारों के साथ नहीं है। हादसे के लिए मेहरानगढ़ किले के ट्रस्ट के पदाधिकारियों के अलावा पुलिस और प्रशासन के अधिकारी व कर्मचारी जिम्मेदार बताए जा रहे हैं, जिनकी सुरक्षा इंतजाम की अनदेखी के चलते इतना बड़ा हादसा हो गया।
हादसे की तस्वीरें व वीडियो मीडिया के माध्यम से जनता के सामने आए, तो हर कोई विचलित हो गया। मंदिर जाने वाले मार्ग पर इतनी ज्यादा भीड़ थी कि दम घुटने से लोग खड़े के खड़े ही रह गए। भगदड़ में चारों तरफ लाशें ही लाशें थीं। हादसे के वक्त कोई जिम्मेदार अधिकारी, ट्रस्ट पदाधिकारी नहीं था। इतने बड़े हादसे के बाद भी सरकारें जनता के साथ अन्याय करती आ रही हैं। 216 लोगों की जान लेने वाले इस हादसे की रिपोर्ट सावर्जनिक नहीं करके पीड़ित परिवारों के घावों पर नमक छिड़क रही हैं।
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रसूखदार लोगों को बचाने का आरोप
अशोक गहलोत जोधपुर से हैं और हादसे के बाद दो बार वे मुख्यमंत्री बन चुके हैं, लेकिन उन्होंने भी रिपोर्ट को बाहर नहीं आने दिया। ना ही भाजपा सरकार कुछ कर पाई। वर्तमान में जोधपुर से सांसद गजेन्द्र सिंह केंद्रीय मंत्री हैं, लेकिन वह भी पीड़ित परिवार की नहीं सुन रहे हैं। वहां के लोग लगातार रिपोर्ट सावर्जनिक करने और दोषियों को सजा देने की मांग करते आ रहे है।
आरोप है कि हादसे के लिए जिम्मेदार मेहरानगढ़ किला व मंदिर के रसूखदार लोगों और अधिकारियों को बचाने के लिए भाजपा और कांग्रेस की सरकारें जस्टिस जसराज चोपड़ा की रिपोर्ट को बाहर नहीं आने दे रही हैं। खुद जस्टिस चोपड़ा भी मीडिया से बातचीत में कह चुके हैं कि रिपोर्ट का खुलासा होने दें, कईं जिम्मेदार बेनकाब हो जाएंगे। उनके बयान से साफ है कि रिपोर्ट में रसूखदार लोगों को जिम्मेदार ठहराया है। अगर रिपोर्ट सावर्जनिक हो जाएगी, तो उन रसूखदारों पर कानूनी कार्यवाही हो सकती है।
रिपोर्ट विधानसभा में रखने से रोकी
मेहरानगढ़ दुखांतिका मामले में जस्टिस चोपड़ा आयोग की रिपोर्ट सार्वजनिक करने के लिए हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट में याचिका लगी हुई है। 17 साल पहले शारदीय नवरात्र के पहले दिन चामुंडा माता मंदिर में दर्शन के लिए हुई भगदड़ में 216 जनों की मौत के बाद जांच के लिए गठित आयोग की जांच रिपोर्ट सार्वजनिक नहीं की गई, तो पीड़ित पक्ष की ओर से राजस्थान हाई कोर्ट की मुख्यपीठ जोधपुर में याचिका लगाई गई। वहां भी अभी तक सुनवाई हो रही है। सरकार इस मामले में गंभीरता नहीं दिखा रही है। पीड़ित पक्ष अब सुप्रीम कोर्ट गया है।
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शीर्ष कोर्ट में ट्रांसफर पिटीशन पेश
याचिकाकर्ता ईश्वर प्रसाद खंडेलवाल ने शीर्ष कोर्ट में ट्रांसफर पिटीशन पेश की है, जिसमें इस याचिका की सुनवाई सुप्रीम कोर्ट या अन्य किसी हाई कोर्ट में करने की मांग की गई हैं। खंडेलवाल के बयान के मुताबिक, हाई कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश ने फाइनल हियरिंग के आदेश दिए थे, लेकिन फिर भी सुनवाई नहीं हो रही है। ऐसा ही एक मामला महाराष्ट्र का था, जिसकी रिपोर्ट सरकार ने सार्वजनिक नहीं की थी, लेकिन हाई कोर्ट में याचिका दाखिल कर उसे सार्वजनिक करवाया था।
राजस्थान में भी जसराज चोपड़ा आयोग की रिपोर्ट विधानसभा की टेबल पर होनी थी, लेकिन तत्कालीन सरकार ने इसे कैबिनेट की बैठक में रखकर आदेश जारी कर दिया कि इसे विधानसभा में नहीं रखा जाएगा, जिसके चलते रिपोर्ट सार्वजनिक नहीं हुई, जबकि कमीशन ऑफ इंक्वायरी एक्ट में प्रावधान है कि रिपोर्ट विधानसभा में टेबल होती है। इससे स्वत: ही सार्वजनिक हो जाती है।
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रिपोर्ट नहीं हो पाई सार्वजनिक
जस्टिस जसराज चोपड़ा आयोग ने अपनी रिपोर्ट 2011 में सरकार को सौंप दी थी। वर्ष 2017 में याचिकाकर्ता मानाराम की ओर से एक जनहित याचिका दायर की गई थी। इसमें वर्ष 2008 में मेहरानगढ़ दुर्ग में हुए हादसे की जांच के लिए गठित जांच आयोग की रिपोर्ट सार्वजनिक करने की मांग की गई। याचिका में बताया गया था कि वर्ष 2011 में आयोग ने रिपोर्ट सरकार को सौंप दी थी, लेकिन सरकार ने अभी तक रिपोर्ट सार्वजनिक नहीं की है। 2024 में खंडेलवाल ने भी याचिका लगाई, जिसे कोर्ट ने मानाराम की याचिका के साथ क्लब कर दिया था।
रिपोर्ट सार्वजनिक करने पर आश्वासन
सुनवाई के दौरान सरकार ने आयोग की रिपोर्ट सार्वजनिक करें या नहीं करें, इस संबंध में निर्णय करने के लिए दो बार कैबिनेट सब कमेटी गठित की थी। 2 सितंबर, 2019 को हाई कोर्ट ने सब कमेटी की रिपोर्ट व चोपड़ा आयोग की रिपोर्ट तलब की थी। हाई कोर्ट ने सब कमेटी की रिपोर्ट तो रजिस्ट्रार के पास रखवा दी थी, जबकि चोपड़ा आयोग की रिपोर्ट वापस महाधिवक्ता के इस आश्वासन पर वापस भेज दी थी कि जब भी कोर्ट रिपोर्ट पेश करने के निर्देश देगी, रिपोर्ट कोर्ट में पेश होगी।
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कोर्ट भी कर चुका मौखिक तल्ख टिप्पणी
आयोग की रिपोर्ट सार्वजनिक करने की याचिका पर सुनवाई के दौरान ही हाई कोर्ट की खंडपीठ ने 6 अगस्त, 2018 को मौखिक टिप्पणी करते सरकारी वकील से पूछा था कि अभी तक रिपोर्ट सार्वजनिक क्यों नहीं की गई। अगर रिपोर्ट सार्वजनिक ही नहीं करनी थी, फिर आयोग का गठन कर जनता का धन क्यों बर्बाद किया गया? कोर्ट ने सरकार से यह भी पूछा था कि सरकार ने रिपोर्ट के आधार पर क्या कदम उठाए?
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सरकार रिपोर्ट खोले, सब सामने आ जाएगा
मेहरानगढ़ दुखांतिका की जांच करने वाले जस्टिस जसराज चोपड़ा भी कह चुके हैं कि 800 पन्नों की रिपोर्ट सरकार को दे चुके हैं। सभी पक्ष के लोगों के बयान लिए गए हैं। दस्तावेज जांचे गए हैं। मरने वाले एक भी व्यक्ति के पोस्टमार्टम नहीं करने को लेकर पुलिस और प्रशासन ज अधिकारी के बयान लिए। उनका कहना था कि राज्य सरकार उनकी जांच रिपोर्ट सार्वजनिक कर दे, तो सारी सच्चाई सामने आ जाएगी।
चोपड़ा के सरकारों पर सवाल
मेहरानगढ़ म्यूजियम ट्रस्ट और महाराजा उम्मेदसिंह रिलीजियस ट्रस्ट ने आयोग के समक्ष भी कुछ दर्शनार्थियों के शराब पीए हुए होने की बात कही थी। इस पर आयोग ने गहन पड़ताल कर निष्कर्ष निकाल लिया था। चोपड़ा ने कहा कि हालांकि वे कुछ बोल नहीं सकते, लेकिन हादसे के लिए कौन जिम्मेदार थे और लापरवाही किसकी रही, यह सब रिपोर्ट में है। जस्टिस चोपड़ा ने बताया कि जांच के दौरान ट्रस्ट, पुलिस व प्रशासन ने एक-दूसरे के खिलाफ भी विरोधाभासी बयान दिए, लेकिन आयोग ने गहन पड़ताल कर रिपोर्ट तैयार की है। उन्होंने सवाल उठाया था कि सरकार न जाने क्यों रिपोर्ट सार्वजनिक नहीं कर रही है।