जेल में बंद पूर्व भाजपा विधायक कंवरलाल मीणा ने राज्यपाल से लगाई क्षमादान गुहार, सरकार ने दी OK रिपोर्ट

राजस्थान के बारां जिले के अंता से पूर्व भाजपा विधायक कंवरलाल मीणा ने जेल से रिहाई की अपील की है। भजनलाल सरकार ने राज्यपाल से उनके लिए क्षमादान की सिफारिश की है।

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Amit Baijnath Garg
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Photograph: (the sootr)

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मुकेश शर्मा @ जयपुर

राजस्थान की भजनलाल सरकार ने भाजपा के पूर्व विधायक कंवरलाल मीणा को क्षमादान दिलवाने के लिए राज्यपाल हरिभाऊ बागडे को सकारात्मक टिप्पणी के साथ अपनी चिट्ठी भेज दी है। सरकार ने चिट्ठी में तीन साल की सजा काट रहे कंवरलाल मीणा को कानूनी प्रक्रिया में सहयोग करने, नेत्र चिकित्सा शिविर, तिरंगा यात्रा निकालने और रक्तदान शिविर आयोजन जैसे सामाजिक कार्य करने वाला और जेल में शांतिपूर्ण व्यवहार जैसी उपमाओं से नवाजा है।  

प्रदेश के अंता (बारां) से विधायक रहे कंवरलाल मीणा को निचली अदालत से सुनाई गई तीन साल की सजा पर सुप्रीम कोर्ट और राजस्थान हाई कोर्ट से कोई राहत नहीं मिली थी। इस पर मई, 2025 में उनकी विधानसभा सदस्यता भी समाप्त कर दी गई थी। उन पर सरकारी अधिकारी को रिवॉल्वर से धमकाने के आरोप में ट्रायल कोर्ट ने तीन साल की सजा सुनाई थी। इसके बाद से वह जेल में सजा काट रहे हैं। उनके खिलाफ 27 मामले हैं, जिनमें से कई में वे बरी हो चुके हैं।

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वसुंधरा का माना जाता है करीबी 

शीर्ष कोर्ट से राहत नहीं मिलने के बाद भी मीणा की सदस्यता खत्म करने में देरी के कारण भाजपा और कांग्रेस के बीच सियासी घमासान छिड़ गया था। कांग्रेस ने विधानसभा अध्यक्ष वासुदेव देवनानी पर पक्षपात करने का आरोप लगाया था। प्रदेश में झालावाड़ क्षेत्र के प्रभावशाली नेता कंवरलाल मीणा को पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे का करीबी माना जाता है।

जेल जाते ही भेजी सजा माफी की अपील  

सुप्रीम कोर्ट से राहत नहीं मिलने पर कंवरलाल मीणा ने 21 मई को ट्रायल कोर्ट में सरेंडर कर दिया था। कोर्ट ने उन्हें सजा भुगतने के लिए जेल भेज दिया था। जेल जाने के कुछ दिन बाद ही जून में उन्होंने संविधान के अनुच्छेद 161 के तहत क्षमादान के लिए राजभवन में आवेदन कर दिया था। राज्यपाल सचिवालय ने इस पर सरकार से टिप्पणी मांगी थी। सूत्रों के अनुसार, उनकी सजा कम करने के लिए सरकार की ओर से कई आधार बताए जा रहे हैं। 

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सजा कम करने के पीछे कई तर्क

सूत्रों के अनुसार, पहला आधार यह है कि सुप्रीम कोर्ट से एसएलपी खारिज होने के बाद कंवरलाल मीणा ने आत्मसमर्पण करके कानूनी प्रक्रिया और कानूनी संस्थाओं के साथ सहयोग किया। दूसरा आधार उनके नेत्र शिविर, आयुष्मान स्वास्थ्य मेला, निःशुल्क शल्य चिकित्सा शिविर, तिरंगा यात्रा, घर-घर तिरंगा, स्वैच्छिक रक्तदान शिविर और सभी जातियों के लिए निःशुल्क विवाह समारोह आदि जैसे सामाजिक कार्यों को बताया गया है। तीसरे आधार में कहा है कि मीणा के मामले में सुनवाई में काफी समय लग गया है। जेल में रहते हुए उन्होंने जो शांतिपूर्ण व्यवहार बनाए रखा है। उसे देखते हुए उनकी सजा कम करना उचित होगा। 

कैबिनेट सिफारिश पर ही दया याचिका का फैसला

सूत्रों के अनुसार, इस मामले में अतिरिक्त महाधिवक्ता ने अपनी राय में कहा है कि राज्यपाल राज्य मंत्रिमंडल की सिफारिश पर ही दया याचिका पर फैसला ले सकते हैं। हालांकि सजा कम भी कर दी जाती है या कंवरलाल मीणा को माफ भी करने पर भी वह विधानसभा की सदस्यता से अयोग्य ही रहेंगे।

नहीं लड़ पाएंगे चुनाव, पर आएगा प्रभाव काम

पूर्व विधायक कंवरलाल मीणा भले ही इस बदलाव के बाद चुनाव नहीं लड़ पाएं, लेकिन अंता में उनका अच्छा-खासा प्रभाव है। वे चुनाव को प्रभावित कर सकते हैं। 23 मई को उनकी विधानसभा सदस्यता समाप्त होने के बाद छह महीने के भीतर उपचुनाव होना जरूरी है। इसलिए उपचुनाव की घोषणा से पहले ही उनकी सदस्यता रद्द करने पर फैसला होने की उम्मीद है।

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नेता प्रतिपक्ष ने राज्यपाल को लिखा पत्र

राज्यपाल को लिखे पत्र में नेता प्रतिपक्ष टीकाराम जूली ने इसे एक गंभीर, न्यायिक व्यवस्था पर आघात और एक बुरी मिसाल बताया है। उन्होंने कहा कि कंवरलाल मीणा की विधानसभा सदस्यता खत्म करने की प्रक्रिया न्यायिक आदेशों और संविधानिक प्रावधानों के अनुसार की गई थी, लेकिन भाजपा सरकार अनुच्छेद 161 का दुरुपयोग कर मीणा को माफ करने का प्रयास कर रही है। 

पता चला है कि गृह विभाग ने कार्यवाही पूरी कर ली है और फाइल आपके कार्यालय को भेज दी है। नेता प्रतिपक्ष ने लिखा है कि मीणा की सार्वजनिक प्रतिष्ठा भी अच्छी नहीं है। क्या ऐसे व्यक्ति को माफ करना उचित होगा? अगर राजनीतिक दबाव में दोषी विधायकों को छूट दी जाती है, तो इससे न सिर्फ न्यायपालिका की प्रतिष्ठा को ठेस पहुंचेगी, बल्कि लोकतंत्र और कानून के शासन में जनता का विश्वास भी कमजोर होगा।

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इसलिए जाना पड़ा जेल

वर्ष 2005 में झालावाड़ के मनोहरथाना इलाके में दांगीपुरा-राजगढ़ मोड़ पर उप-सरपंच चुनाव के बाद पुनर्मतदान की मांग को लेकर ग्रामीणों ने रास्ता रोक रखा था। सूचना मिलने पर तत्कालीन एसडीएम रामनिवास मेहता, प्रोबेशनल आईएएस डॉ. प्रीतम बी. यशवंत और तहसीलदार मौके पर पहुंचे थे। इसी दौरान कंवरलाल मीणा भी अपने साथियों के साथ मौके पर पहुंचे और उन्होंने एसडीएम की कनपटी पर पिस्तौल तानकर फिर से वोट गिनती कराने के आदेश देने अन्यथा जान से मारने की धमकी दी थी। इस दौरान कंवरलाल मीणा ने विभागीय फोटोग्राफर का कैमरा तोड़कर जला दिया। उन्होंने प्रोबेशनल आईएएस अधिकारी का डिजिटल कैमरा भी छीन लिया, जिसे कुछ देर बाद लौटाया था। 

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तीन साल की सजा से दंडित किया

ट्रायल कोर्ट ने 2018 में कंवरलाल को बरी कर दिया था, लेकिन अपील में अकलेरा की कोर्ट ने 14 दिसंबर, 2020 को तीन साल की सजा से दंडित किया। इस आदेश के खिलाफ कंवरलाल की अपील को हाई कोर्ट ने खारिज कर दिया था। हाई कोर्ट के आदेश के खिलाफ अपील को सुप्रीम कोर्ट ने 7 मई, 2025 को खारिज कर दिया था और दो सप्ताह में सरेंडर करने के निर्देश दिए थे। कंवरलाल मीणा के खिलाफ हत्या के प्रयास, दंगा, डकैती, जबरन वसूली और शीलभंग जैसे 27 मामले दर्ज हैं। इस पर कंवरलाल मीणा के एक समर्थक का कहना है कि उन्हें लगभग सभी मामलों में बरी कर दिया गया है।

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क्षमादान व्यापक जनहित वाला नहीं : विशेषज्ञ

उधर, विधि विशेषज्ञ एडवोकेट अजय कुमार जैन का कहना है कि कानूनी रूप से राज्यपाल सिर्फ राज्य से संबंधित मामले में क्षमादान दे सकते हैं। इस मामले में ऑल इंडिया सर्विस के आईएएस अधिकारी आईएएस डॉ. प्रीतम बी. यशवंत पर भी कंवरलाल मीणा ने हमला किया था। इसलिए क्षमादान के लिए केंद्र सरकार की मंजूरी भी जरूरी है। राजीव गांधी के हत्यारों के मामले में सुप्रीम कोर्ट से यह बिंदु तय हो चुका है। 

सरकार नहीं करे हस्तक्षेप

जैन का कहना है कि कंवरलाल मीणा की आपराधिक पृष्ठभूमि को देखते हुए उन्हें क्षमादान देने में कोई व्यापक जनहित नहीं है। जब सुप्रीम कोर्ट ने ही कोई राहत नहीं दी, तो सरकार को भी हस्तक्षेप नहीं करना चाहिए। इस आधार पर ही सुप्रीम कोर्ट ने पंजाब के एक मामले में हस्तक्षेप किया था। कंवरलाल मीणा के मामले में विधानसभा स्पीकर ने भी राजनीति की थी। उन्हें हाई कोर्ट के आदेश के तत्काल बाद ही कंवरलाल मीणा की सदस्यता रद्द करनी चाहिए थी, लेकिन उन्होंने मीणा के सुप्रीम कोर्ट जाने और वहां से आदेश होने तक इंतजार किया था।

FAQ

1. कंवरलाल मीणा को क्यों सजा दी गई थी?
कंवरलाल मीणा को 2005 में उप-सरपंच चुनाव के दौरान अधिकारियों को धमकी देने के आरोप में तीन साल की सजा दी गई थी।
2. राज्य सरकार ने कंवरलाल मीणा के लिए क्या कदम उठाए हैं?
राज्य सरकार ने कंवरलाल मीणा के लिए राज्यपाल से क्षमादान की सिफारिश की है और उनके अच्छे व्यवहार और सामाजिक कार्यों को आधार बनाया है।
3. क्या कंवरलाल मीणा फिर से चुनाव लड़ पाएंगे?
कंवरलाल मीणा की सदस्यता समाप्त हो चुकी है और यदि उनकी सजा कम भी की जाती है, तो वे चुनाव नहीं लड़ पाएंगे, लेकिन उनका प्रभाव राजनीति में बना रहेगा।

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