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Photograph: (the sootr)
Jaipur. कभी देश की जनता को रुलाने वाला प्याज अभी किसानों को रुला रहा है। जनता को तो प्याज सस्ते दामों में मिल रहे हैं, लेकिन अन्नदाता किसान को प्याज की लागत तक नहीं मिल रही है। भाव इतने कम है कि वे खेतों से प्याज तोड़कर मंडी लाने से भी घबरा रहे हैं, क्योंकि आने-जाने का खर्चा निकलना भी मुश्किल लग रहा है। नतीजा खेतों में ट्रैक्टर चलाकर फसल उखाड़ रहे हैं, तो भाव नहीं मिलने पर प्याज को सूखे नदी-नालों, सड़क और खुले मैदानों में फेंकने को मजबूर है।
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सूखी नदी में फेंक दी प्याज
लाल प्याज के लिए प्रसिद्ध अलवर की मंडियों में रोज एक हजार से अधिक कट्टे आ रहे हैं, लेकिन दाम पिछले साल के मुकाबले आधे से भी कम हैं। किसानों को एक कट्टे के दाम एक सौ रुपए के मिल रहे हैं यानी ढाई रुपए में एक किलो प्याज बिक रहा है। ऐसे में बहुत से किसान प्याज बेचने की बजाय खुले में डाल रहे हैं, ताकि जरूरतमंद प्याज ले सकें। एक ऐसा ही वीडियो सोशल मीडिया पर खूब वायरल हुआ है, जिसमें अलवर के राजगढ़ कस्बे के चंदूपुरा गांव के एक किसान ने बहुत ही कम दाम मिलने पर दो ट्रॉली फसल सूखी नदी में फेंक दी।
लागत निकालना भी हुआ मुश्किल
केन्द्र सरकार की नीतियों ने किसानों को नुकसान के दलदल में धकेल दिया है। ऐसा आरोप किसान महापंचायत के राष्ट्रीय अध्यक्ष रामपाल जाट लगा रहे हैं। उनका कहना है कि फरवरी, 2019 के बाद सितंबर, 2025 में प्याज के दामों में 49.5 फीसदी गिरावट दर्ज की गई है। किसान अपनी उपज का लागत मूल्य भी नहीं निकाल पा रहे हैं। किसान को एक किलो प्याज की उत्पादन लागत 10 से 12 रुपए आ रही है। किसानों को दो से पांच रुपए किलो के हिसाब से प्याज बेचने पड़ रहे हैं।
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जनता को तिगुणे भाव में बेच रहे हैं प्याज
मंडी में किसानों को भले ही दाम कम मिल रहे हैं, लेकिन बाजार में जनता को प्याज बीस से पच्चीस रुपए प्रति किलो के भाव से मिल रही है। किसान मंडी में दो से पांच रुपए किलो में प्याज बेचने को मजबूर हैं, तो सब्जी मंडियों में सब्जी विक्रेता खुदरा ग्राहकों को यह प्याज बीस से पच्चीस रुपए किलो बेच रहे हैं यानी किसानों की जो रेट मिल रही है, उससे तीन गुणा तक जनता को बेची जा रही है।
सरकार नहीं दे रही है राहत
जाट का कहना है कि जिन फसलों का न्यूनतम समर्थन मूल्य घोषित नहीं होता है, उनके लिए सरकार ने बाजार हस्तक्षेप योजना बनाई है। इसमें आकस्मिक घाटे से किसानों को राहत दी जाती है। इस योजना के तहत घाटा झेल रहे प्याज उत्पादक किसानों को राहत नहीं दी गई। किसानों की मांगों के समर्थन में 17 नवंबर जयपुर के शहीद स्मारक पर और दूसरे जिला मुख्यालयों पर प्रदर्शन का ऐलान किया गया है। साथ ही 30 दिसंबर को जयपुर में अन्नदाता हुंकार रैली निकाली जाएगी।
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प्याज उत्पादक किसानों पर मौसम की मार
अलवर की लाल प्याज राजस्थान की सबसे बड़ी मंडी है और देश में दूसरे नम्बर की मंडी जानी जाती है। अलवर मंडी में फसल बेचने आए किसान शेर खान ने बताया कि एक बीघा प्याज के उत्पादन पर करीब पचास हजार रुपए की लागत आती है। खेत में बुवाई, जुताई, खाद के साथ कीटनाशक, कटाई और मानव श्रम पर खर्च होता है। एक कट्टा प्याज सौ रुपए से दो सौ रुपए में बिक रही है। दाम नहीं मिलने से प्रति बीघा पांच से सात हजार रुपए मिल पा रहे हैं।
नहीं मिल रहे किसानों को अच्छे दाम
अलवर प्याज मंडी के व्यापारी संजय सैनी ने बताया कि इस बार बेमौसम की बारिश से तो किसानों को नुकसान पहुंचा है। वहीं भाव भी कम हैं, जिसके चलते उन्हें अच्छे दाम नहीं मिल पा रहे हैं। किसानों को फिलहाल प्याज नहीं बेचना चाहिए, बल्कि कुछ दिन इनका भंडारण करना चाहिए। आगामी दिनों में प्याज की गुणवत्ता वाली फसल मंडी आएगी तो संभावना है कि अलवर की प्याज की फसल को बाहर भेजा जा सकेगा। फिलहाल अलवर की प्याज हरियाणा, पंजाब व उत्तर प्रदेश तक ही पहुंच रही है।
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खुले मैदान में फेंक रहे हैं प्याज
प्याज के दाम नहीं मिलने पर किसान फसल को बेचने के बजाय खुले में फेंकना ज्यादा पसंद कर रहे हैं। कई बार मंडी में प्याज के दाम तीन से पांच रुपए किलो मिल रहे हैं। ऐसे में किसानों को आने-जाने की लागत भी निकल नहीं पा रही है, मुनाफा तो दूर की बात है। किसान फसलों को सड़क, खुले मैदान और नदी में फेंक रहे हैं।
दस साल बाद प्याज ने फिर रुलाया
प्याज के दामों में इतनी गिरावट काफी सालों बाद देखने को मिली है। करीब दस साल पहले भी प्याज ने किसानों को रुलाया था। तब भी लाल प्याज के दाम मंडी में काफी कम मिले थे। दो से तीन रुपए किलो में प्याज बेचने को मजबूर हुए। अब फिर से यह हालात किसानों के सामने आए हैं। इस बार भी प्याज के दामों में भारी गिरावट है। मंडी में दो से पांच रुपए के भाव मिल रहे हैं।
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अलवर के प्याज की डिमांड ज्यादा
देश में नासिक के बाद प्याज की दूसरी सबसे बड़ी मंडी अलवर मंडी है। यहां की प्याज विदेशों में भी सप्लाई होती है। अलवर की प्याज स्वाद में अच्छी होती है। इस वजह से प्याज की डिमांड भी खूब रहती है। अलवर के अलावा दौसा, भरतपुर, करौली में भी लाल प्याज होती है। सीकर, झुंझुनूं और उससे लगते जिलों में सफेद प्याज ज्यादा होती है, जो स्वाद में मीठे और तीखे होते हैं। यह प्याज गर्मियों में आती है। वहीं लाल प्याज सर्दी के सीजन में मंडी में आती है। अलवर में 60 हजार हेक्टेयर भूमि पर प्याज की बुवाई हुई है।
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दूसरे राज्यों में भी अच्छी पैदावार
मंडी विशेषज्ञों का कहना है कि देश में राजस्थान के अलावा महाराष्ट्र, पंजाब, कर्नाटक, मध्यप्रदेश में भी प्याज की अच्छी फसल हुई है। इस वजह से प्याज के दामों में गिरावट है। वहीं बारिश और अतिवृष्टि से भी फसल खराब होने और प्याज की गुणवत्ता में कमी आई है। फिलहाल देश में कर्नाटक, नासिक, महाराष्ट्र की प्याज ज्यादा बिक रही है। व्यापारी भी इन जगहों से प्याज मंगवा रहे हैं। अलवर की लाल प्याज की डिमांड बाजार में नहीं है। इससे किसानों को बेहतर दाम नहीं मिल रहे हैं।
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प्याज के निर्यात पर पाबंदी से दाम घटे
अलवर की मंडियों में गत एक महीने से खूब लाल प्याज आ रही है। रोजाना 1000 से अधिक प्याज के कट्टे लेकर किसान आ रहे हैं। अलवर, खैरथल, खेड़ली जैसी मंडियों में आवक हो रही है। अच्छी गुणवत्ता के प्याज के भाव 8 से 12 रुपए प्रति किलो यानी 300 से 400 रुपए प्रति मण लग रहे हैं।
छोटे और मध्यम आकार के प्याज दो से पांच रुपए किलो के हिसाब से बिक रहे हैं। इससे किसानों को लागत तक वसूल नहीं हो रही। खैरथल मंडी के व्यापारी रामधन अग्रवाल का कहना है कि मध्य प्रदेश में प्याज का पर्याप्त स्टॉक उपलब्ध है। केंद्र सरकार द्वारा प्याज के निर्यात पर लगाई पाबंदी का सीधा असर स्थानीय बाजार पर पड़ रहा है।
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