छात्र नेता की दबंगई से खुला बृज विश्वविद्यालय में भ्रष्टाचार, 30 करोड़ के घोटालों में नपे कुलपति

राजस्थान के भरतपुर के महाराजा सूरजमल बृज विश्वविद्यालय में भ्रष्टाचार का खेला। सात महीने पहले निलंबित कुलपति को अब राजभवन के आदेश से हटाया। नजर दूसरे दोषियों पर कानूनी एक्शन पर टिकी।

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Rakesh Kumar Sharma
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Photograph: (the sootr)

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Jaipur. राजस्थान के भरतपुर के महाराजा सूरजमल बृज विश्वविद्यालय में करोड़ों रुपए के घोटाले होते रहे हैं। पुस्तक से लेकर लैब और फर्नीचर के नाम पर लाखों-करोड़ों रुपए की खरीद फरोख्त हुई, जबकि धरातल पर ज्यादा कुछ नजर नहीं आया। सरकारी खजाने से पच्चीस लाख रुपए की नगदी की चोरी तक हो गई। विश्वविद्यालय में कुलपति रहे प्रो. रमेश चन्द्रा के कार्यकाल में एक से बढ़कर एक घोटाले होते रहे। 

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30 करोड़ के घोटाले का अनुमान

30 करोड़ रुपए के घोटाले सामने आ चुके हैं, लेकिन किसी ने भी इन स्कैम को उजागर करने की जहमत नहीं उठाई, बल्कि हर कोई दबाने में लगे रहे हैं। चाहे वे कुलपति हो या दूसरे बड़े अधिकारी। एक छात्र नेता की सजगता और दबंगई से यह मामला न केवल सार्वजनिक हुआ, बल्कि राजस्थान विधानसभा से लेकर मीडिया संस्थानों, भ्रष्टाचार निरोधक ब्यूरो और राजभवन राजस्थान तक भी पहुंचा।

छात्र नेता विनोद चौधरी ने किया उजागर

विश्वविद्यालय में सुनियोजित भ्रष्टाचार के खेल को कई शिक्षकों, कर्मचारी नेताओं और आला अधिकारियों ने भांप लिया था, लेकिन कुलपति और उनके सहयोगियों के खिलाफ बोलने की हिम्मत नहीं कर सके। विश्वविद्यालय के छात्र नेता विष्णु चौधरी ने भ्रष्टाचार के इस खेल को न केवल पकड़ा, बल्कि उसके दस्तावेज हासिल करके उजागर भी किया।

चौधरी ने सिलसिलेवार हुए भ्रष्टाचार को मीडिया संस्थानों के जरिए उजागर किया। स्थानीय विधायक बहादुर सिंह कोली, नौक्षम चौधरी व अन्य विधायकों के माध्यम से यह मामला राजस्थान विधानसभा में भी उठाया।

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सात महीने बाद कुलपति पर एक्शन

घोटाले को लेकर सात महीने पहले ही कुलपति प्रो. चंद्रा को निलंबित कर दिया था। जांच रिपोर्ट में वीसी समेत चार अधिकारी पर घोटाले की रकम वसूली करने, उन पर पुलिस केस दर्ज करवाने की सिफारिशें की गई, लेकिन कई दिनों से इस पर कार्यवाही नहीं हो रही थी। यह मामला काफी चर्चा में था। मंगलवार को राजभवन ने कुलपति को तत्काल प्रभाव से हटा दिया। अब तीन अधिकारी पर कार्यवाही शेष है। 

लाखों की चोरी, करोड़ों के घपले

प्रो. चन्द्रा के कार्यकाल में कई घोटाले सामने आए। इनमें सरकारी कोष से पच्चीस लाख रुपए की कैश चोरी सबसे बड़ी रही। इसके अलावा 12 करोड़ रुपए की केमिस्ट्री लैब, 9 करोड़ रुपए के फर्नीचर, 10 करोड़ रुपए की पुस्तकों की खरीद के घोटालों में वित्तीय अनियमितताएं पकड़ी जा चुकी हैं। इसके अलावा टेंडर प्रक्रिया, वॉच टावर निर्माण, फर्जी भर्ती, उत्तर पुस्तिका जांच समेत कई अन्य घोटालों की शिकायतें भी हुई। 

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एक से बढ़कर एक कारनामे

विश्वविद्यालय की चारदीवारी पर चार वॉच टावर लगाने का टेंडर 2.5 लाख रुपए में हो सकता था, लेकिन इसे साढ़े नौ लाख रुपए में किया गया। इसी तरह 9 करोड़ का फर्नीचर खरीदा। महंगी दरों पर फर्नीचर खरीदा, जबकि कई गुणा कम रेट पर फर्नीचर आ सकता था।

खरीद के मुताबिक फर्नीचर मिला भी नहीं। 12 करोड़ की लैब का टेंडर प्राइवेट फर्म से करवाया गया, जो फर्जी पाया गया। दस करोड़ रुपए के पुस्तक खरीद टेंडर में भी अनियमितताएं पकड़ी गईं। आधा दर्जन से अधिक टेंडर घोटाले और भी हैं, जिनकी शिकायतें हैं।  

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बिना गाइड ही पीएचडी में प्रवेश

विश्वविद्यालय में भर्ती और प्रवेश परीक्षा में भी बड़ा स्कैम पकड़ा गया है। परीक्षाओं के लिए खरीदी गई उत्तर पुस्तिका कम गुणवत्ता की थी, जबकि भुगतान उच्च गुणवत्ता के हिसाब से किया गया। करीब डेढ़ करोड़ की उत्तर पुस्तिका खरीदी गई। 14 संविदा शिक्षकों को गलत तरीके से नियुक्त किया।

पीएचडी में बिना गाइड के ही 50 से अधिक स्टूडेंट को प्रवेश दे दिया और फीस भी ले ली गई। सेवानिवृत्ति के बाद भी नियम विरुद्ध पांच वृद्ध कर्मचारियों को पुनर्नियुक्ति दी गई। फर्जी बिल फर्जी कंपनियों के नाम से उठा लिए गए।

जांच रिपोर्ट में सामने आए घोटाले

राजभवन के आदेश पर विश्वविद्यालय में वित्तीय अनियमितताओं की जांच संभागीय आयुक्त भरतपुर से करवाई गई। संभागीय आयुक्त की विस्तृत जांच रिपोर्ट के आधार पर राज्यपाल सचिवालय ने जांच में दोषी सभी आरोपियों के खिलाफ एफआईआर दर्ज करने और वसूली कराने के आदेश जारी किए हैं। उप कुलसचिव अरुण कुमार पाण्डेय, सहायक कुलसचिव प्रशांत व परीक्षा नियंत्रक फरवट सिंह को निलंबित करने की अनुशंसा की है। 

अधिकतर आरोप प्रमाणित

जांच रिपोर्ट में विश्वविद्यालय में गंभीर वित्तीय गड़बड़ी और नियमों का उल्लंघन पाया गया है। उच्च शिक्षा विभाग को कार्रवाई कर रिपोर्ट राजभवन भेजने के निर्देश दिए गए हैं। संभागीय आयुक्त ने कई चरणों में जांच कर विस्तृत रिपोर्ट राजभवन को भेजी, जिसमें विश्वविद्यालय में भर्ती प्रक्रियाओं में अनियमितता, वित्तीय स्वीकृतियों में मनमानी और प्रशासनिक निर्णयों में पक्षपात जैसे गंभीर आरोप प्रमाणित पाए गए हैं।

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घोटाले में सबका हिस्सा

रिपोर्ट में सामने आया है कि कुलपति के साथ दूसरे अधिकारी भी वित्तीय और प्रशासनिक अनियमितताओं में दोषी पाए गए हैं। निलंबित कुलपति प्रो. चन्द्रा समेत कई वरिष्ठ अधिकारी जिनमें उप कुलसचिव अरुण कुमार पाण्डेय, सहायक कुलसचिव प्रशांत कुमार, परीक्षा नियंत्रक एवं तत्कालीन आहरण-वितरण अधिकारी फरवट सिंह सहित अन्य अधिकारियों पर भी आरोप सिद्ध हुए हैं। इन अधिकारियों ने न केवल वित्तीय नियमों की अवहेलना की, बल्कि सरकारी निधियों का अनुचित उपयोग कर संस्थान को आर्थिक हानि पहुंचाई।

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एफआईआर और वसूली के आदेश

रिपोर्ट में कुलपति, उप कुलसचिव समेत अन्य अधिकारी लिप्त पाए हैं। रिपोर्ट के आधार पर राज्यपाल के निर्देश पर आरोपित अधिकारियों को निलंबित किया गया। साथ ही इनके खिलाफ पुलिस प्राथमिकी दर्ज करवाई गई है। रिपोर्ट में जिन वित्तीय अनियमितताओं का उल्लेख है, उनकी वसूली प्रो. चन्द्रा सहित सभी दोषियों से कराने के निर्देश भी जारी किए गए हैं। विश्वविद्यालय प्रशासन मामले में एफआईआर और वसूली की कार्यवाही करेगा।

विधायक कोली ने बताई सच्चाई  

विश्वविद्यालय में हो रही अनियमितताओं को लेकर बोम सदस्य एवं वैर विधायक बहादुर सिंह कोली ने राज्यपाल को लिखित शिकायत दी। साथ ही इस मामले को राजस्थान विधानसभा में भी उठाया। इस पर राजभवन ने संभागीय आयुक्त से विश्वविद्यालय की अनियमितताओं की जांच करवाई। यह पहली बार है, जब जांच के आधार पर सीधे निलंबन, एफआईआर और वसूली की सख्त कार्रवाई के आदेश जारी किए गए हैं।

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