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मध्य प्रदेश में एक ऐसी जगह है, जो इतिहास के साथ दिलों को भी छू जाती है। भीमबेटका की गुफाएं केवल चट्टानें भर नहीं, मानव सभ्यता (Human Civilization) के शुरुआती युग की गवाही हैं। यहां इंसान ने अपनी भावनाओं, आशंकाओं, उत्सव और उल्लास तथा अस्तित्व की लड़ाई को उकेरा था। जब मानव ने जंगलों से निकलकर नई दुनिया की शुरुआत की, तब भीमबेटका की ये गुफाएं उसकी शरण बनीं, उसकी कहानी बनीं।
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मध्य प्रदेश पर्यटन गाइड
भीमबेटका न केवल मध्य प्रदेश पर्यटन विभाग निगम के तहत एक प्रमुख स्थल हैं, बल्कि, ये मध्य प्रदेश के प्रमुख पिकनिक स्पॉट्स में से एक हैं। तो ऐसे में मध्य प्रदेश ट्रैवल पैकेज में आप भीमबेटका को भी शामिल कर सकते हैं। बता दें कि भीमबेटका मध्य प्रदेश जंगल सफारी के अनुभव करने से न केवल आपको प्राचीन गुफाओं की अद्भुत चित्रकला देखने का मौका मिलता है, बल्कि आपको प्रकृति के करीब जाने का भी अवसर मिलता है।
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जानें कहां स्थित है भीमबेटका
मध्य प्रदेश का ऐतिहासिक स्थल भीमबेटका (Bhimbetka Caves) भोपाल से करीब 45 किलोमीटर दूर है। जब आप यहां से नर्मदापुरम (होशंगाबाद) की ओर नेशनल हाईवे 69 पर निकलते हैं तो एक अनदेखा सा रास्ता दाहिनी ओर मुड़ता है। अगर आप ध्यान न दें, तो आप इतिहास से दूर चले जाएंगे। मध्य प्रदेश पर्यटन निगम
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जी हां, यही वो स्थान है, जिसे यूनेस्को ने विश्व धरोहर स्थल (UNESCO World Heritage Site) का दर्जा दिया है। एक छोटी रेलवे क्रॉसिंग पार कर आप सूखे और पथरीले इलाके में पहुंचते हैं, जो तंजानिया के ओल्डुवाई गॉर्ज की याद दिलाता है।
भीमबेटका को देखकर पता चलता है कि यहां घने जंगल, झील और दलदल के बीच हमारा इतिहास 90 हजार साल पहले भी समृद्ध था। हाथी, बाइसन, गैंडा, बाघ, तेंदुए सभी इस इलाके में रहते थे। ऐसे माहौल में इंसान को सुरक्षा की जरूरत थी और ये चट्टानें उस सुरक्षा का आधार बनीं। ये गुफाएं इंसानों के आश्रय स्थल के साथ निगरानी स्थल थीं, जहां लोग जानवरों की चाल पर नजर रखकर खतरे से बचते थे।
भीमबेटका गुफाओं की असली कहानी
हमारे पूर्वजों को अक्सर गुफा मानव कहा जाता है, लेकिन सच तो यह है कि वे गुफाओं में पूरी तरह नहीं रहते थे। गुफाएं छोटी, संकरी और सीमित थीं। इसलिए वे प्राकृतिक छज्जों और चट्टानों के बीच बनी गुफाओं और गलियों को अपना आशियाना बनाते थे।
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भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ASI) ने भीमबेटका की करीब 750 गुफाओं को चिन्हित किया है। इनमें से लगभग 500 की दीवारों पर शताब्दियों पुराने चित्र मिलते हैं। ये प्राचीन चित्रकला (Ancient Rock Art) का प्रमाण हैं। ये चित्र जीवन के उस कालखंड की झलक हैं, जब इंसान अपने रोजमर्रा के जीवन, शिकार, नृत्य, खेल और सामाजिक जीवन को पत्थरों पर दर्ज करता था।
हमारे पूर्वजों की डायरी जैसे हैं चित्र
भीमबेटका की गुफाओं में बने चित्र एक तरह से हमारे पूर्वजों की डायरी हैं। कुछ चित्रों में शिकार करते जानवर, नृत्य करते इंसान और कुछ में दैनिक जीवन की घटनाएं साफ तौर पर नजर आती हैं। जब सूरज की किरणें ठीक कोण पर पड़ती हैं तो ये चित्र जीवंत हो उठते हैं।
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पहली गुफा के प्रवेश द्वार पर हाथियों के भव्य चित्र तो सब देखते हैं, लेकिन उनके पास एक शुतुरमुर्ग जैसा पंखों वाली आकृति भी है, जो अक्सर अनदेखी रह जाती है। क्या यह कोई पशु मात्र है, या कोई शिकारी...जो जानवरों के वेश में नृत्य कर रहा है? इतिहास की इस पहेली में अभी भी कई रहस्य छिपे हैं।
भीमबेटका में उकेरी गई कला और चित्रकला की कहानी
गुफा नंबर 8 के बाहर एक विशाल पक्षी का चित्र है। इसे स्थानीय लोग जू केव यानी जू गुफा कहते हैं। यह बहुत ही रोचक है। इसकी दीवारों पर बने चित्रों में जानवरों और शिकारियों की कहानियां उभरकर आती हैं।
एक चित्र में दिखाया गया है कि किस तरह हमारे पूर्वज बाइसन और हिरण जैसे जानवरों को खाई या दलदल में गिराकर शिकार करते थे।
एक चित्र में एक इंसान हाथ में ढाल और बूमरैंग जैसा हथियार लिए खड़ा है। यह हथियार उस समय के ऑस्ट्रिक लोग इस्तेमाल करते थे, जो हिमयुग के वक्त ऑस्ट्रेलिया तक फैले थे। ऐसा माना जाता है कि ये हथियार वहीं पहुंचे और ऑस्ट्रेलिया के आदिवासियों ने भी इन्हें अपनाया।
शिकार से सवारी तक मानव विकास का सफर
भीमबेटका के चित्रों से पता चलता है कि हमारे पूर्वज पैदल चलते थे, शिकार करते थे। धीरे-धीरे उन्होंने हाथी और घोड़ों को पालतू बनाया।
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गुफा नंबर 7 में दो घुड़सवार शिकारी भाला लिए शिकार पर निकले दिखाए गए हैं।
गुफा नंबर 9 के बाहर सुंदर सफेद घोड़े और बड़े हाथी भी चित्रित हैं, जो अपने मालिक के साथ नजर आते हैं।
एक चित्र में हिरण पर सैडल (झोला) बंधा हुआ है, यह तकनीक आज भी लैपलैंड के लोग अपने रेंडियर के लिए इस्तेमाल करते हैं। ये चित्र मानव सभ्यता (Human Civilization) के विकास और नवाचार की कहानी कहते हैं।
शिकारी जीवन और कबीले की रहस्यमयी परंपराएं
भीमबेटका के आदिमानव शिकारी थे। वे जानवरों के शिकार से जीवन यापन करते थे। यहां गौर करने योग्य बात यह है कि शिकार हमेशा आसान नहीं था, इसलिए वे अपने शमन (पूजारी या जादूगर) पर भरोसा करते थे। ये शमन जानवरों की खाल पहनकर, नशीले पदार्थों और प्राचीन आत्माओं की पूजा कर शिकार की सफलता सुनिश्चित करते थे। यह सांस्कृतिक और आध्यात्मिक जीवनशैली थी, जो मानव की सोच की गहराई को दर्शाती है।
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लाल, हरा, सफेद और गेरुआ रंग का इस्तेमाल
1957-58 में भीमबेटका की गुफाओं की खोज हुई। तब से अब तक यहां 750 से अधिक गुफाएं मिली हैं। इनमें से लगभग 500 की दीवारों पर चित्र बने हुए हैं। इन चित्रों में उपयोग किया गया रंग लाल, हरा, सफेद और गेरुआ है। इन चित्रों की उम्र करीब एक लाख साल से भी ज्यादा बताई जाती है।
...तो जनाब! मध्य प्रदेश के पर्यटन स्थल भीमबेटका की ये गुफाएं, ये चित्र, ये कहानियां केवल इतिहास नहीं हैं, बल्कि मानवता की अमिट पहचान हैं। जब आप भी कभी इस धरती पर आएं, तो इन पत्थरों पर उकेरी गई इन कहानियों को देखिए, समझिए और महसूस कीजिए। यह आपके लिए सिर्फ पर्यटन स्थल नहीं, बल्कि एक यात्रा होगी, मानव सभ्यता के उस अनमोल सफर की, जिसे आप हर कदम पर महसूस करेंगे।
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