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Photograph: (thesootr.com)
मध्य प्रदेश के अशोकनगर जिले में बसा छोटा सा लेकिन बेहद खास कस्बा है चंदेरी। यह नगर अपनी बारीक और शानदार कारीगरी के लिए दुनियाभर में अलग पहचान रखता है। यहां का राजसी इतिहास भी कम नहीं है। मुगल शासकों ने यहां लंबे समय तक राज किया। खंडहर बताते हैं कि यहां की इमारतें बुलंद थीं।
चंदेरी का इतिहास 11वीं सदी तक जाता है। यहां स्थित ऐतिहासिक इमारतें आज भी गौरवशाली अतीत की गवाही देती हैं। चंदेरी किला और बादल महल जैसी धरोहरें स्थापत्य कला की बेजोड़ मिसाल हैं। चंदेरी की खूबसूरती उसकी सादगी, ऐतिहासिकता और सांस्कृतिक विरासत में बसती है। यहां की खिन्नी प्रसिद्ध है। अंचल में खिन्नी को चंदेरी की मेवा के नाम से भी जाना जाता है।
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...तो चलिए हम आपको ले चलते हैं चंदेरी की सैर पर।
कीर्ति पाल के किले से चंदेरी का नजारा बेहद सुंदर लगता है। यह नगर एक घाटी में फैला हुआ है। इसके चारों तरफ पहाड़ हैं। खेतों और पेड़ों के बीच से मस्जिदों के गुंबद और मीनारें मनमोह लेती हैं। कहीं-कहीं से उस पुरानी ऊंची दीवार की झलक भी नजर आती है, जो कभी पूरे कस्बे को मजबूत सुरक्षा देती थी।
चंदेरी का इतिहास (Chanderi History)
16वीं सदी में यह नगर व्यापार का बड़ा केंद्र था। यही वजह है कि मुगल साम्राज्य के संस्थापक बाबर ने इसे जीतने की ठानी थी। इतिहासकार अब्राहम एराली ने अपनी किताब The Lives and Times of the Great Mughals में बड़े रोचक शब्दों में इसका वर्णन किया है।
ऊंची दीवार से घिरा था पूरा चंदेरी
दरअसल, 150 बरस पहले तक ऊंची दीवारों से घिरा होना किसी भी नगर की ताकत मानी जाती थी। क्योंकि बीच का इलाका अक्सर डकैतों और लुटेरों के निशाने पर होता था, इसलिए समृद्ध शहर अपनी सुरक्षा के लिए ऊंची दीवारें बनवाते थे। इनमें सिर्फ कुछ ही दरवाजे होते थे, जो दिन-रात पहरे में रहते थे।
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शहर के बीचों बीच अक्सर किसी ऊंची जगह पर किला या महल होता था। यहीं राजा रहता था, जो जनता से टैक्स लेकर उनकी सुरक्षा करता था। बदले में वह कानून-व्यवस्था बनाए रखता था, ताकि लोग बिना डर के अपना जीवन जी सकें। ऐसे शहरों के दरवाजे सूर्यास्त होते ही बंद कर दिए जाते थे। रात को केवल पहरेदारों की निगरानी में कुछ गिने-चुने लोगों को ही अंदर जाने की अनुमति होती थी। सुबह सूरज की किरणों के साथ दरवाजे फिर खोले जाते थे। बिलकुल ऐसा ही था चंदेरी का किला। जब मानसून खत्म हुआ तो बाबर ने चंदेरी पर चढ़ाई की। वहां के शासक मेदिनी राय के खिलाफ उसने युद्ध लड़ा। यहीं पर बाबर ने पहली बार जौहर नाम की राजपूत परंपरा देखी।
दरअसल, जब हार तय हो जाती थी तो महिलाएं और बच्चे खुद को आग में झोंक देते थे या फिर पुरुष उन्हें मार देते थे। इसके बाद पुरुष योद्धा या तो एक-दूसरे को मारते या दुश्मन से लड़ते हुए रणभूमि में शहीद हो जाते थे। ताकि उनका सम्मान बचा रहे। चंदेरी में भी राजपूतों ने अपना मान बचाया और बाबर ने किला जीत लिया। आज भी चंदेरी के लोग इस दुखद घटना को याद करते हुए बाबर की मस्जिद को दिखाते हैं।
बाबर की मस्जिद
आज यह मस्जिद खंडहर है, लेकिन उसमें आज भी पुरानी विशेषताएं देखी जा सकती हैं। जैसे वहां अरबी में खुदा शिलालेख है। इसे विशेषज्ञ ही पढ़ सकते हैं। मस्जिद के पीछे ऊंचा स्थान है, जहां से पूरे शहर का नजारा दिखाई देता है। वहीं से ऊपर चढ़कर जौहर स्मारक तक पहुंचा जा सकता है।
जौहर स्मारक
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जौहर स्मारक, वो स्थान जिसे लेकर कहा जाता है कि राजपूत परिवारों ने दुश्मनों के हाथों अपमान से बचने के लिए यहीं सामूहिक आत्मदाह किया था। क्योंकि उस वक्त युद्ध हारने पर महिलाओं को विजेताओं के हरम में भेज दिया जाता था और बच्चों को गुलामी की जिंदगी जीनी पड़ती थी। इसीलिए राजपूत परिवारों ने जौहर का रास्ता चुना था।
खूनी दरवाजा
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यह चंदेरी के ऐतिहासिक स्थल में से एक है। यहां एक खूनी दरवाजा भी है। कहा जाता है कि यही वो जगह है, जहां राजपूत योद्धाओं ने दुश्मनों से आखिरी लड़ाई लड़ी थी। लोककथाओं के अनुसार, यहां की जमीन खून से इतनी भर गई थी कि वह टखनों तक पहुंच गया था। यह घटना आज भी किसी भी दुर्ग की वीरगाथा में सबसे अलग मानी जाती है।
जामा मस्जिद
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चंदेरी की छोटी-छोटी गलियों से जब आप किले की तरफ बढ़ते हैं तो यह मस्जिद नजर आती है। यह 15वीं सदी की बड़ी मस्जिद है, जिसमें अंदर जाने के लिए बड़ा दरवाजा है, जो खुले आंगन में जाता है। आंगन के बीचों बीच पेड़ है, जो शायद नमाजियों को छाया देने के लिए लगाया गया होगा। यह मस्जिद मुख्य रूप से शुक्रवार यानी जुमे की नमाज और जनाजों (अंतिम संस्कार) के वक्त उपयोग होती है।
बादल महल
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जामा मस्जिद के पास बादल महल के रूप में रहस्यमयी इमारत है। साथ ही यह चंदेरी के प्रसिद्ध जगह में से एक है। यहां बना है कि एक लंबा, पतला और सजावटी दरवाजा... जो कहीं नहीं जाता। इसके आगे या पीछे कोई इमारत नहीं है। कोई लोककथा भी नहीं है, जो इसके उद्देश्य को समझा सके। लेकिन चूंकि इसका नाम महल है न कि दरवाजा। माना जाता है कि यह किसी ग्रीष्मकालीन महल का प्रवेशद्वार रहा होगा। इसमें बारिश जैसे कृत्रिम जलप्रपात की व्यवस्था रही होगी।
निजामुद्दीन की कब्र
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एक चारदीवारी में कई मकबरे हैं, जो पत्थर की जालियों से ढके हैं। कुछ लोग मानते हैं कि ये मकबरे हजरत निजामुद्दीन औलिया के परिवार के हैं। कुछ का मानना है कि ये मकबरे निजामुद्दीन अहमद बख्शी के वंशजों के हैं। जो 16वीं सदी में मुगल सेना के खासमखास थे और 'तारीख-ए-निजामी' नामक इतिहास की प्रसिद्ध किताब लिखी थी।
राजा शिशुपाल का तालाब (परमेश्वर तालाब)
शहर के बाहर खेतों और बागों के बीच में परमेश्वर तालाब तालाब है। इसके एक ओर सफेद लक्ष्मण मंदिर और दूसरी ओर पीले रंग की दुर्जन सिंह की छतरी है। इन दोनों में खास ऐतिहासिक या धार्मिक महत्व नहीं है, लेकिन इस तालाब से जुड़ी दिलचस्प कहानी है।
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कहा जाता है कि एक बार राजा शिशुपाल जंगल में शिकार करते-करते भटक गए। उन्हें प्यास लगी। तभी उन्हें सुंदर महिला दिखाई दी। राजा ने उससे पानी का रास्ता पूछा और गलती से उसे छू लिया। महिला बोली कि वह एक देवी है। उसे छूना ठीक नहीं था, लेकिन उसने करुणा दिखाते हुए जलस्रोत बनाया। राजा ने वहां से पानी पीया और साथ ही अपनी पुरानी त्वचा की बीमारी से भी ठीक हो गया। यह तालाब उसी चमत्कार की याद में शिशुपाल तालाब कहलाया।
इसी में एक कहानी यह भी है कि जिस देवी को राजा ने छुआ था, उसने राजा से कहा था कि वह एक मंदिर बनवाएं। इसमें नौ दिन तक पर्दा न हटाया जाए। राजा ने वादा किया, लेकिन दो दिन बाद ही पर्दा हटा दिया। अंदर सिर्फ एक सिर बना था, शरीर नहीं। यह अनोखी मूर्ति जागेश्वरी मंदिर में देखी जा सकती है।
आज यह मंदिर परिसर है, जो एक पहाड़ी से जुड़ा हुआ है। इसमें 90 सीढ़ियां हैं। बीच-बीच में आराम करने के लिए चबूतरे बने हैं। रास्ते में जलकुंड और छोटा मंदिर भी है। चट्टानों से जुड़े इन मंदिरों के सामने बरामदे बने हैं। पहाड़ी की ठंडी हवा में लाल और पीले झंडे लहराते हैं। मुख्य मंदिर जागेश्वरी देवी का है, जहां मूर्ति को लाल वस्त्रों से पूरी तरह ढका गया है। पास के अन्य मंदिर भी दर्शनीय हैं।
शहजादी का रौजा
तालाब के किनारे से संकरी सड़क जाती है, जो एक ऊंचे टीले पर बने स्मारक तक पहुंचती है। इसे शहजादी का रौजा कहा जाता है। यह अलग-थलग जगह पर है और एक पुराने द्वीप के समान ऊंचाई पर बना है। यह स्थान भी अपनी अनकही कहानी समेटे हुए है।
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इसकी एक कहानी प्रचलित है। कहा जाता है कि मेहरूनिसा नाम की सुंदर राजकुमारी थी, जो सुल्तान हकीम खान की बेटी थी। वह अपने पिता की सेना के एक अधिकारी से प्यार करने लगी। सुल्तान को यह रिश्ता मंजूर नहीं था, क्योंकि वह अधिकारी ऊंचे खानदान से नहीं था। सुल्तान ने अपने चार खास आदमियों को उस अफसर को मारने का हुक्म दे दिया। वह अफसर घोड़े पर बैठकर भागने की कोशिश कर रहा था, लेकिन उसका घोड़ा मारा गया। वह पैदल भागा, लेकिन उसे पकड़कर मार दिया गया।
जब यह बात राजकुमारी को पता चली तो वह दुखी हो गई। वह महल से भागकर उस सैनिक की लाश पर जा गिरी और वहीं खुदकुशी कर ली। राजकुमारी होने के नाते उसे एक मकबरा (रौजा) बनवाकर दफनाया गया, लेकिन उसके पिता ने ऐसा रौजा बनवाया जो लोगों को आकर्षित न करे। उन्होंने इसे एक तालाब के बीच चट्टान पर बनवाया, ताकि कोई आसानी से वहां न जा सके।
कोषक महल
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चंदेरी में स्थित कोषकमहल ऊंची इमारत है। इसमें कई मेहराबें और आंगन हैं। एक शिलालेख के अनुसार, मालवा के सुल्तान महमूद द्वितीय खिलजी ने 1 हजार 445 में यहां एक सात मंजिला महल बनवाने का आदेश दिया था, लेकिन दो मंजिलें बन पाई। कुछ लोगों का मानना है कि सुल्तान का इस प्रोजेक्ट से मन हट गया था। कुछ अन्य जानकारों का कहना है कि अफसरों ने पैसे की चोरी की और ऊपरी मंजिलें इतनी कमजोर बनीं कि गिर गई। जो दो मंजिलें आज खड़ी हैं, वे अतीत की गवाही देती हैं।
खंडगिरि
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चंदेरी में जैन मंदिर भी खूब हैं। खंडगिरि में भी ऐसे ही मंदिर हैं, करीब 700 साल पहले एक पहाड़ी चट्टान को काटकर बनाए गए थे। सीढ़ियों की शुरुआत में भगवान महावीर की विशाल मूर्ति है। सीढ़ियां चढ़ने से पहले जूते उतारने होते हैं। पहाड़ी की चट्टानों पर कई तीर्थंकरों की मूर्तियां बनी हैं। इन्हें खंभों और मेहराबों वाले बरामदों से ढका गया है। यहां आने का सबसे अच्छा समय सूर्यास्त का होता है, जब चट्टानें सुनहरी रोशनी में चमकने लगती हैं।
कटी गेट
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कटी गेट के रूप में चंदेरी में अनोखा द्वार है, जो चट्टान को काटकर बनाया गया है। यह बुंदेलखंड को मालवा से जोड़ता है। शिलालेख बताता है कि इसे 1430 में घियास शाह के शासन में जिमन खान के आदेश से बनाया गया था। यह द्वार हमला रोकने के लिए बनाया गया था। चट्टान को इतना चिकना बनाया गया था कि उस पर चढ़ा न जा सके। बीच में एक दीवार थी। इसमें एक मेहराबदार दरवाजा और तोप रखने की जगहें थीं।
सिंहपुर महल
यह वह अंतिम जगह है, जहां आने के बाद चंदेरी की ऐतिहासिक और रहस्यमयी यात्रा पूरी होती है। आज यह जगह भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ASI) के जरिए संचालित सुंदर और व्यवस्थित म्यूजियम है। म्यूजियम के बगीचे में भगवान विष्णु के वराह अवतार की बड़ी मूर्ति और सुंदर गणेश जी की मूर्ति है।
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म्यूजियम के अंदर दीर्घाओं (गैलरीज) में आपको मध्यप्रदेश की प्राचीन गुफा चित्रकला, अलग-अलग स्थापत्य शैलियों के चित्र, पुराने चंदेरी से मिले हिन्दू देवी-देवताओं की मूर्तियां और बौद्ध, जैन मूर्तियों के संग्रह देखने को मिलेंगे। नीचे की अंतिम गैलरी में मुगलकालीन लघु चित्रों की बड़ी तस्वीरें हैं, जैसे बाबर और इब्राहिम लोदी की पानीपत की लड़ाई (1526) और बाबर द्वारा चंदेरी किले पर कब्जा (1528) की दास्तां।
ऊपरी मंजिल की गैलरी में पुराने हथियार, करघा (बुनाई मशीन), रसोई के बर्तन और वाद्ययंत्र रखे हैं। म्यूजियम के बाहर लगे सूचना बोर्ड के अनुसार, चंदेरी, बुंदेलों के अधीन था। वह पहले ओरछा का हिस्सा था। लेकिन मुगल सम्राट जहांगीर ने ओरछा का हिस्सा वीर सिंह को दिया और चंदेरी राम शाह को मिला।
देवी सिंह बुंदेला ने चंदेरी को किया विकसित
राम शाह के पोते और भरत शाह के बेटे देवी सिंह बुंदेला (1645-63) ने चंदेरी को विकसित किया। वे आयुर्वेद के जानकार, अच्छे योद्धा, प्रशासक और मुगल बादशाह शाहजहां के दरबार में सम्मानित व्यक्ति थे।
चंदेरी की समृद्धि इस वजह से भी थी, क्योंकि यह व्यापारिक रास्ते पर था, जो उत्तर भारत को अरब सागर के किनारे स्थित सूरत से जोड़ता था। जब अंग्रेजों ने रेल लाइन बिछाई तो उन्होंने चंदेरी को छोड़ दिया, शायद यहां की ऊंचाई और ढलानों के कारण। इस कारण चंदेरी धीरे-धीरे पिछड़ गया। हालांकि, एक उद्योग बचा रहा, जो था चंदेरी की हथकरघा बुनाई, क्योंकि उसकी खूबसूरती को कोई मशीन दोहरा नहीं सकती थी। आज भी चंदेरी की बुनाई कला जादू की तरह लगती है।
चंदेरी के चमकते कपड़े
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चंदेरी के बुनकर मोहल्ले में संकरे रास्ते, आंगन वाले मकान और हर तरफ करघों की ठक-ठक की आवाज गूंजती है। बीच-बीच में फिल्मी गाने सुनाई देते हैं। यहां रेशम की डोरी बनारस से, कॉटन कोयंबटूर से और कीमती सोने-चांदी के तार सूरत से आते हैं।
पहले यहां के बुनकर रईस लोगों के लिए पतले साफे और रूमाल बनाते थे। रूमाल को लोग अंगूठी में फंसाकर स्टाइल में रखते थे। जैसे-जैसे राजदरबार और उनके ठाठ-बाठ खत्म हुए, वैसे ही बुनकरों ने अपने हुनर को बदला और अब महिलाओं के लिए आकर्षक साड़ियां बनाने लगे। अब चंदेरी के बुनकर सिर्फ साड़ी नहीं, बल्कि परदे, टेबल क्लॉथ भी बनाते हैं, जो पर्यटक खरीदकर अपने घर ले जा सकते हैं।
प्राणपुर गांव
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चंदेरी के पास स्थित प्राणपुर बहुत ही सुंदर और हस्तशिल्प के लिए प्रसिद्ध गांव है। यहां पीढ़ियों से बुनकर और कारीगर रहते आए हैं। यह गांव बुनाई के साथ बांस, लकड़ी और पत्थर की कला के लिए भी जाना जाता है। यहां का हथकरघा पर्यटन ग्राम पर्यटकों को शानदार अनुभव देता है। यहां वे स्थानीय संस्कृति को करीब से देख सकते हैं और असली चंदेरी उत्पाद खरीद सकते हैं।
चंदेरी कैसे पहुंच सकते हैं?
चंदेरी यात्रा गाइड में thesootr आपको बताएगा की आप यहां कैसे जा सकते हैं? बता दें कि चंदेरी झांसी रेलवे स्टेशन से करीब 103 किलोमीटर और राजधानी भोपाल से करीब 214 किलोमीटर दूर है। आप अशोकनगर से बस और कार के माध्यम से भी चंदेरी पहुंच सकते हैं। यह और आसान रास्ता होगा। अगर आप इतिहास, कला और हस्तशिल्प में रुचि रखते हैं तो चंदेरी जरूर जाएं। यह नगर आपको अलग ही दुनिया का एहसास कराता है।
चंदेरी में कहां रुके
चंदेरी यात्रा टिप्स (Chanderi Travel Tips) में thesootr आपको बता रहा है की आप चंदेरी में कहां रुक सकते हैं। बता दें कि सैलानियों के लिए यहां कई आलीशान होटल मौजूद है।
1. MPT किला कोठी
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यह होटल पुराने सिंधिया राजघराने की कोठी थी। इसे अब आलीशान होटल में बदल दिया गया है। यहां कुल 6 AC कमरे, सुंदर बगीचा और रेस्टोरेंट है। आप चंदेरी जा रहे हैं तो होटल के लिए मोबाइल नंबर 7004885979 या ईमेल kilakothi@mpstdc.com पर संपर्क कर सकते हैं।
2. MPT ताना बाना
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यह होटल चंदेरी के प्राकृतिक और ऐतिहासिक दृश्यों के बीच है। यहां से चंदेरी किला साफ दिखाई देता है। यहां भी एसी रूम और रेस्टोरेंट है। यहां से चंदेरी के बुनकर गांव, ऐतिहासिक स्थल और बस स्टैंड पास में है। आप होटल MPT ताना बाना के मोबाइल नंबर 7547252222 अथवा ईमेल chanderi@mpstdc.com पर संपर्क कर सकते हैं।
...तो जनाब! आप कब जा रहे हैं चंदेरी? यहां का हथकरघा ग्राम पर्यटकों को शानदार अनुभव देता है। यहां वे स्थानीय संस्कृति को करीब से देख सकते हैं और असली चंदेरी उत्पाद खरीद सकते हैं। तो अब इंतजार किस बात का? अपने अगले यात्रा कार्यक्रम में चंदेरी को शामिल करना न भूलें, क्योंकि यहां हर कोने में एक नई कहानी, एक नया अनुभव आपका इंतजार कर रहा है।
एक नजर मध्य प्रदेश पर्यटन पर
मध्य प्रदेश पर्यटन का अनुभव अद्वितीय है। यहां प्राकृतिक सुंदरता और ऐतिहासिक धरोहर का संगम है। मध्य प्रदेश पर्यटन विभाग के जरिए प्रदान की गई सुविधाओं के साथ, मध्य प्रदेश के प्रमुख पिकनिक स्पॉट्स पर्यटकों को आरामदायक और रोमांचक समय बिताने का मौका देते हैं। मध्य प्रदेश दर्शन करने के लिए यहां कई पर्यटन स्थल मौजूद है।
मध्य प्रदेश के पर्यटन स्थल जैसे कि भीमबेटका, सांची, और खजुराहो का दौरा किया जा सकता है। मध्य प्रदेश जंगल सफारी के दौरान आप बाघों और अन्य वन्य जीवों को उनके प्राकृतिक आवास में देख सकते हैं। साथ ही, मध्य प्रदेश के ऐतिहासिक स्थल जैसे ग्वालियर किला, उज्जैन, चंदेरी, और ओरछा पर्यटकों के लिए आकर्षण का केंद्र बने हुए हैं। मध्य प्रदेश ट्रैवल पैकेज और मध्य प्रदेश पर्यटन गाइड आपको इस राज्य के बेहतरीन स्थल और यात्रा विकल्पों से परिचित कराते हैं। इससे आप अपनी यात्रा को और भी रोमांचक बना सकते हैं।
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