हे उदित राज! ये क्या कर डाला, थोड़ी बहुत शर्म आती है या नहीं

अब सवाल कांग्रेस पार्टी से भी बड़ा है। उदित राज अकेले तो नहीं बोल रहे होंगे। वह पार्टी के राष्ट्रीय प्रवक्ता हैं। प्रवक्ता वही बोलता है जो पार्टी लाइन होती है। तो क्या कांग्रेस की सोच यही है?

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Ravi Kant Dixit
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नेताओं की घटिया और शर्मनाक राजनीति की यह ताजा बानगी आपको अंदर तक झकझोर देगी। जिस देश ने हाल ही में अपनी वैज्ञानिक क्षमता का डंका पूरी दुनिया में बजाया, वही देश अपने ही बेटे के लौटने पर ओछी जातिवादी सियासत का अखाड़ा बन गया है। जिस पल भारत के लाल ग्रुप कैप्टन शुभांशु शुक्ला ने अंतरिक्ष से धरती पर वापसी की, उस पल हर देशवासी का सीना गर्व से फूल गया था। पूरा देश एक साथ खड़ा होकर तालियां बजा रहा था, लेकिन ठीक उसी वक्त कुछ नेताओं के पेट में जातिवाद का कीड़ा कुलबुलाने लगा। 

कांग्रेस के राष्ट्रीय प्रवक्ता उदित राज ने अपनी ओछी राजनीति के लिए उस गौरव के पल को भी जहर से रंगने की कुत्सित कोशिश कर डाली। उन्होंने खुलेआम कहा कि इस बार किसी दलित या ओबीसी को अंतरिक्ष में भेजा जाना चाहिए था। क्या ये सुनकर आपको गुस्सा नहीं आता? क्या किसी वैज्ञानिक, सैनिक, खिलाड़ी या कलाकार की पहचान सिर्फ उसकी जाति होती है? क्या एक अंतरिक्ष यात्री की कड़ी मेहनत, उसका प्रशिक्षण, उसकी काबिलियत, उसकी वर्षों की तपस्या सब बेकार हैं, क्योंकि वह उस जाति से नहीं है, जो इन नेताओं के वोट बैंक का पेट भरती है?

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उदित राज ने न सिर्फ शुभांशु शुक्ला के अपमान में शब्दों की सारी मर्यादा तोड़ी, बल्कि पूरे देश के वैज्ञानिक समुदाय का मखौल उड़ाया है। उन्होंने यहां तक कह दिया कि नासा ने कौन सी परीक्षा ली थी, जिससे शुभांशु का सिलेक्शन हुआ। इस बेहूदगी को क्या नाम दें? क्या नासा या इसरो कोई जाति देखकर मिशन की जिम्मेदारी देता है? क्या अंतरिक्ष में जाने वाला वैज्ञानिक कोई टिकट लेकर सीट बुक करवा लेता है? क्या ये लोग समझते हैं कि करोड़ों लोगों के खून-पसीने से खड़े हुए वैज्ञानिक संस्थान भी इनके घटिया वोट बैंक के लिए ही काम करेंगे? उदित राज को शायद अंदाजा नहीं कि इस देश में वैज्ञानिक बनना, अंतरिक्ष यात्री बनना कोई जाति आधारित ठेका नहीं, यह तपस्या है। यह अपनी जान हथेली पर लेकर अंतरिक्ष में जाना है, जहां जरा सी चूक मौत लेकर लौटती है।

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लेकिन नेताओं को शर्म कब आती है? उदित राज ने बिना एक पल की शर्मिंदगी के कहा कि शुभांशु शुक्ला की जगह किसी दलित को भेजा जाना चाहिए था। यानी जब देश अंतरिक्ष में परचम लहरा रहा था, तब इनके दिमाग में सिर्फ वोट बैंक गूंज रहा था। सोचिए, जब राकेश शर्मा अंतरिक्ष में गए थे, तब भारत ने उनसे सिर्फ एक सवाल पूछा था। भारत अंतरिक्ष से कैसा दिखता है? उन्होंने कहा था- सारे जहां से अच्छा। और यह सवाल पूछने वाली भी और कोई नहीं, इंदिरा गांधी थीं। आज शुभांशु शुक्ला लौटे हैं तो उनसे भी भारत को यही उम्मीद थी कि वो नई प्रेरणा देंगे, नए सपने देंगे, नई दिशा देंगे। लेकिन उदित जैसे नेता उन सपनों में भी जातिवाद का जहर घोलने निकल पड़े हैं।

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लोगों ने उदित राज को लताड़ा 

जिस वक्त देश सोशल मीडिया पर Welcome Back Shubhanshu के साथ अपनी खुशी जाहिर कर रहा था, उसी वक्त उदित ने अपना शर्मनाक राज खोल दिया। लाखों भारतीयों ने उदित को आड़े हाथों लिया। किसी ने लिखा कि क्या अब अंतरिक्ष में भी आरक्षण लागू करोगे? कोई कह रहा था कि विज्ञान, सेना, खेल, तकनीक हर जगह आप कोटा चाहते हो? ये कैसी राजनीति है? क्या कोई अंतरिक्ष में जाति लेकर जाता है? कोई ब्लैक हो या वाइट, दलित हो या ओबीसी, अंतरिक्ष में सिर्फ इंसान जाता है, जो अपने देश का झंडा लेकर जाता है। लेकिन इस सच्चाई से नेताओं को क्या फर्क पड़ता है? उन्हें तो हर जगह जाति दिखती है, विज्ञान नहीं। उन्हें मेहनत से भरी कहानियां नहीं दिखतीं, उन्हें तो सिर्फ जातिगत ठेकेदारी में वोटों की गिनती दिखती है।

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इससे शर्मनाक और क्या होगा?

अब सवाल कांग्रेस पार्टी से भी बड़ा है। उदित राज अकेले तो नहीं बोल रहे होंगे। वह पार्टी के राष्ट्रीय प्रवक्ता हैं। प्रवक्ता वही बोलता है जो पार्टी लाइन होती है। तो क्या कांग्रेस की सोच यही है? क्या राहुल गांधी, सोनिया गांधी, मल्लिकार्जुन खड़गे इस बयान से सहमत हैं? अगर नहीं हैं तो अब तक खंडन क्यों नहीं आया? अब तक उदित राज पर कोई कार्रवाई क्यों नहीं हुई? क्यों नहीं जनता के सामने माफी मांगी गई? क्या कांग्रेस को लगता है कि अंतरिक्ष तक भी जाति की दुकानदारी पहुंचा दी जाए? सोचिए, एक तरफ देश चांद, मंगल, सूरज, गगनयान की तैयारी कर रहा है, दूसरी तरफ नेता इन अभियानों में भी आरक्षण घुसेड़ने का सपना पाल रहे हैं। इससे शर्मनाक और क्या होगा?

बस जाति कार्ड खेलना चाहते हैं नेता 

भारत के दलित समाज को अगर सच में मजबूत बनाना है तो उसे ऐसे बयानों से बाहर लाना होगा। क्या उदित राज को पता नहीं कि लोकसभा में 84 सीटें पहले से एससी के लिए आरक्षित हैं? क्या उन्हें नहीं पता कि मोदी सरकार में 10 दलित मंत्री हैं? क्या उन्हें नहीं पता कि दो-दो राष्ट्रपति दलित रह चुके हैं? पहले के.आर.नारायण और दूसरे मोदी सरकार में रामनाथ कोविंद। सुप्रीम कोर्ट के मौजूदा चीफ जस्टिस वीआर गवई दलित समुदाय से आते हैं। उनसे पहले 2007 में जस्टिस केजी बालाकृष्णन भारत के पहले दलित मुख्य न्यायाधीश बने थे। 


क्या मायावती को कोई भूल गया है? क्या बिहार, आंध्र प्रदेश, राजस्थान, पंजाब में जो दलित मुख्यमंत्री बने वो किसी को दिखते नहीं? क्या हजारों दलित अफसर, वैज्ञानिक, वैज्ञानिक संस्थानों में टॉप वैज्ञानिक आज बड़े-बड़े प्रोजेक्ट संभाल रहे हैं, वो किस जाति की मोहर लगाकर काम कर रहे हैं? क्या वो देश का नाम रोशन नहीं कर रहे? नहीं, ये सब अपने श्रम, शक्ति, साहस और काबिलियत से इन पदों पर हैं, लेकिन यह सब हकीकत नेताओं को नहीं चाहिए, उन्हें तो हर कहानी में सिर्फ एक कोना चाहिए जहां से वो जाति कार्ड खेलकर राजनीति कर सकें।

जहर घोलने की कोशिश है ये 

यह खबर इसलिए जरूरी है कि आज जो शुभांशु शुक्ला के लिए बोला गया, कल वो आपके बच्चे के लिए भी बोला जाएगा। कल अगर कोई बच्चा अंतरिक्ष यात्री बनना चाहेगा तो क्या उसका रास्ता जाति देख कर रोका जाएगा? क्या कोई कहेगा कि तुम ओबीसी नहीं हो तो तुम नहीं जा सकते? या तुम जनरल हो इसलिए तुम बेकार हो? ये कौन सा भारत बनाना चाहते हैं ये नेता? यह देश मेहनत से बना है, जाति से नहीं। यह देश तपस्या से बना है, कोटा से नहीं। अगर यही घटिया राजनीति चलती रही तो विज्ञान, अंतरिक्ष, सेना सबका भविष्य इन नेताओं के हाथों में गिरवी रख दिया जाएगा।

इस देश का युवा जाति के नाम पर वोट नहीं चाहता। उसे अवसर चाहिए, बराबरी चाहिए, सपनों को उड़ान चाहिए। कोई यह नहीं कहता कि दलित या ओबीसी को मौका नहीं मिलना चाहिए। पर यह मौका मेहनत से तय होगा, किसी कोटे से नहीं। जो मेहनत करेगा वही सितारे छुएगा, जो तैयारी करेगा वही मिशन संभालेगा। लेकिन उदित राज जैसे नेता चाहते हैं कि हर काम में जाति का लेबल चिपका दो, ताकि हर पीढ़ी के दिमाग में जाति का जहर घुलता रहे। ये जहर ही तो इन नेताओं का राजनीतिक ऑक्सीजन है। वैसे उदित राज जैसे नेताओं का कॅरियर भी देखकर लगता है कि इनके लिए घटिया राजनीति ही सर्वोपरि है। पहले वे भाजपा में थे। फिर कांग्रेस में आ गए। 

अंत में बस यही कि...

अब वक्त आ गया है कि देश ऐसी घटिया राजनीति करने वालों को सबक सिखाए। अब जनता को तय करना होगा कि नेता को उसकी जातिवादी भाषा से वोट देगा या उस वैज्ञानिक को उसकी प्रतिभा से सम्मान देगा। अब यह भारत वो भारत नहीं रहा जो इनकी झूठी राजनीति में उलझा रहे। अब यह भारत वो भारत है जो मंगल तक जा सकता है, सूरज को नाप सकता है, चांद पर ठिकाना बना सकता है और अंतरिक्ष में अपने बच्चों को भेज सकता है। शुभांशु शुक्ला जैसे लोग इस देश के असली सितारे हैं, जिनके आगे कोई जाति नहीं चलती। चलती है तो सिर्फ उनकी लगन, उनका पसीना, उनकी तपस्या और उनका भारत से बेइंतहा प्यार।

तो जिन नेताओं को आज भी लगता है कि जाति की दुकानदारी चलाकर वोट काट लेंगे, वो ये भी याद रखें कि अब जनता जाति के नाम पर बांटने वालों को सिर्फ सोशल मीडिया पर नहीं, सीधे चुनावी मैदान में धोना जानती है। देश का बच्चा-बच्चा देख रहा है कि कौन वैज्ञानिक के नाम पर जाति का कीचड़ उछाल रहा है और कौन उस वैज्ञानिक को गर्व से सलाम कर रहा है।

शुभांशु शुक्ला जैसे बेटों को सलाम...उनकी मेहनत को सलाम...। उनकी हिम्मत को सलाम। और इस देश की मिट्टी को सलाम जिसने ऐसे लाल पैदा किए। और जो इस मिट्टी पर खड़े होकर अपनी ओछी जातिवादी राजनीति से ऐसे बेटों का मान घटाना चाहते हैं, उन्हें शर्म भी नहीं आती तो कम से कम इतना तो समझ लें कि अब इस देश की हवा में उनकी गंदी सियासत ज्यादा देर टिकने वाली नहीं।

ये भारत का गौरव है, इसे किसी जाति के खांचे में मत घसीटो। ये हर हिंदुस्तानी का बेटा है, हर बच्चे का सपना है और हर युवा का आदर्श है। इस पर कोई दाग मत लगाओ। इसे जाति के कीचड़ में मत घसीटो। क्योंकि ये भारत अब जाति से नहीं, मेहनत से चलेगा, वैज्ञानिक सोच से चलेगा, और ऐसे ही शुभांशु शुक्ला जैसे बेटों के हौसले से आसमान छुएगा।

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विचार मंथन | विचार मंथन द सूत्र | पत्रकार रविकांत दीक्षित 

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