देसी ब्रांडः जानिए बोरोलीन ने कैसे जीता भारतीयों का दिल, आजादी के बाद क्यों फ्री बांटी थी 1 लाख ट्यूब्स?

बोरोलीन की कहानी स्वदेशी आंदोलन, आत्मनिर्भरता और उपभोक्ता विश्वास की प्रेरणादायक गाथा है। बोरोलीन ने संघर्ष से सफलता पाई और बाजार में अपनी पकड़ मजबूत की।

author-image
Manish Kumar
New Update
be indian buy indian boroline

Photograph: (The Sootr)

Listen to this article
0.75x1x1.5x
00:00/ 00:00

Be इंडियन-Buy इंडियन: देसी ब्रांड बोरोलीन की यह स्टोरी न केवल एक ब्रांड की कहानी है, बल्कि यह भारतीय स्वदेशी आंदोलन, आत्मनिर्भरता, और उपभोक्ता विश्वास की एक प्रेरणादायक गाथा भी है। इसकी यात्रा संघर्ष, सफलता और आज की मजबूत बाजार स्थिति तक की है जो अन्य भारतीय ब्रांडों के लिए मिसाल प्रस्तुत करती है।

 आगे भारतीय ब्रांड बोरोलीन की सफलता की कहानी को विस्तार से बताया गया है, जिसमें इसकी शुरुआत, संघर्ष, सफलता और वर्तमान स्थिति को प्रमुखता से समझाया गया है। बोरोलीन की यात्रा संघर्ष से सफलता तक पहुंची और यह एक भरोसेमंद भारतीय ब्रांड बन गया। 

be indian-buy indian

बोरोलीन की शुरुआत

बोरोलीन का जन्म 1929 में कोलकाता (तत्कालीन कलकत्ता) के एक जाने-माने बिजनेसमैन गौर मोहन दत्ता ने किया था। उस समय भारत अंग्रेजों के शासन के अधीन था और विदेशी औषधीय उत्पाद बाजार में काबिज थे। गौर मोहन दत्ता, जो पहले विदेशी उत्पादों के आयातक थे, स्वदेशी आंदोलन से प्रेरित होकर भारत में ऐसा उत्पाद बनाने का संकल्प लिया जो विदेशी ब्रांड्स को टक्कर दे सके और हर भारतीय के लिए सुलभ हो। इसी उद्देश्य से उन्होंने अपनी कंपनी जीडी फार्मास्यूटिकल्स की स्थापना की और बाजार में बोरोलीन क्रीम उतारी ।

बोरोलीन नाम दो शब्दों से बना है - "बोरो" जिसका अर्थ है बोरिक पाउडर (जिसमें एंटीसेप्टिक गुण हैं) और "ओलिन" लैटिन शब्द "ओलियम" से लिया गया है, जिसका अर्थ तेल होता है। यह नाम इस उत्पाद के तत्त्वों और गुणों का सूचक है। बोरोलीन को एक ऐसी क्रीम के रूप में डिजाइन किया गया था जो भारत के हर क्षेत्र और त्वचा प्रकार के लोगों के लिए उपयुक्त हो, चाहे वह कश्मीर के ठंडे क्षेत्र हों या दक्षिण भारत की धूप-धड़ी आबोहवा ।

शुरुआती संघर्ष की कहानी

बोरोलीन की शुरुआत के समय चुनौती कम नहीं थी। विदेशी उत्पादों का दबदबा और अंग्रेजी सरकार की लॉबी स्वदेशी उत्पादों के विकास में बाधा डालती थी। गौर मोहन दत्ता को न केवल बाजार में विदेशी उत्पादों से मुकाबला करना था, बल्कि अंग्रेजों के विरोध का भी सामना करना पड़ा। इसके बावजूद उन्होंने आत्मनिर्भरता और स्वदेशी भावना के साथ बोरोलीन को लोकप्रिय बनाने पर जोर दिया। प्रारंभिक दिनों में यह उत्पाद महज कोलकाता तक ही सीमित था, लेकिन जल्द ही इसकी मांग पूरे भारत में फैलने लगी। खासकर जब आजादी के बाद 15 अगस्त 1947 को बोरोलीन की एक लाख ट्यूबें फ्री में बांटी गईं, तब यह आम भारतीय के दिल में घर कर गई ।

बोरोलीन की सफलता की कहानी

बोरोलीन ने भारतीय उपभोक्ता के बीच अपनी एक अलग पहचान बनाई जो केवल सौंदर्य प्रसाधनों तक सीमित नहीं थी। यह एक भरोसेमंद एंटीसेप्टिक क्रीम बन गई जो कटे-फटे हिस्सों, फटी एड़ियों, जलन और फुंसियों जैसे त्वचा रोगों में राहत देती थी। अपनी असरदार गुणवत्ता और किफायती कीमत के कारण यह जल्दी ही हर भारतीय घर की आवश्यक फर्स्ट एड बॉक्स का हिस्सा बन गई। 

बोरोलीन की सफलता का एक बड़ा कारण इसका पारदर्शी फार्मूला था, जो कभी कंपनी ने गुप्त नहीं रखा। इसने उपभोक्ताओं में विश्‍वास जगा लिया और स्वदेशी भावना को भी बल दिया। यह क्रीम केवल उपभोक्ता वस्तु नहीं, बल्कि उस समय के सामाजिक और राजनीतिक परिप्रेक्ष्य में भी आत्मनिर्भरता का प्रतीक बन गई। इसने विदेशी उत्पादों को टक्कर देते हुए एक भारतीय ब्रांड के रूप में अपनी जगह बनाई ।[3][1][4]

आज बाजार में बोरोलीन की स्थिति

देबाशीष दत्ता - जीडी फार्मा के एमडी

आज बोरोलीन की उम्र 95 वर्षों से अधिक हो चुकी है और यह जीडी फार्मास्यूटिकल्स कंपनी के अंतर्गत आती है। यह क्रीम अब भी कई घरेलू जरूरतों की पूर्ति करती है और एक भरोसेमंद एंटीसेप्टिक क्रीम के रूप में जाना जाता है। इसके साथ ही, बोरोलीन ने अपने उत्पाद वर्ग को बढ़ाया है और व्यक्तिगत देखभाल संबंधी कई उत्पाद भी लॉन्च किए हैं। 

बोरोलीन ने भारतीय बाजार में अपने पैर मजबूत बनाए रखे हैं, विशेषकर ग्रामीण और छोटे शहरों में जहां पर यह उपभोक्ता विश्वास का ब्रांड है। इसके अलावा इसने मार्केट में 'स्वदेशी' और 'आत्मनिर्भर भारत' कैंपेन की भावना को भी प्रेरित किया है। इसका लोगो और हरी ट्यूब पहचान के रूप में गहरा स्थापित है ।

बोरोलीन की शुरुआती मार्केटिंग स्ट्रैटजी क्या थी?

बोरोलीन का अखबार में छपा एक एड

बोरोलीन की शुरुआती मार्केटिंग स्ट्रैटजी इमोशनल कनेक्ट (स्वदेशी भावना), भरोसेमंद प्रोडक्ट क्वालिटी, ट्रांसपेरेंसी, कंज्यूमर के लिए पॉकेट फ्रेंडली और मल्टीयूज प्रोडक्ट के रूप में पहचान बनाने पर केंद्रित थीं। इनके अलावा फ्री बांटने और मीडिया का सीमित लेकिन प्रभावी इस्तेमाल इसी सफलता की अन्य कुंजी थे। यह स्ट्रैटजी बिना भारी विज्ञापन बजट के भी बोरोलीन को सफल ब्रांड बनाने में मददगार साबित हुईं।

बोरोलीन ब्रांड की मार्केट में पॉजिशन

बोरोलीन को भारतीय उपभोक्ता बाजार में पुराने और विश्वसनीय घरेलू क्रीमों में शामिल किया जाता है, जो वर्षों से बदले नहीं। इसका विशिष्ट स्थान एक एंटीसेप्टिक और व्यक्तिगत देखभाल उत्पाद के रूप में है। यह उच्च गुणवत्ता के विदेशी ब्रांडों के सामने एक सशक्त भारतीय विकल्प के रूप में खड़ा है। बोरोलीन ने परंपरागत भारतीय घरेलू चिकित्सा और आधुनिक लाइफस्टाइल के बीच एक पुल का काम किया है।

ब्रांड का एक और विशेष पहलू है इसका 'पीपल्स ब्रांड' कहलाना, जो उपभोक्ताओं में एक गहरे भावनात्मक जुड़ाव को दर्शाता है। आज झंडा स्वदेशी और आत्मनिर्भर भारत के आंदोलन की भावना को बोरोलीन ने पूरे भारत में मजबूती से फैलाया है ।

बोरोलीन ब्रांड का मूल मंत्र

हमारे बारे में - बोरोलीन वर्ल्ड | जीडी फार्मास्यूटिकल्स

बोरोलीन का मूल मंत्र है "विश्वास, गुणवत्ता और स्वदेशी भाव"। यह ब्रांड उपभोक्ताओं को एक भरोसेमंद विकल्प देता है जो भारतीय जरूरतों और सांस्कृतिक संदर्भों को समझता है। इसका फार्मूला सुरक्षित, प्रभावी और किफायती है, जो आम भारतीय परिवारों के लिए उपयुक्त है। साथ ही यह भरोसा भी देता है कि यह विदेशी उत्पादों के मुकाबले कम नहीं। इस ब्रांड के पीछे की सोच है भारत की आर्थिक आत्मनिर्भरता और भारतीय उपभोक्ता की खुशहाली ।

इस कहानी से क्या सीखा जा सकता है

बोरोलीन की कहानी हमें कई महत्वपूर्ण सीख देती है:

  • स्वदेशी उत्पाद और आत्मनिर्भरता की भावना से बड़ी सफलताएं हासिल की जा सकती हैं।
  • गुणवत्ता और विश्वास वाली चीजें ही लंबे समय तक ग्राहकों के दिलों में जगह बना पाती हैं।
  • विपरीत परिस्थितियों और बाजार की चुनौतियों का सामना साहस के साथ किया जा सकता है।
  • पारदर्शिता और उपभोक्ता के साथ ईमानदारी व्यापार की सफलता के मूल मंत्र हैं।

यह कहानी उन सभी उद्यमियों, उपभोक्ताओं और देशभक्तों के लिए प्रेरणा है जो भारतीय बाजार और भारतीय उत्पादों को महत्व देते हैं।

स्रोत

https://boroline.com/
Research Articles on Boroline Innovation and Market Trends
Industry Insights from Leading Ayurvedic Experts

FAQ

बोरोलीन क्रीम किसने बनाई और कब?
बोरोलीन क्रीम को कोलकाता के गौर मोहन दत्ता ने 1929 में बनाई थी। यह स्वदेशी आंदोलन के दौरान विदेशी उत्पादों को टक्कर देने के लिए लॉन्च किया गया था।
बोरोलीन क्रीम में कौन-कौन से प्रमुख चीज होते हैं?
बोरोलीन में बोरिक एसिड (एंटीसेप्टिक), जिंक ऑक्साइड (सनस्क्रीन), लैनोलिन (मॉइश्चराइजर) और अन्य प्राकृतिक तत्त्व होते हैं जो त्वचा को राहत देते हैं।
क्या बोरोलीन आज भी बाजार में उपलब्ध है?
हां, बोरोलीन आज भी बाजार में उपलब्ध है और यह घरेलू उपयोग के लिए एक लोकप्रिय एंटीसेप्टिक क्रीम बनी हुई है।

ये खबर भी पढ़ें...

देसी ब्रांडः जानिए कैसे हिमालया कंपनी ने किराए की जगह और मां के गहने गिरवी रखकर बनाई अपनी पहचान

देसी ब्रांड : साइकिल पर दवा बेचने से शुरू हुई डाबर, कैसे बनी भारत की टॉप-5 FMCG कंपनी, जानें अनसुनी कहानी

देसी ब्रांड : सिर्फ 50 पैसे में शुरू हुई थी Parle-G की कहानी, आज है 8600 करोड़ रुपए का साम्राज्य

देसी ब्रांड : दो दोस्तों ने नौकरी छोड़कर खड़ा किया इमामी, आज साढ़े तीन हजार करोड़ का है कारोबार

देसी ब्रांड : कभी एक कमरे में हुई थी बैद्यनाथ की शुरुआत, आज 500 करोड़ का है कारोबार

'द सूत्र' के महाअभियान Be इंडियन-Buy इंडियन का आगाज, सीएम मोहन यादव ने लॉन्च किया पोस्टर और लोगो

स्वदेशी Be इंडियन-Buy इंडियन देसी ब्रांड बोरोलीन
Advertisment