देसी ब्रांडः जानिए कैसे एक इंडियन फैमिली ने ला ओपाला को बनाया 2600 करोड़ रुपए की कंपनी!

Be इंडियन-Buy इंडियन: ला ओपाला की कहानी इनोवेशन, स्टैंडर्ड और भारतीय पहचान की मिसाल है। इस देसी ब्रांड ने भारतीय बाजार में सफलता पाने के लिए नई तकनीकों अपनाया। यह हाई स्टैंडर्ड को अपनाते हुए Be Indian, Buy Indian के आदर्श को प्रमोट करता है।

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Manish Kumar
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LA OPALA

Photograph: (The Sootr)

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Be इंडियन-Buy इंडियन: ला ओपाला एक देसी ब्रांड है, जिसे सुशील झुनझुनवाला ने 1988 में स्थापित किया था। यह ब्रांड भारत में ओपल ग्लासवेयर की शुरुआत करने वाला पहला था और आज Be इंडियन-Buy इंडियन की भावना को प्रमोट करता है। ला ओपाला ने अपने डिजाइन इनोवेशन और उच्च गुणवत्ता से भारतीय बाजार में अपनी मजबूत पहचान बनाई है। अब यह अंतरराष्ट्रीय बाजारों में भी मशहूर है।

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कैसे हुई ला ओपाला की शुरुआत

साल 1988 - भारत में कांच के बरतन अभी भी साधारण थे। देश की मध्यमवर्गीय रसोई में पोर्सेलिन की जगह स्टील या साधारण ग्लास का बोलबाला था। इन्हीं दिनों झारखंड के मधुपुर से एक सपना आकार ले रहा था - एक ऐसा सपना जिसे देखा था सुशील झुनझुनवाला ने।

अपने परिवार के पारंपरिक रिसायकल ग्लास बिजनेस से अलग होकर वे कुछ नया करना चाहते थे। साल 1985 में दक्षिण कोरिया की यात्रा के दौरान उनकी नज़र पहली बार मिल्की वाइट ग्लास, यानी ओपलवेयर पर पड़ी - ऐसे ग्लास पर जिसमें एक खास सफेदी और स्टाइलिश चमक होती है। भारत में ऐसा कोई प्रोडक्ट नहीं था। यहीं से एक विचार उठा: “क्यों न भारत में भी ऐसा कुछ बनाया जाए?”

उन्होंने Hosan Glass (South Korea) के साथ तकनीकी साझेदारी की और 1988 में भारत का पहला ओपल ग्लास फैक्ट्री लगाने की शुरुआत की। ब्रांड का नाम चुना गया - La Opala, जिसका अर्थ है ‘ओपल का सौंदर्य’। यही कंपनी भारतीय उपभोक्ताओं को अंतरराष्ट्रीय गुणवत्ता के बर्तन उपलब्ध कराने का प्रतीक बनी।

ला ओपाला ब्रांड की शुरुआती संघर्ष की कहानी

जब सुशील झुनझुनवाला ने ओपलवेयर की फैक्ट्री शुरू की, तब भारतीय बाजार तैयार नहीं था। लोग स्टील या सस्ते ग्लास में ही संतोष मानते थे। बड़ी चुनौती यह थी कि लोगों को ओपल ग्लास की गुणवत्ता और उसकी टिकाऊ प्रकृति का भरोसा दिलाया जाए। शुरुआत में बिक्री धीमी थी और लागत ज्यादा। लेकिन यह परिवार धैर्य के साथ खड़ा रहा।

साल 1990 में उनके बेटे अजीत झुनझुनवाला ने कंपनी से जुड़कर नई ऊर्जा भरी। उन्होंने India’s first premium opalware brand “Solitaire” लॉन्च किया। इसने बाजार में ला ओपाला की पहचान मजबूत की। जल्द ही ‘ला ओपाला’ भारत के प्रमुख टेबलवेयर ब्रांड्स में से एक के रूप में प्रसिद्ध होने लगी।

ब्रांड आगे बढ़ी, निवेशक जुड़े और 1994 में कंपनी ने सार्वजनिक मंचों पर कदम रखा। La Opala RG Ltd. बनी भारत की पहली पब्लिक लिमिटेड टेबलवेयर कंपनी।

ला ओपालाः सफलता की कहानी

ला ओपाला की यात्रा संघर्ष से शुरू होकर इनोवेशन और गुणवत्ता पर खत्म नहीं हुई, बल्कि ये ब्रांड हर दशक में अपने आप को और बेहतर बनाती गई। 1996 में, कंपनी ने एक और कदम आगे बढ़ाया - 24% Lead Crystal Glassware तकनीक भारत में लाई और यह ग्लासवेयर खंड में ‘क्रिस्टल क्लास’ की पहचान बनी।

2008 में, उत्तराखंड में एक eco-friendly, state-of-the-art फैक्ट्री की स्थापना की गई, जिसने उत्पादन क्षमता और पर्यावरणीय प्रतिबद्धता दोनों को नवीन उंचाई पर पहुंचाया। सालों के दौरान, ‘ला ओपाला’ का नाम अब केवल डिनर सेट या प्लेट्स का नहीं रहा - यह लाइफस्टाइल और एस्थेटिक्स का प्रतीक बन गया।

ब्रांड ने मनीष मल्होत्रा जैसे डिजाइनरों के साथ प्रीमियम रेंज पेश की - Diva Ivory और Designer Collection जैसी श्रेणियों में। Forbes India की 2017 रिपोर्ट के अनुसार, कंपनी की हिस्सेदारी भारतीय ओपलवेयर बाजार का लगभग 60% थी। 1980 के दशक में जो ब्रांड लगभग अज्ञात थी, वह दो दशक में 2,900 करोड़ रुपए मार्केट कैप वाली इंडस्ट्री लीडर बन गई।

आज बाजार में ला ओपाला की स्थिति

2025 तक, La Opala RG Limited लगभग 2,600 करोड़ रुपए मार्केट कैप वाली कंपनी है। इसके शेयर का दाम 230 रुपए के आसपास fluctuate करता है और साल 2024-25 की रिपोर्ट अनुसार, कंपनी का नेट प्रॉफिट 96.59 करोड़ रुपए रहा।

हाल के वर्षों में बिक्री में कुछ स्थिरता दिखी है, लेकिन कंपनी की वित्तीय स्थिति मजबूत और लगभग कर्ज-मुक्त है। यह निरंतर 3% तक का डिविडेंड यील्ड देती है - जो लंबे अवधि के निवेशकों के लिए भरोसेमंद संकेत है। आज ला ओपाला सिर्फ भारत ही नहीं, बल्कि अमेरिका, ब्रिटेन, फ्रांस, तुर्की, और साउथ ईस्ट एशिया जैसे देशों में भी अपनी पहचान बना चुकी है।

ब्रांड ला ओपाला की मार्केट में पॉजिशन

ला ओपाला आज भारत की सबसे बड़ी ओपलवेयर निर्माता कंपनी है - यह बोरोसिल जैसे ग्लासवेयर ब्रांड्स से प्रतिस्पर्धा करती है लेकिन अपने डिज़ाइन इनोवेशन और प्रीमियम सेगमेंट पोजिशनिंग की वजह से अलग पहचान रखती है। ब्रोकरेज फर्म्स के अनुसार, इसका बाजार हिस्सा 50-60% के बीच है।

La Opala RG Ltd. की तुलना में कुछ प्रतिस्पर्धी जैसे Borosil Ltd., Hawkins और Gorani Industries हैं, लेकिन ला ओपाला खास तौर पर अपने esthetic design, luxury appeal और durable quality के कारण उच्च सेगमेंट में बनी हुई है।

ला ओपाला ब्रांड का मूल मंत्र

ला ओपाला का मूल मंत्र है - Innovation, Quality और Indian Identity।
कंपनी ने हमेशा कहा है कि - “Growth is a way of life.” यही सोच हर फैसले की जड़ में है।
Innovation: कोरियन टेक्नोलॉजी से लेकर डिज़ाइनर कलेक्शन तक, ला ओपाला ने हर कदम पर नए प्रयोग किए।
Quality: हर पीस पर्यावरण-अनुकूल फैक्ट्री में उच्च मानकों पर तैयार होता है।
Indian Identity: भले ही प्रेरणा विदेशी रही हो, लेकिन उत्पादन, डिज़ाइन और आत्मा पूरी तरह भारतीय हैं।
कंपनी तीसरी पीढ़ी में प्रवेश कर चुकी है - अब सुशील झुनझुनवाला के पोते अफ्युबे झुनझुनवाला नई ऊर्जा के साथ “इलेक्ट्रिक मेल्टिंग टेक्नोलॉजी” जैसे आधुनिक सुधारों पर काम कर रहे हैं।

इस कहानी से क्या सीखा जा सकता है

ला ओपाला की कहानी सिर्फ बिजनेस की नहीं, बल्कि दृष्टि, धैर्य और इनोवेशन की कहानी है।
दृष्टि (Vision): एक साधारण ग्लास व्यापारी ने भविष्य देखा - भारत लक्जरी टेबलवेयर अपनाने को तैयार होगा।
धैर्य (Patience): शुरुआती संघर्ष और धीमी बिक्री के बावजूद कंपनी रुकी नहीं।
इनोवेशन (Innovation): तकनीक, डिजाइन और मार्केटिंग में प्रयोग करते हुए ब्रांड ने अपने लिए जगह बनाई।
यह कहानी बताती है कि अगर मान्यता नहीं, गुणवत्ता और लगातार सीखने पर ध्यान दो, तो ब्रांड को सफलता से कोई नहीं रोक सकता।

source: 

https://www.laopala.in/our-story
Research Articles on LaOpala Innovation and Market Trends
Industry Insights from Leading Crockery products Brands

FAQ

ला ओपाला किसके द्वारा स्थापित की गई थी?
ला ओपाला की स्थापना सुशील झुनझुनवाला ने वर्ष 1988 में की थी। उन्होंने दक्षिण कोरिया की तकनीक अपनाकर भारत में पहली बार ओपल ग्लासवेयर तैयार किया।
क्या ला ओपाला एक भारतीय ब्रांड है?
हां, ला ओपाला पूरी तरह भारतीय कंपनी है। इसका मुख्यालय कोलकाता में है और निर्माण इकाई झारखंड तथा उत्तराखंड में स्थित हैं।
आज ला ओपाला की अंतरराष्ट्रीय उपस्थिति कहां है?
ला ओपाला के उत्पाद आज अमेरिका, ब्रिटेन, मध्यपूर्व, फ्रांस और साउथ ईस्ट एशिया के बाज़ारों में निर्यात होते हैं।

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