देसी ब्रांडः जानिए कैसे एक छोटे स्टोर से शुरू होकर 275 करोड़ का बिजनेस करने लगा कॉफी कैफे डे!

Be इंडियन-Buy इंडियन: Café Coffee Day की कहानी सिर्फ कॉफी नहीं, बल्कि भारतीय उद्यमिता, संघर्ष और पुनर्जन्म की कहानी है। इस ब्रांड ने साबित किया कि एक कप कॉफी सिर्फ बेवरेज नहीं - एक प्रेरणा भी हो सकती है।

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Manish Kumar
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Photograph: (The Sootr)

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Be इंडियन-Buy इंडियन: देसी ब्रांड कैफे कॉफी डे (CCD) की कहानी एक छोटे से कॉफी स्टोर से शुरू होकर भारत में कॉफी संस्कृति को एक पहचान देने तक की यात्रा है। वीजी सिद्धार्थ के विजन से शुरू हुआ यह ब्रांड आज युवाओं का फेवरेट अड्डा बन चुका है। आगे आपको पता चलेगी कैफे कॉफी डे (CCD) के संघर्ष, सफलता और पुनर्जन्म की रोचक कहानी... 

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कैफे कॉफी डे: शुरुआती संघर्ष की कहानी

साल 1993, कर्नाटक के चिकमंगलूर में पैदा हुए वी. जी. सिद्धार्थ ने कॉफी ट्रेडिंग कंपनी Amalgamated Bean Company (ABC) की नींव रखी। कुछ ही सालों में उन्होंने महसूस किया कि भारत का चाय-पीने वाला समाज बदलाव की ओर बढ़ रहा है। यह बदलाव एक कप कॉफी से शुरू हो सकता है।

11 जुलाई 1996, बेंगलुरु की ब्रिगेड रोड पर खुला पहला कैफे कॉफी डे (CCD) स्टोर। 1.5 करोड़ रुपए का निवेश, एक युवा टीम और एक सपना - भारत में कॉफी संस्कृति को स्थापित करने का। सिद्धार्थ का विजन था, "A lot can happen over coffee", यानी एक कॉफी के साथ बहुत कुछ संभव है। यही नारा बन गया CCD की पहचान का प्रतीक।

उनकी सोच साफ थी - कॉफी सिर्फ पेय नहीं, बातचीत का जरिया है। वे चाहते थे कि CCD एक ऐसा स्थान बने जहां लोग बातें करें, सपने देखें और रिश्ते बनाएं।

कैफे कॉफी डे का ऐसा रहा संघर्ष

भारत में 90 के दशक की पहचान ‘चाय संस्कृति’ से थी। ऐसे में कॉफी को जीवनशैली का हिस्सा बनाना चुनौती से कम नहीं था। उस समय अंतरराष्ट्रीय ब्रांड जैसे Barista और Starbucks भी भारत की बाजार में तैयारी कर रहे थे।

सिद्धार्थ के सामने दो बड़ी चुनौतियां थीं। पहली- लोगों की आदतें बदलना, यानी कॉफी को "लक्जरी" नहीं, बल्कि रोजमर्रा का पेय बनाना। दूसरी, स्थानीयता और स्लोगन से जुड़ना। उन्होंने कॉफी को युवाओं की पहचान से जोड़ा। कॉलेज, दोस्ती, प्रेम या बिजनेस मीटिंग, सब कुछ कॉफी के कप से जुड़ गया।

CCD ने अपनी कैफे फार्म से कप तक (Farm to Cup) की कोशिश से अलग पहचान बनाई। वे अपनी ही 20,000 एकड़ की जमीन पर कॉफी उगाते थे। यह उनकी vertically integrated business model की ताकत थी। खेत से लेकर फर्नीचर तक सब कुछ अपना।

CCD बना भारत का Café Brand Icon

सिद्धार्थ की मेहनत रंग लाई। 2000 के दशक तक CCD के आउटलेट्स की संख्या 1,000 से अधिक हो गई। 2011 तक यह देश का सबसे बड़ा कॉफीहाउस बन चुका था। यह सिर्फ बिजनेस नहीं था- यह India’s Café Revolution थी।

CCD ने कॉफी से आगे बढ़कर भावना बेची। उनकी कैफे जगहें युवाओं के मिलने-जुलने का केंद्र बन गईं। "A lot can happen over coffee" सिर्फ एक स्लोगन नहीं, बल्कि एक भावनात्मक अनुभव था।

CCD की सफलता के कुछ प्रमुख मंत्र थे:

* सुलभता (Accessibility): बड़े शहरों से छोटे कस्बों तक पहुंच।
* सस्ता अनुभव (Affordable Luxury): प्रीमियम क्वालिटी पर दोस्ताना दाम।
* नवीनता (Innovation): कॉफी के साथ-संबंधित नए प्रयोग - मोका, कैप्पुचीनो, कोल्ड कॉफी और स्नैक्स।
* स्थानीयता (Indianness): भारत के स्वाद और संस्कृति को हर कप में मिलाना।

शुरुआती सफलता के बाद CCD ने Austria, Malaysia, Nepal, Egypt जैसे देशों में भी कदम बढ़ाए। एक समय यह छह देशों में 1.6 अरब कप कॉफी सालाना बेच रहा था।

कैफे कॉफी डे का अंधेरा दौर, जब सपना डगमगाया

हर ऊंचाई के बाद एक मोड़ आता है। जुलाई 2019 में, वीजी सिद्धार्थ का अचानक लापता होना और फिर उनकी मौत ने पूरे भारत को हिला दिया। उनका अंतिम पत्र लोगों के दिलों में गूंज गया- "I have failed… I am sorry."

उनके जाने के बाद CCD की आर्थिक स्थिति बिखरने लगी। ऋण, गलत निवेश, और तेज प्रतिस्पर्धा ने कंपनी को संकट में डाल दिया। इंटरनेशनल ब्रांच बंद हुईं, और कई आउटलेट्स को बंद करना पड़ा।

फिर भी, CCD की कहानी यहां खत्म नहीं हुई। उनकी पत्नी मालविका हेगड़े ने कंपनी की बागडोर संभाली। उन्होंने वादा किया कि "हम CCD को फिर मुस्कुराएंगे।"

कैफे कॉफी डे ने देखा नया सवेरा

2023 तक CCD धीरे-धीरे घाटे से निकलने लगी। 2025 की पहली तिमाही के अनुसार, कंपनी का कुल राजस्व 275 करोड़ रुपए तक पहुंच गया। Profit After Tax 23 करोड़ रुपए दर्ज किया गया। यह एक remarkable turnaround था।

वर्तमान में CCD के पास 572 आउटलेट्स और 36,000 वेंडिंग मशीनें हैं, जो भारत के 165 शहरों में सक्रिय हैं। एक समय जो ब्रांड गिरने के कगार पर था, अब फिर से अपनी जमीन पकड़ रहा है।

आज का CCD युवा भारत के लिए nostalgia और revival दोनों का प्रतीक है। हर कप कॉफी में अब सिर्फ स्वाद नहीं, बल्कि संघर्ष की कहानी भी घुली हुई है।

कैफे कॉफी डे ब्रांड की मार्केट पॉजीशन

CCD भले अब Starbucks या Third Wave जैसी प्रीमियम कैफे चेन से प्रतिस्पर्धा कर रहा हो। लेकिन, उसकी पहचान "भारतीय ब्रांड" के रूप में अब भी मजबूत है। CCD का लक्ष्य अब "affordable café culture" को बढ़ावा देना है। बड़े कॉफी हाउस का दिल, लेकिन आम आदमी की पहुंच में।

ब्रांड अब 'Reconnection Strategy' पर काम कर रहा है। यानी पुराने ग्राहकों को नए अनुभव से जोड़ना। उनकी अगली रे-ब्रांडिंग फिलॉसफी है - "Brewing new beginnings."

कैफे कॉफी डे ब्रांड का मूल मंत्र

भारतीय स्वाद, वैश्विक अंदाज।
सकारात्मक अनुभव: हर कप के साथ एक भावना।
सस्टेनेबिलिटी पर फोकस: अपने प्लांटेशन, फेयर ट्रेड और हरित दृष्टिकोण।
युवा और बातचीत: "A lot can happen over coffee" - यह सिर्फ स्लोगन नहीं, भारतीय युवाओं की भाषा है।

कैफे कॉफी डे से ये मिलती है सीख

CCD की कहानी यह सिखाती है कि, 
हर सपना एक रिस्क के साथ आता है। असफलता भी सफर का हिस्सा है।
ब्रांड सिर्फ उत्पाद नहीं, भावना होता है। जब ब्रांड रिश्ते बनाते हैं, तो वे लंबे चलते हैं।
संकट अंत नहीं, नया आरंभ होता है। CCD की वापसी इसका प्रमाण है।
नेतृत्व कठिन समय में झुकता नहीं, संभलता है। मालविका हेगड़े की दृढ़ता इस बात की मिसाल है।

source: 

https://www.coffeeday.com/aboutus.html
Research Articles on CCD Innovation and Market Trends
Industry Insights from Leading Brewing products Brands

FAQ

कैफे कॉफी डे की शुरुआत कब हुई थी?
कैफे कॉफी डे की शुरुआत 11 जुलाई, 1996 को बेंगलुरु के ब्रिगेड रोड से हुई थी। इसे वीजी सिद्धार्थ ने स्थापित किया।
वर्तमान में भारत में कैफे कॉफी डे के कितने आउटलेट्स हैं?
2025 तक CCD के करीब 572 आउटलेट्स और लगभग 36,000 कॉफी वेंडिंग मशीनें भारत के विभिन्न शहरों में सक्रिय हैं।
क्या कैफे कॉफी डे अभी भी लाभ में है?
हां, 2025 की पहली तिमाही रिपोर्ट के अनुसार कंपनी ने लगभग 23 करोड़ रुपए का नेट प्रॉफिट कमाया है, जो उसके रिवाइव होने का संकेत है।

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