देसी ब्रांडः जानिए हीरो की साइकिल पार्ट्स के कारोबार से 1 लाख करोड़ की कंपनी बनने तक का सफर

Be इंडियन-Buy इंडियन के तहत स्वदेशी ब्रांड हीरो भारतीयों के गर्व का प्रतीक बना। हीरो की कहानी भारत के विभाजन से शुरू होकर एक देसी ब्रांड के रूप में विश्व की सबसे बड़ी टू-व्हीलर निर्माता कंपनी बनने तक का सफर है।

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Manish Kumar
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Photograph: (The Sootr)

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Be इंडियन-Buy इंडियन: स्वदेशी ब्रांड हीरो की कहानी भारत की संकल्प, मेहनत और विश्वास की अनूठी मिसाल है। 1947 के विभाजन के बाद चार भाइयों ने साइकिल पार्ट्स के कारोबार से शुरुआत की और आज हीरो विश्व की सबसे बड़ी टू-व्हीलर निर्माता कंपनी बन चुकी है। यह ब्रांड न केवल भारतीय सड़कों पर एक सशक्त पहचान बना चुका है, बल्कि अब वैश्विक स्तर पर भी अपनी छाप छोड़ रहा है। कठिन संघर्षों से गुजरते हुए, यह ब्रांड न केवल भारतीय बाजार में शीर्ष पर पहुंचा, बल्कि अब भविष्य में इलेक्ट्रिक टू-व्हीलर्स की दिशा में भी कदम बढ़ा रहा है। आइए जानते हैं देसी ब्रांड हीरो के बारे में सबकुछ... 

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हीरो ब्रांड की सफलता की कहानी

भारतीय ब्रांड हीरो की कहानी संकल्प, मेहनत, और दृढ़ विश्वास की मिसाल है। यह एक ऐसा सफर है, जो 1947 के भारत के विभाजन के कष्टपूर्ण दौर से शुरू हुआ और आज विश्व की सबसे बड़ी टू-व्हीलर निर्माता कंपनी के रूप में अपनी पहचान बना चुका है। इस कहानी में हम जानेंगे कैसे चार भाइयों ने छोटे से साइकिल पार्ट्स के कारोबार से शुरूआत की, कठिनाइयों से लड़ते हुए किस तरह यह कंपनी सफलता के शिखर पर पहुंची।

हीरो ब्रांड की शुरुआत कैसे हुई

1947 में भारत का विभाजन हुआ। अमृतसर में साइकिल के पार्ट्स बनाने वाले चार भाई - बृजमोहन लाल मुंजाल, दयानंद, सत्यानंद, और ओमप्रकाश - को मजबूरन अपना व्यवसाय लुधियाना शिफ्ट करना पड़ा। इसी दौरान उनके मुस्लिम मित्र करीमदीन ने अपने ब्रांड का नाम 'हीरो' इन्हें सौंप दिया। 1956 में बैंक लोन से 50,000 रुपए लेकर उन्होंने हीरो साइकिल्स की स्थापना की। शुरुआत सिर्फ साइकिल पार्ट्स की थी लेकिन उनका सपना पूरी साइकिल बनाने का था।

हीरो ब्रांड का शुरुआती संघर्ष

1980 का भारत। आर्थिक सुधार अभी दूर थे। मोटरसाइकिलें लग्जरी थीं - महंगी, विदेशी, और सर्विस का इंतजार महीनों का। हीरो साइकिल्स सफल थी, लेकिन मुंजाल परिवार जानता था कि ग्रोथ के लिए कुछ बड़ा चाहिए। 1984 में आया वह टर्निंग पॉइंट। जापान की दिग्गज होंडा मोटर के साथ जॉइंट वेंचर। हीरो होंडा मोटर्स लिमिटेड का जन्म हुआ। होंडा ने टेक्नोलॉजी दी, हीरो ने मार्केट नॉलेज। पहली मोटरसाइकिल? CD100। लेकिन शुरुआत आसान न थी।

सोचिए, एक नई कंपनी, नया प्रोडक्ट, और पुरानी सोच वाला बाजार। CD100 लॉन्च हुई, लेकिन कीमत ज्यादा थी - 20,000 रुपए! लोग साइकिल से मोटरसाइकिल पर कूदने को तैयार न थे। फैक्ट्री में प्रोडक्शन लाइन सेटअप मुश्किल था; पार्ट्स आयात पर निर्भरता ने देरी बढ़ाई। मुंजाल साहब रात-दिन फैक्ट्री में लगे रहते। एक बार तो फंडिंग क्राइसिस आ गया - बैंक लोन रुक गए। परिवार ने फिर से निजी संपत्ति दांव पर लगाई। और तो और, होंडा के जापानी इंजीनियर्स भारतीय तरीकों से तंग आ गए। सांस्कृतिक क्लैश, भाषा की दीवारें। लेकिन मुंजाल साहब ने हार न मानी। उन्होंने कहा, "संघर्ष ही सफलता का ईंधन है।" वे खुद जापान गए, बातें कीं, समझौते किए। 1985 तक, CD100 ने 1 लाख यूनिट्स बेच डाले। लेकिन असली टेस्ट अभी बाकी था।

1990 के दशक में, इकोनॉमिक लिबरलाइजेशन आया। कंपटीशन बढ़ा - बजाज, यामाहा ने एंट्री मारी। हीरो होंडा को क्वालिटी कंट्रोल की समस्या हुई। एक बैच में इंजन फेलियर ने ब्रांड इमेज को ठेस पहुंचाई। मीडिया ने लिखा, "क्या हीरो का सपना टूटेगा?" मुनजाल साहब ने रिस्पॉन्स लिया - हर डीलर को ट्रेनिंग, कस्टमर सर्विस सेंटर्स खोले। लेकिन सबसे बड़ा संघर्ष आया 2000 के आसपास। होंडा के साथ पार्टनरशिप में तनाव। होंडा ग्लोबल कंट्रोल चाहती थी, हीरो इंडियन ऑटोनॉमी। नेगोशिएशंस चले सालों। अंत में, 2010 में ब्रेकअप। हीरो को होंडा की टेक्नोलॉजी से हाथ धोना पड़ा। शेयर प्राइस गिरा, सेल्स ड्रॉप हुई। बाजार ने कहा, "हीरो खत्म!" लेकिन यह संघर्ष हीरो को मजबूत बनाएगा, यह कोई न जानता था।

सफलता की चमक: स्प्लेंडर का जादू और वैश्विक उड़ान

2011, हीरो मोटोकॉर्प का नया अध्याय। ब्रेकअप के बाद, कंपनी ने खुद का इंजन डेवलप किया। पहला प्रोडक्ट? हीरो स्प्लेंडर। सोचिए, एक साधारण दिखने वाली बाइक, लेकिन 100cc इंजन, 80 kmpl माइलेज, और कीमत सिर्फ 45,000 रुपए। लॉन्च पर, डीलरशिप्स के बाहर लाइनें लग गईं। क्यों? क्योंकि यह "भारतीयों की बाइक" थी - मजबूत, किफायती, और कभी न रुकने वाली। स्प्लेंडर ने रिकॉर्ड तोड़े - आज तक 2 करोड़ से ज्यादा यूनिट्स बिकीं।

सफलता का राज? इनोवेशन और कस्टमर फोकस। हीरो ने प्रीमियम सेगमेंट में एंटर किया - Xtreme, Glamour। एक्सपोर्ट शुरू - अफ्रीका, लैटिन अमेरिका। 2014 तक, वे दुनिया की नंबर 1 टू-व्हीलर मैन्युफैक्चरर बन चुके। EV रेस में भी कूदे - Vida स्कूटर लॉन्च, Ather Energy में इन्वेस्टमेंट। 2020 की पैंडेमिक में, जब बाजार गिरा, हीरो ने डिजिटल सेल्स बढ़ाए, रूरल मार्केट पर फोकस किया। नतीजा? 2021 में रिकॉर्ड सेल्स। मुनजाल साहब का विजन - "जॉय ऑफ गिविंग डिलाइटफुल सरप्राइजेज" - हर बाइक में झलकता। आज, हीरो के 124 मिलियन से ज्यादा राइडर्स हैं, जो हर रोज उनकी "धड़कन" महसूस करते हैं।

आज बाजार में हीरो की स्थिति

2025 का भारत। EV क्रांति, स्मार्ट मोबिलिटी। हीरो मोटोकॉर्प अभी भी राजा है। फरवरी 2025 में, उन्होंने 3.85 लाख यूनिट्स बेचीं, 28.52% मार्केट शेयर के साथ। कुल मिलाकर, FY25 में 5.9 मिलियन यूनिट्स - 5% ग्रोथ। लेकिन चैलेंज हैं। जुलाई 2025 में, होंडा ने रिटेल सेल्स में ओवरटेक किया - 3.45 लाख vs हीरो के 3.39 लाख। फिर भी, हीरो लीडर है। एक्सपोर्ट 40% बढ़ाने का टारगेट, ग्लोबल रेवेन्यू 10%। EV में Vida ने 17% ड्रॉप के बावजूद पोजीशन मजबूत की। प्रीमियम बाइक्स जैसे Mavrick ने युवाओं को लुभाया। कुल मिलाकर, हीरो की पोजीशन मजबूत - 30% मार्केट शेयर, 6,000+ टचपॉइंट्स, और सस्टेनेबल फोकस।

ब्रांड हीरो की मार्केट में पॉजिशन 

मार्केट में हीरो "मास मार्केट" का बादशाह है। बजाज (20%) और TVS (18%) पीछे हैं। प्रीमियम में Royal Enfield चैलेंज, लेकिन हीरो की स्ट्रेंथ रूरल इंडिया - 60% सेल्स वहां। EV में Ola, Ather से मुकाबला, लेकिन हीरो का एक्सपीरियंस एज है। ग्लोबल? 40+ देशों में मौजूद। पोजीशन? "दुनिया की नंबर 1, भारत की धड़कन।"

हीरो ब्रांड का मूल मंत्र

हीरो का मूल मंत्र उनके कोर वैल्यूज में छिपा है: रिस्पेक्ट (सम्मान), पैशन (जुनून), इंटेग्रिटी (ईमानदारी), करेज (साहस), और बीइंग रिस्पॉन्सिबल (जिम्मेदारी)। टैगलाइन "फिल जॉय इन एवरी हार्ट" हर प्रोडक्ट में। मुनजाल साहब कहते थे, "व्यवसाय सिर्फ पैसा नहीं, खुशी बांटना है।" यही मंत्र उन्हें 40 सालों में 124 मिलियन कस्टमर्स दे गया।

इस कहानी से क्या सीखा जा सकता है

हीरो की कहानी सिखाती है - संघर्ष अंत नहीं, शुरुआत है। 
सीख 1: विजन हो तो छोटी शुरुआत बड़ी हो जाती। साइकिल से मोटरसाइकिल तक। 
सीख 2: कस्टमर पहले - फीडबैक सुनो, सरप्राइज दो। 
सीख 3: इनोवेशन कभी न रुके; होंडा ब्रेकअप के बाद खुद का इंजन। 
सीख 4: वैल्यूज पर टिको - रिस्पेक्ट और इंटेग्रिटी लंबे सफर की कुंजी। 
आखिर, सीख 5: हार मत मानो; मुनजाल साहब की तरह, हर गिरावट से उड़ान लो। यह कहानी सिर्फ बिजनेस की नहीं, जिंदगी की है - जहां धड़कन कभी न रुके।

source:

https://www.heromotocorp.com
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FAQ

हीरो मोटोकॉर्प कब शुरू हुई थी?
हीरो मोटोकॉर्प की शुरुआत 1956 में हीरो साइकिल्स के रूप में हुई, लेकिन मोटरसाइकिल बिजनेस 1984 में होंडा के साथ जॉइंट वेंचर से शुरू हुआ। 2011 में यह Hero MotoCorp बनी।
हीरो मोटोकॉर्प का मार्केट शेयर 2025 में क्या है?
2025 में हीरो का इंडियन टू-व्हीलर मार्केट में लगभग 28-30% शेयर है, हालांकि जुलाई में होंडा ने रिटेल सेल्स में ओवरटेक किया।
हीरो मोटोकॉर्प के फाउंडर कौन हैं?
बृजमोहन लाल मुनजाल हीरो के फाउंडर हैं, जिन्होंने 1956 में साइकिल बिजनेस शुरू किया और बाद में मोटरसाइकिल एम्पायर बनाया।

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