देसी ब्रांडः कैसे 4 दोस्तों ने एक गैराज से शुरू की भारत की सबसे बड़ी पेंट कंपनी एशियन पेंट्स

1942 में 4 दोस्तों ने एक गैराज से एशियन पेंट्स की शुरुआत की। विदेशी कंपनियों के दबदबे के बावजूद, उन्होंने गुणवत्ता और ग्रामीण बाजार पर ध्यान दिया। 'गट्टू' मैस्कॉट और तकनीक से यह आज भारत की सबसे बड़ी पेंट कंपनी है, जिसका बाजार में 50% हिस्सा है।

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Manish Kumar
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Photograph: (The Sootr)

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Be इंडियन-Buy इंडियन: एशियन पेंट्स की सफलता की कहानी एक प्रेरणादायक उद्यमिता कथा है जो 1942 में अंग्रेज भारत के कठिन समय में चार दोस्तों की मेहनत, सोच और देशभक्ति से शुरू हुई। यह कहानी केवल एक कंपनी की नहीं, बल्कि एक ब्रांड की जन्मकथा है जिसने भारत के लोगों के घरों को रंगों से सजाया और विश्व पटल पर भारत को पेंट उद्योग में टॉप पॉजिशन दिलाई। 

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एशियन पेंट्स की शुरुआत कैसे हुई

1942 का वर्ष भारत के लिए संघर्ष का समय था। द्वितीय विश्व युद्ध और स्वतंत्रता संग्राम के बीच अंग्रेजों ने भारत में पेंट का आयात बंद कर दिया था, जिससे देश में पेंट की भारी कमी हो गई थी। उस वक्त भारत में पेंट की मांग थी, लेकिन विकल्प बहुत कम थे। इसी समय मुंबई में चार दोस्त चंपकलाल चोकसी, चिमनलाल चोकसी, सूर्यकांत दानी और अरविंद वकील ने मिलकर एक नया बिजनेस शुरू करने का साहस दिखाया।

उन्होंने एक छोटे से गैराज में बैठकर एशियन पेंट्स एंड ऑयल प्राइवेट लिमिटेड की स्थापना की। इनके पास बड़े कारखाने, आधुनिक मशीनें या भारी पूंजी नहीं थी, पर उनकी सोच बड़ी थी। शुरुआत में उन्होंने कुछ सीमित रंगों (सफेद, काला, लाल, पीला और हरा) के पेंट बनाए और उन्हें प्लास्टिक पाउच में पैक करके घर-घर जाकर बेचते थे। यह मेहनत बहुत रंग लाई और लोगों को देशी उत्पाद बहुत पसंद आने लगा।

एशियन पेंट्स : शुरुआती संघर्ष की कहानी

बाजार में अंग्रेजों और विदेशी कंपनियों का दबदबा था, और कई बड़े वितरक पहले से स्थापित थे। मुंबई जैसे बड़े शहरों में पैसे और संपर्कों के अभाव के कारण एशियन पेंट्स को शुरुआत में परेशानी हुई। इसलिए उन्होंने ग्रामीण बाजार को मुख्य केंद्र बनाया, जहां कम प्रतिस्पर्धा थी और बड़े शहरों वाले वितरक ग्रामीण क्षेत्र में विस्तार चाहते थे। कुछ समय बाद जब ग्रामीण इलाके में मजबूत पकड़ बनाई, तब बड़े शहरों के वितरक खुद एशियन पेंट्स के उत्पाद लेने लगे। उस दौरान कंपनी का प्रॉफिट मार्जिन केवल 2% था, लेकिन वे स्थिरता और गुणवत्ता से जुड़े रहे। विरोधों और बड़े खिलाड़ियों की चुनौती के बावजूद, कंपनी ने कभी हार नहीं मानी।

एशियन पेंट्स : सफलता की कहानी

1952 तक कंपनी ने 23 करोड़ रुपए का वार्षिक कारोबार किया, जो उस समय बड़ी रकम थी। 1954 में, एशियन पेंट्स ने मशहूर कार्टूनिस्ट आर. के. लक्ष्मण से "गट्टू" नामक मैस्कॉट का आविष्कार कराया, जो हाथ में पेंटब्रश लिए शरारती बच्चे का रूप था। यह मैस्कॉट भारतीय परिवारों में बेहद लोकप्रिय हुआ और ब्रांड की एक अलग पहचान बनी। 1960 के दशक में भांडुप, मुंबई में पहला कारखाना स्थापित किया गया और 1967 तक एशियन पेंट्स भारत की सबसे बड़ी पेंट कंपनी बन गई। कंपनी ने तकनीक में निवेश किया जैसे 1970 में भारत में पहला मेनफ्रेम कंप्यूटर लेकर डेटा एनालिटिक्स का इस्तेमाल किया। 1982 में आईपीओ के जरिए आय बढ़ाकर उत्पादन क्षमता और उत्पाद रेंज का विस्तार किया। आज एशियन पेंट्स हजारों रंग, टेक्सचर और थेम में उत्पाद बनाता है।

आज बाजार में एशियन पेंट्स की स्थिति

आज एशियन पेंट्स भारत की सबसे बड़ी और एशिया की तीसरी सबसे बड़ी पेंट कंपनी है। इसका बाजार में लगभग 50% से अधिक हिस्सा है, जो इसके निकटतम प्रतिस्पर्धियों की तुलना में बहुत बड़ा है। यह कंपनी सजावटी रंगों, कोटिंग्स, फर्नीचर पेंट, औद्योगिक पेंट और बाथरूम फिटिंग जैसे कई क्षेत्रों में फैली है। बाजार का आकार लगभग 60,000 करोड़ रुपए है, जिसमें संगठित क्षेत्र की हिस्सेदारी 70% है और एशियन पेंट्स इस हिस्से का नेतृत्व करता है।

एशियन पेंट्स : ब्रांड की मार्केट में पॉजिशन

एशियन पेंट्स ने बाजार में सबसे विश्वसनीय, नवोन्मेषी और उपभोक्ता-केंद्रित ब्रांड के रूप में पहचान बनाई है। ग्रामीण और शहरी उपभोक्ताओं तक समान पहुंच बनाकर, यहां तक कि डिजिटल कैटलॉग, ऑन-डिमांड सर्विस, और रंगों के विकल्पों के लिए यूजर-फ्रेंडली मोबाइल ऐप तक विशेष सुविधाएं दी हैं। कंपनी ने उपभोक्ताओं के ट्रेंड और व्यवहार का विश्लेषण कर सही समय पर उत्पाद और सेवा उपलब्ध कराई। विज्ञापन और ब्रांडिंग में "गट्टू" जैसी पहचान और लगातार मार्केटिंग अभियानों ने इसे दैनिक जीवन का हिस्सा बना दिया है।

एशियन पेंट्स का मूल मंत्र

एशियन पेंट्स का मूल मंत्र रहा है "कस्टमर सेंट्रिक इनोवेशन"। उन्होंने शुरुआत से ही उपभोक्ता की जरूरतों और पसंद को ध्यान में रखा, गुणवत्ता पर कोई समझौता नहीं किया और हर समय ताजगी, विविधता और सेवा पर फोकस किया। टेक्नोलॉजी को अपनाकर दक्षता और वितरण को बेहतर बनाया। साथ ही ब्रांडिंग और मार्केटिंग में निरंतर पुनर्निर्माण कर, तरह-तरह के रंगों और उत्पादों से ग्राहकों को आकर्षित करते रहे।

इस कहानी से क्या सीखा जा सकता है

एशियन पेंट्स की कहानी से कई महत्वपूर्ण सबक मिलते हैं:

- चुनौतियों में अवसर तलाशें: मुश्किल वक्त में भी समाधान और नवाचार की संभावना रहती है।
- टीम वर्क और दृढ़ संकल्प जरूरी है: चार दोस्तों ने मिलकर कठिनाइयों को पार किया।
- ग्राहकों को समझना और उनकी जरूरतों के अनुसार उत्पाद देना सफलता का सूत्र है।
- सही समय पर तकनीक और मार्केटिंग में निवेश करना प्रतिस्पर्धा में बढ़त देता है।
- स्थिरता और निरंतर सुधार से ब्रांड की अमिट पहचान बनती है। 

निष्कर्षः

एशियन पेंट्स की कहानी न केवल एक ब्रांड की सफलता है, बल्कि भारत के उद्योग जगत में स्वदेशी सोच और उद्यमिता का पर्याय भी बन चुकी है। यह कहानी यह साबित करती है कि सही सोच, कड़ी मेहनत और इनोवेशन से हर चुनौती पार की जा सकती है।

स्रोत: Asian Paints Company Archives, Asian paints Innovation Research, Industry Insights

FAQ

एशियन पेंट्स की स्थापना कब और कहां हुई थी?
एशियन पेंट्स की स्थापना 1942 में मुंबई के एक छोटे गैराज में चार दोस्तों ने की थी।
एशियन पेंट्स का सबसे प्रसिद्ध मैस्कॉट कौन है?
कंपनी का प्रसिद्ध मैस्कॉट "गट्टू" है, जो हाथ में पेंटब्रश पकड़े शरारती बच्चे का कार्टून है।
एशियन पेंट्स का वर्तमान बाजार हिस्सा कितना है?
एशियन पेंट्स का भारत के पेंट बाजार में लगभग 50% से अधिक हिस्सा है।

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