मरीजों या उनके रिश्तेदारों ने अपमानजनक और हिंसक व्यवहार किया तो अब इलाज करने से मना कर सकेंगे डॉक्टर 

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Pratibha Rana
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मरीजों या उनके रिश्तेदारों ने अपमानजनक और हिंसक व्यवहार किया तो अब इलाज करने से मना कर सकेंगे डॉक्टर 

New Delhi. डॉक्टर्स के खिलाफ हिंसा की बढ़ती घटनाओं को रोकने के लिए राष्ट्रीय चिकित्सा आयोग (एनएमसी) ने अहम कदम उठाया है। मरीजों या उनके रिश्तेदारों के अपमानजनक और हिंसक व्यवहार करने पर डॉक्टर्स अब इलाज करने से मना कर सकेंगे। हालांकि, डॉक्टर्स को यह सुनिश्चित करना होगा कि मरीज बिना इलाज के नहीं रह जाए। ऐसे मरीजों को वे इलाज के लिए दूसरी जगह रेफर कर सकते हैं। एनएमसी के व्यावसायिक आचरण नियमों के तहत डॉक्टर अब किसी भी दवा ब्रांड, दवा या उपकरण का विज्ञापन नहीं कर सकेंगे। 



इमरजेंसी  को 'जीवन और अंग बचाने की प्रक्रिया' के रूप में परिभाषित किया 



राष्ट्रीय चिकित्सा आयोग (एनएमसी) ने डॉक्टरों को मरीजों के हिंसक व्यवहार करने पर इलाज से मना करने की अनुमति मिली है। इसके साथ ही पहली बार इमरजेंसी को 'जीवन और अंग बचाने की प्रक्रिया' के रूप में परिभाषित किया गया है। पहले इमरजेंसी शब्द को स्पष्ट रूप से परिभाषित नहीं किया गया था। 



उपहार को लेकर क्या कहते हैं नियम?



एनएमसी ने 2 अगस्त को गजट अधिसूचना में नियमों को जारी किया है। नियमों के अनुसार, आरएमपी (रजिस्टर्ड मेडिकल प्रैक्टिशनर) और उनके परिवारों को किसी भी बहाने से फार्मा कंपनियों या उनके प्रतिनिधियों, वाणिज्यिक स्वास्थ्य देखभाल प्रतिष्ठानों, मेडिकल उपकरण कंपनियों या कॉर्पोरेट अस्पतालों से कोई उपहार, यात्रा सुविधाएं, कैश या मौद्रिक अनुदान, परामर्श शुल्क या मानदेय नहीं लेना चाहिए। हालांकि इसमें सैलेरी और वैसे लाभ शामिल नहीं हैं, जो आरएमपी को इन संगठनों के कर्मचारियों के रूप में मिल सकते हैं।



सरकारी डॉक्टरों पर लागू नहीं होंगे ‘मना’ करने के नियम



नियमों के अनुसार, आरएमपी को कार्यशाला, संगोष्ठी, सम्मेलन जैसी किसी भी गतिविधि में शामिल नहीं कर सकेंगे, जिसमें फॉर्मा कंपनियां प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष तौर पर शामिल हों। नियमों में कहा गया है कि यदि शुल्क का भुगतान नहीं किया जाता है तो रजिस्टर्ड मेडिकल प्रैक्टिशनर किसी भी मरीज का इलाज करने या उसका इलाज जारी रखने से मना कर सकता है। यह बात सरकारी सेवा या आपातकालीन स्थिति वाले डॉक्टरों पर लागू नहीं होती है, लेकिन डॉक्टर को यह सुनिश्चित करना होगा कि मरीज को बिना उपचार न छोड़ दिया जाए। ऐसे मरीजों को आगे के इलाज के लिए दूसरी जगह रेफर किया जाना चाहिए। 



नियमों ये भी दिए निर्देश




  • किसी भी मरीज को सर्जरी या इलाज की अनुमानित मूल्य के बारे में पहले से बताना चाहिए, ताकि वह इस बारे में फैसला कर सके। 


  • मरीज की जांच या इलाज से पहले मरीज को परामर्श शुल्क की जानकारी भी देना जरूरी। 

  • मरीज का इलाज करने वाला आरएमपी अपने कार्यों के लिए पूरी तरह से जवाबदेह होगा और उचित शुल्क का हकदार भी होगा। 

  • शराब या अन्य नशीले पदार्थों का उपयोग (जिससे मरीज का इलाज प्रभावित हो सकता है) को कदाचार माना जाएगा। मामले में कार्रवाई भी की जा सकती है। 

  • किसी अस्पताल में मरीज के मेडिकल रिकॉर्ड के लिए जिम्मेदार आरएमपी को मरीजों या अधिकृत अटेंडर की मांग पर मेडिकल रिकॉर्ड देने के अनुरोध को स्वीकारना होगा। 

  • मरीज के मेडिकल दस्तावेजों को 72 दिनों के मौजूदा प्रावधान के बजाय पांच कार्य दिवसों के भीतर उपलब्ध कराना होगा। 



  • तीन साल तक मरीजों के मेडिकल रिकॉर्ड को सुरक्षित रखना जरूरी



    नियमों के अनुसार, आपात स्थिति के मामले में मेडिकल रिकॉर्ड जल्द से जल्द उपलब्ध कराने का प्रयास करना चाहिए। मरीज के मेडिकल रिकॉर्ड को कम्प्यूटरीकृत करने का प्रयास किया जाएगा। प्रत्येक स्व-रोजगार आरएमपी को एनएमसी द्वारा निर्धारित मानक प्रोफार्मा में उपचार के लिए मरीज के साथ अंतिम संपर्क की तारीख से तीन साल तक के मेडिकल रिकॉर्ड को सुरक्षित रखना होगा।


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