मुख्यमंत्री एमके स्टालिन की सरकार ने आरोप लगाया था कि राज्यपाल आरएन रवि, जो कि 2021 में राज्यपाल बने थे, लगातार तमिलनाडु विधानसभा के पास किए गए विधेयकों पर सहमति देने में देरी कर रहे हैं। इन बिलों में कई महत्वपूर्ण मुद्दों पर विचार किया जा रहा था, जिनमें राज्य के विकास और प्रशासनिक सुधार शामिल थे।
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सुप्रीम कोर्ट का ऐतिहासिक फैसला
सुप्रीम कोर्ट ने 10 बिलों के बारे में सुनवाई करते हुए राज्यपाल की कार्रवाई को अवैध करार दिया। कोर्ट ने स्पष्ट किया कि राज्यपाल को संविधान के दायरे में रहते हुए अपना कार्य करना चाहिए, और किसी राजनीतिक दल के प्रभाव में नहीं आना चाहिए। यह फैसला तमिलनाडु सरकार के लिए एक बड़ी राहत के रूप में आया है, जो पहले से ही राज्यपाल के खिलाफ कई बार न्यायालय का रुख कर चुकी थी।
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सुप्रीम कोर्ट ने ये दिए निर्देश...
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राज्यपाल की कार्रवाई को अवैध बताया:
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि राज्यपाल का यह कदम, जिसमें उसने तमिलनाडु विधानसभा द्वारा पारित विधेयकों को बिना कोई कारण बताए रोका था, गैरकानूनी और मनमाना है।
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मंजूरी के लिए एक माह की सीमा:
कोर्ट ने राज्यपाल को एक माह के भीतर इन बिलों पर निर्णय लेने का आदेश दिया, चाहे वह मंजूरी दे, या राष्ट्रपति के पास भेजे। यदि विधानसभा फिर से इन्हें पास करती है, तो राज्यपाल को इन्हें मंजूरी देनी होगी।
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राज्यपाल की भूमिका पर टिप्पणी:
सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा कि राज्यपाल को 'दोस्त, दार्शनिक और मार्गदर्शक' की भूमिका निभानी चाहिए और उन्हें अवरोधक की तरह कार्य नहीं करना चाहिए।
तमिलनाडु के 9 बिलों पर सुप्रीम कोर्ट का आदेश
सुप्रीम कोर्ट ने तमिलनाडु राज्यपाल के खिलाफ एक महत्वपूर्ण फैसला सुनाते हुए राज्यपाल को संविधान के अनुसार काम करने का आदेश दिया है। कोर्ट ने राज्यपाल द्वारा विधानसभा द्वारा पारित किए गए 9 बिलों को रोकने की कार्रवाई को अवैध और मनमाना करार दिया। ये बिल तमिलनाडु की राज्य सरकार के लिए महत्वपूर्ण थे, जिनमें राज्य के प्रशासनिक सुधार, सामाजिक कल्याण और अन्य महत्वपूर्ण मुद्दों पर विचार किया जा रहा था।
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राज्यपाल और मुख्यमंत्री के बीच विवाद
राज्यपाल आरएन रवि और मुख्यमंत्री एमके स्टालिन के बीच विवाद 2021 में शुरू हुआ था, जब राज्यपाल ने कुछ महत्वपूर्ण बिलों पर सहमति देने में देरी की। मुख्यमंत्री ने आरोप लगाया था कि राज्यपाल जानबूझकर उन विधेयकों को लटकाते हैं, जो राज्य सरकार के लिए महत्वपूर्ण हैं। इसमें नियुक्तियां और प्रशासनिक सुधार भी शामिल थे।
राज्यपाल के अधिकार
संविधान के आर्टिकल 200 के तहत राज्यपाल के पास चार विकल्प होते हैं जब विधानसभा कोई विधेयक भेजती है-
- मंजूरी देना
- मंजूरी रोकना
- राष्ट्रपति के पास भेजना
- विधेयक को पुनर्विचार के लिए विधानसभा को वापस भेजना
हालांकि, यदि विधेयक दोबारा विधानसभा द्वारा पारित हो जाता है, तो राज्यपाल को उसे मंजूरी देनी होती है, जैसा कि सुप्रीम कोर्ट ने इस फैसले में स्पष्ट किया है।