अखबारी कागज आपके खाने को बना देता है जहर, प्रिंटिंग इंक में होते हैं खतरनाक पार्टिकल्स, पर्यावरण भी बिगाड़ता है प्रिंटेड पेपर

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Praveen Sharma
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अखबारी कागज आपके खाने को बना देता है जहर, प्रिंटिंग इंक में होते हैं खतरनाक पार्टिकल्स, पर्यावरण भी बिगाड़ता है प्रिंटेड पेपर

Bhopal. सर्व साधारण को सूचित किया जाता है कि किसी भी विक्रेता से कोई भी खाद्य पदार्थ विशेषकर तला हुआ, अखबार में लपेट कर न खरीदें। खाद्य एवं संरक्षा मानक अधिनियम के अनुसार तले हुए खाद्य पदार्थ को अखबार में लपेटकर खाना स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है। यह चेतावनी किसी नए नवेले सामाजिक संगठन के कार्यकर्ता अथवा अनुभवहीन व्यक्ति की ओर से नहीं है, बल्कि खाद्य संरक्षा विभाग की ओर से जारी की गई है। दिल्ली सरकार की ओर से जारी इस सूचना से मामले की गंभीरता को समझा जा सकता है।





दिल्ली सरकार के खाद्य संरक्षा विभाग की ओर से इस संबंध में सार्वजनिक सूचना प्रकाशित कराई है। विभाग की इस सक्रियता से समझा जा सकता है कि दिल्ली जैसे शहर में भी लोगों की यह आदत समस्या के रूप में सामने आ रही है। साथ ही इससे बीमारियां बढ़ रही हैं। विभाग ने प्रिंटिंग में इस्तेमाल में होने वाली स्यासी में शामिल द्यातक केमिकल और पदार्थों की जानकारी भी दी है। विभाग ने भले ही यह अलर्ट दिल्ली के लिए दिया हो, लेकिन यह समस्या देश और प्रदेश के हर शहर में बढ़ती जा रही है। खासकर पेट और श्वांस संबंधी बीमारियों के मरीजों की संख्या हर छोटे-बड़े शहर में बढ़ते जा रहे हैं। जैसे-जैसे बाहर खाने का चलन बढ़ता जा रहा है, नई-नई बीमारियां भी बढ़ती जा रही हैं। मानव स्वास्थ्य के लिए काम करने वाले संगठन, चिकित्सक और पर्यावरण शास्त्री इस मामले में लगातार चिंता जताते आए हैं।





क्या कहती है एडवाइजरी





खाद्य एवं संरक्षा मानक अधिनियम के अनुसार तले हुए खाद्य पदार्थ को अखबार में लपेटकर खाना स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है। अखबार की स्याही में कई हानिकारक रसायन होते हैं, जो हमारी स्वास्थ्य समस्याओं को बढ़ा सकती है। कार्बनिक रसायन और छपी हुई स्याही के संपर्क में आने से मानव स्वास्थ्य पर हानिकारक प्रभाव पड़ता है।







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इसलिए और बढ़ रही है समस्या 





जैसे-जैसे लोगों में बाहर खाने की आदत बढ़ती जा रही है, वैसे-वैसे खाने के तौर तरीकों में लापरवाही भी बढ़ती जा रही है। खासकर शहरों और नगरों में अपने फायदे के लिए दुकानदार सादे कागजों की जगह प्रिंटेड पेपर का इस्तेमाल करते हैं। अखबारी कागज किलो के भाव से मिल जाते हैं। बड़ी-बड़ी होटलों से लेकर छोटे-छोटे खोमचों में चाय-नाश्ता बेचने वाले अखबारी कागजों का ही इस्तेमाल करते हैं। नाश्ते के रूप में कचौरी, समोसा, पोहा, ब्रेड, भजिया पकोड़े, जलेबी से लेकर कई तरह के पकवान अखबारी कागजों पर ही दिए जाते हैं। जो स्याही में मिलकर हमारे शरीर में पहुंच रहे हैं। इसका विपरीत असर भी जन स्वास्थ्य पर दिखाई देने लगा है।





यह आदत भी है खतरनाक





अधिकांश घरों में यात्रा के दौरान पूड़ी-पराठे ही ले जाना का चलन है। इसमें भी अखबारी कागज का ज्यादा इस्तेमाल होता है। टिफिन या लंच पैक में अनजाने में कागज बिछा दिया जाता है। जबकि तेलीय और रसीले पदार्थ में भी प्रिंटेड कागज धड़ल्ले से इस्तेमाल कर लिया जाता है। ऐसे भी बहुत से लोग हैं जो प्रतिदिन घर से खाना अखबार में ही लपेट कर निकलते हैं। छोटे कर्मचारी, श्रमिकों के साथ ही अधिकारी भी जानते हुए भी इस मामले में सावधानी नहीं बरतते। जबकि तेल वाली और रसादार खाद्य सामग्री प्रिंटिंग इंक के साथ जुड़कर डेंजरस फूड में तब्दील हो जाती है। जो पेट संबंधी रोगों का कारण बनती है तो श्वांस संबंधी समस्याएं भी इस पिं्रटिंग स्याही में मिलने वाले केमिकल और जहरीले पदार्थों से हो सकती हैं।





क्यों प्रिंटेड पेपर पर नहीं करना चाहिए खान-पान





प्रिंटिंग में इस्तेमाल होने वाली स्याही पिगमेंट, लिंकिंग एजेंट, सॉल्वेंट्स और सहायक एजेंटों से बनती है। कार्बनिक सॉल्वेंट्स और भारी धातुओं सें मानव शरीर को गंभीर नुकसान पहुंचता है। स्क्रीन प्रिंटिंग स्याही में कुछ सॉल्वेंट्स, जो हवा में डिस्चार्ज होते हैं वे पर्यावरण को प्रदूषित करते हैं और पौधों और पशुओं के विकास को प्रभावित करते हैं। विशेष रूप से वायु प्रदूषण के लिए छपाई की स्याही बहुत गंभीर है। कुछ सॉल्वेंट्स और ऑक्सीलिरीज अपेक्षाकृत कम हैं। जब वे हवा में इकट्ठा होते हैं और एक निश्चित तापमान तक पहुंच जाते हैं खतरनाक हो जाते हैं। स्याही में दो प्रकार के रंगद्रव्य होते हैं अर्थात अकार्बनिक और कार्बनिक रंजक। उनकी संपत्ति पानी और तेल में अघुलनशील है और जमी रहती है। कुछ अकार्बनिक रंगों में भारी धातुएं होती हैं जैसे कि सीसा, क्रोमियम, तांबे और पारा वे सभी  विषाक्त हैं। इन्हें खाद्य पैकेजिंग और बच्चों के खिलौने पर छपाई के लिए इस्तेमाल नहीं किया जाना चाहिए। कुछ कार्बनिक रंगद्रव्यों में बीफेनील रबड़ होता है, जिसमें कार्सिनोजेनिक यौगिक होते हैं और इसे कड़ाई से प्रतिबंधित किया जाना चाहिए। कार्बनिक सॉल्वैंट्स कई प्राकृतिक रेजिन और सिंथेटिक रेजिन भंग कर सकते हैं यह विभिन्न स्याही का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है।





मानव शरीर को ये हो सकते हैं नुकसान





- कार्बनिक सॉल्वेंटस शरीर और स्किन के नीचे की वसा को नुकसान पहुंचा सकते हैं।



- कुछ सॉल्वेंट्स के लिए दीर्घकालिक संपर्क त्वचा में सूखापन और खुरदरापन का कारण होता है



- त्वचा या रक्त वाहिकाओं में घुसना, रक्त के साथ मानव रक्त कोशिकाओं और हेमेटोपोएटिक समारोह को खतरे में डाल देगा। 



- विलायक गैस ट्रेकि, ब्रोंचुस, फेफड़े या रक्त वाहिकाओं के माध्यम से अन्य अंगों में लसीका फैलता है। यहां तक ​​कि मांसपेशियों के शरीर को पुरानी विषाक्तता का कारण भी ले सकता है।







क्या कहते हैं चिकित्सक







Dr Lokendra Dave



Dr Lokendra Dave







प्रिंटिंग इंक टॉक्सिक होती है, तेल और पानी में मिक्स होकर वह खतरनाक हो जाती है। वहीं एक अखबार या प्रिंटेड पेपर कई हाथों से होकर गुजरता है। इससे इंफेक्शन का खतरा बढ़ जाता है। बारिश के मौसम में तो यह खतरा और कई गुना रहता है। इसलिए खान-पान में हमेशा सावधानी बरती जाना चाहिए। कई बार गीले और फंगस युक्त कागजों पर भी दुकानदार खाद्य सामग्री दे देता है। यह पेट, एलर्जी और इंफेक्शन जैसी बीमारियों के कारण बनते हैं। वैसे तो केमिकल इंक ही मानव स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है। तेल व जलीय खाद्य पदार्थ में मिलकर यह इंक कई बीमारियां पैदा कर सकती है। 



डॉ. लोकेंद्र दवे, श्वांस रोग विशेषज्ञ, जीएमसी भोपाल



 







Dr  PN Agrawal



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छपा हुआ कागज वैसे भी पाइजनिंग होता है। कई कागजों में इस्तेमाल हुई स्याही काफी कमजोर होती है, जो पानी या तेल मिलते ही छूट जाती है। इससे खाद्य सामग्री मानव स्वास्थ्य के लिए खतरनाक हो जाती है। ऐसी प्रेक्टिस लॉग टर्म में नुकसान दे सकती है। खासकर पेट और श्वांस संबंधी समस्याएं हो सकती हैं। 



डॉ. पीएन अग्रवाल, श्वांस रोग विशेषज्ञ 



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