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Photograph: (the sootr)
Jaipur. गैंगस्टर आनंदपाल एनकाउंटर मामले में शामिल पुलिस अधिकारियों को बड़ी राहत मिली है। इस मामले में पुलिस अफसरों पर हत्या का केस नहीं चलेगा। जिला अदालत जोधपुर ने निचली अदालत सीबीआई कोर्ट के उस आदेश को निरस्त कर दिया है, जिसमें निचली कोर्ट ने पुलिस अधिकारियों पर हत्या का मुकदमा चलाने का आदेश दिया था।
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पुलिस को मिली राहत
जिला एवं सत्र न्यायाधीश जोधपुर महानगर अजय शर्मा ने एनकाउंटर मामले में एसीजेएम (सीबीआई केसेज) कोर्ट के 24 जुलाई, 2024 के उस आदेश को पूरी तरह निरस्त कर दिया, जिसमें एनकाउंटर करने वाले 7 पुलिस अधिकारियों पर हत्या का मुकदमा चलाने का निर्देश दिया गया था। इस फैसले से तत्कालीन चूरू एसपी राहुल बारहठ समेत सभी पुलिस अधिकारियों को बड़ी राहत मिली है।
आनंदपाल को एनकाउंटर में मार गिराया
24 जून, 2017 की रात करीब 10 बजे चूरू जिले के मालासर गांव में राजस्थान पुलिस की एसओजी टीम ने 5 लाख रुपए के इनामी गैंगस्टर आनंदपाल सिंह का एनकाउंटर किया था। पुलिस को सूचना मिली थी कि आनंदपाल अपने साथियों के साथ श्रवण सिंह के घर छिपा हुआ है। एसपी राहुल बारहट ने आनंदपाल को सरेंडर करने को कहा, लेकिन उसने छत से पुलिस पर अत्याधुनिक हथियार से गोलीबारी शुरू कर दी।
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करवाया गया अंतिम संस्कार
इस पर टीम ने भी जवाबी हमला किया, जिसमें मुठभेड़ में कमांडो सोहन सिंह और इंस्पेक्टर सूर्यवीर सिंह घायल हुए और आनंदपाल सिंह की भी गोली लगने से मौत हो गई। घटनास्थल से दो AK-47 राइफल, एक 0.22 राइफल और बड़ी संख्या में कारतूस बरामद हुए थे। इस एनकाउंटर को लेकर राजपूत समाज ने पूरे प्रदेश में आंदोलन कर दिया था। कई दिन तक आनंद की लाश को लेकर समाज के लोग धरना प्रदर्शन करने लगे। बाद में पुलिस ने बल प्रयोग कर अन्तिम संस्कार कराया।
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सरकार ने करवाई सीबीआई जांच
राजस्थान सरकार ने 2017 में मामले की जांच सीबीआई को सौंप दी थी। सीबीआई ने विस्तृत जांच के बाद घटना को वास्तविक एनकाउंटर पाया और क्लोजर रिपोर्ट दाखिल की। इस पर आनंदपाल की पत्नी राज कंवर ने प्रोटेस्ट पिटीशन दायर की। उसी याचिका पर तत्कालीन एसीजेएम युवराज सिंह की कोर्ट ने 24 जुलाई, 2024 को सीबीआई की क्लोजर रिपोर्ट खारिज कर दी।
क्रिमिनल रिवीजन पिटीशन दायर
कोर्ट ने 7 पुलिस अधिकारियों राहुल बारहट (तत्कालीन एसपी चूरू), विद्या प्रकाश (तत्कालीन सीओ कुचामन सिटी), सूर्यवीर सिंह राठौड़ (तत्कालीन इंस्पेक्टर एसओजी), कैलाश चंद्र (तत्कालीन हेड कांस्टेबल), धर्मवीर सिंह (तत्कालीन कांस्टेबल), धर्मपाल (तत्कालीन कांस्टेबल) और सोहन सिंह शेखावत (तत्कालीन कांस्टेबल) के खिलाफ संज्ञान लेते हुए हत्या की धारा 302 सहित अन्य धाराओं में मुकदमा चलाने के आदेश दिए थे। इसके खिलाफ अधिकारियों ने सेशन कोर्ट में क्रिमिनल रिवीजन पिटीशन दायर की थी।
कोर्ट ने बताई विसंगतियां
डिस्ट्रिक्ट एवं सेशन जज अजय शर्मा ने विस्तृत विश्लेषण करते हुए कई अहम विसंगतियां बताई। कोर्ट ने पाया कि आनंदपाल के भाई रूपेंद्र पाल ने सीबीआई के समक्ष 16 अप्रैल, 2018 को बयान दिया था, जिसमें उसने खुद को चश्मदीद गवाह नहीं बताया, लेकिन 6 साल बाद कोर्ट में अचानक खुद को चश्मदीद गवाह बताया। कोर्ट ने कहा कि यह सामान्य मानवीय व्यवहार के खिलाफ है, खासकर उस व्यक्ति के लिए जिसने अपने भाई की कथित हत्या देखी हो।
आनंदपाल सिंह के एनकाउंटर मामले में पुलिस अफसरों पर चलेगा हत्या का केस
बैलिस्टिक रिपोर्ट पर जोर
कोर्ट ने बैलिस्टिक रिपोर्ट पर जोर दिया, जिसमें साबित हुआ कि 32 गोलियां आनंदपाल की AK-47 से चलाई गईं। सोहन सिंह की रीढ़ से निकाली गई गोली भी आनंदपाल की AK-47 की थी। आनंदपाल की AK-47 रैपिड फायर मोड में मिली और उसके हैंडवॉश में नाइट्रेट मिला, जो फायरिंग की पुष्टि करता है। कोर्ट ने कहा कि निचली कोर्ट ने गोली लगने की संभावना को सिर्फ संभव नहीं लगता कहकर खारिज कर दिया, जो वैज्ञानिक साक्ष्यों की अनदेखी है।
जवाबी फायरिंग कर्तव्य की परिधि
कोर्ट ने अपने फैसले में माना कि पुलिस टीम अपनी ड्यूटी निभाते हुए 41 गंभीर मामलों में वांछित कुख्यात गैंगस्टर आनंदपाल को गिरफ्तार करने गई थी, तब आनंदपाल ने अपनी AK-47 राइफल से लगातार गोलीबारी की और पुलिस टीम के सदस्यों को घायल किया। इसके बाद अपनी जान बचाने के लिए पुलिस द्वारा की गई जवाबी फायरिंग आधिकारिक कर्तव्य की परिधि में ही आती है।
अपना कर्तव्य निभा रहे थे अधिकारी
जज अजय शर्मा ने सुप्रीम कोर्ट के ओम प्रकाश बनाम झारखंड राज्य के फैसले का हवाला देते हुए स्पष्ट किया कि यदि कर्तव्य निभाते समय कुछ अतिक्रमण या सीमा से बाहर जाने की स्थिति भी बने, तब भी जब तक उस कार्य और आधिकारिक कर्तव्य के बीच उचित और वाजिब संबंध है, तो पुलिस अधिकारियों को धारा 197 CrPC के तहत कानूनी संरक्षण मिलना चाहिए। आनंदपाल केस में यह स्पष्ट है कि पुलिस अधिकारी अपना कर्तव्य निभा रहे थे। इसलिए उन्हें बिना सरकार की पूर्व स्वीकृति के मुकदमे का सामना नहीं करना पड़ेगा।
पुलिस को शिकार नहीं बनाएं
कोर्ट ने कहा कि निचली कोर्ट का आदेश कानूनी और तथ्यात्मक दोनों दृष्टिकोणों से गलत है। लोअर कोर्ट ने एफएसएल रिपोर्ट, मेडिकल रिपोर्ट और बैलिस्टिक रिपोर्ट को नजरअंदाज किया। आत्मसमर्पण किए गए व्यक्ति की हत्या का निष्कर्ष तथ्यों के अनुरूप नहीं है। परिणामस्वरूप रिवीजन पिटीशन स्वीकार की गई और 24 जुलाई, 2024 का आदेश निरस्त हो गया। कोर्ट ने कहा कि ठोस सबूत के बिना कर्तव्य निभाने वाले पुलिसकर्मियों को आपराधिक मुकदमे का शिकार नहीं बनाया जाना चाहिए।
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