BHOPAL. मध्यप्रदेश में विधानसभा चुनाव के बाद कांग्रेस आए या बीजेपी, दोनों ही पार्टियों ने लाड़ली बहना योजना का आश्वासन बहनों को दे रखा है। यदि योजना के चुनाव पर असर की बात करें तो यह कहना गलत नहीं होगा कि चुनाव को रोचक बना दिया है। यानी एंटी इनकंबेंसी के दौर में बीजेपी को कुछ फायदा पहुंचाया है। वैसे इस योजना से टैक्स पेयर्स का एक बड़ा वर्ग नाराज भी है। ये लोग विरोध किस तरह से करेंगे यह तो 3 दिसंबर को चुनाव का परिणाम आने के बाद ही पता चलेगा।
लाड़ली बहना योजना के विज्ञापन पर किया गया है बड़ा खर्च
वैसे लाड़ली बहना योजना के विज्ञापनों पर खर्च हुई राशि का हिसाब भी लोगों को चौंका सकता है क्योंकि हर कहीं इस योजना के विज्ञापन दिखाई दे जाते थे। माना जा रहा है किसी योजना पर इतने कम समय में इतना ज्यादा खर्च का रिकॉर्ड लाड़ली बहना योजना के विज्ञापन का ही रहेगा। कुछ जानकार तो यह कह रहे हैं जितनी राशि सितंबर माह तक बहनों के खाते में पहुंची उससे ज्यादा का खर्च तो सरकार ने इस योजना के विज्ञापन पर कर डाला। मप्र के विभिन्न शहरों में लगे होर्डिंग्स से लेकर सिटी बसों, समाचार पत्रों, टीवी चैनल्स, विभिन्न सोशल वेबसाइटों पर लाड़ली बहना योजना के विज्ञापन दिख जाते थे।
बिलों के भुगतान के बाद ही खर्च का खुलासा होगा
लाड़ली बहना योजना के विज्ञापनों पर किसे क्या रेट दिया गया था यह भी जानकारी महत्वपूर्ण मानी जा रही है। मप्र के बाहर से निकलने वाले कई समाचार पत्रों में भी जमकर विज्ञापन दिए गए। अब नजर इन विज्ञापनों पर होने वाले भुगतान की राशि पर रहेगी। जनसंपर्क विभाग में जब बिल लगेंगे और भुगतान होगा उसके बाद ही खुलासा होगा। भले ही यह हिसाब देर से मिलेगा लेकिन खर्च चौंकाने वाला हो सकता है। वैसे योजना की राशि पर खर्च की बात करें तो हर माह एक बड़ा खर्च इसपर किया जा रहा है।
योजना की घोषणा दोनों पार्टियों की, फायदा किसे देखना होगा
लाड़ली बहना योजना से मप्र में होने वाला विधानसभा चुनाव रोचक जरूर बन गया है। जानकार यह तो मानते हैं कि बीजेपी को इस योजना का फायदा होगा, लेकिन कितना इस बारे में चुनाव परिणाम के बाद ही पता चलेगा। चूंकि कांग्रेस ने भी हर माह 1500 रुपए देने की बात कही है तो योजना का लाभ लेने वाली महिलाओं को इस बात का विश्वास है कि जीते कोई भी, उनके खाते में योजना की राशि आती रहेगी।
इस योजना को लेकर वोटर फिलहाल मौन है
जो लोग लाड़ली बहना योजना से नाराज है वे नतीजों पर कितना असर डाल पाते हैं यह जानने की सभी को उत्सुकता है। कहा जा रहा है नाराज वर्ग के लोग मतदान कम करते हैं। संभव है ये लोग मतदान करें तो नोटा या अन्य किसी राजनीतिक पार्टी के पक्ष में मतदान कर सकते हैं जिसने इस योजना पर अपनी स्वीकृति नहीं दी है या फिलहाल मौन है। कुछ लोग तो यह भी कह रहे हैं हर बार नई पार्टी चुनकर भी नाराजगी प्रकट की जा सकती है।