कोंटा में त्रिकोणीय मुकाबला, अनपढ़ मंत्री का सामना पूर्व शिक्षक और उच्‍च शिक्षित पूर्व विधायक से

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BP Shrivastava
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कोंटा में त्रिकोणीय मुकाबला, अनपढ़ मंत्री का सामना पूर्व शिक्षक और उच्‍च शिक्षित पूर्व विधायक से

गंगेश,द्विवेदी/ RAIPUR. सत्‍ता में रहते हुए की गई कमाई से बन रहा महल जैसा मकान इस बार कोंटा विधानसभा में चर्चा का विषय है, कांग्रेस के आबकारी मंत्री और लगातार पांच बार के अनपढ़ विधायक कवासी लखमा के खिलाफ बीजेपी ने सलवा जुडुम में महत्‍वपूर्ण भूमिका निभाने वाले युवा नेता और पेशे से शिक्षक रहे सोयम मुक्‍का को मैदान में उतारा है तो उच्‍च शिक्षित (एमए, एलएलबी) सीपीआई नेता और पूर्व विधायक मनीष कुंजाम ने उनकी चुनौती को बढ़ा कर मुकाबला त्रिकोणीय कर दि‍या है।

कोंटा में 13 प्रत्याशी मैदान में

बस्तर संभाग की 12 विधानसभा सीटों में से एक सबसे हाइप्रोफाइल सीट धुर नक्‍सल प्रभावित कोंटा से छठी बार चुनावी मैदान में उतरे आबकारी और उद्योग मंत्री कवासी लखमा के लिए जीत बेहद कठिन नजर आ रही है। उनके मुकाबले उनके परंपरागत प्रतिद्वंद्वी मनीष कुंजाम हैं तो भाजपा ने इस अनपढ़ मंत्री के मुकाबले पूर्व शिक्षक सोयम मुक्‍का को चुनावी मैदान में उतारा है। हालांकि, यहां से बहुजन समाज पार्टी, सर्वआदि‍वासी दल सहित 13 प्रत्‍याशी मैदान में हैं, लेकिन मुख्‍य मुकाबला त्रिकोणीय ही रहने वाला है।

 जानकारों की माने तो इस बार कवासी लखमा को महल जैसा मकान और नक्‍सलियों का विरोध भारी पड़ सकता है। हालांकि नक्‍सलियों ने भाजपा प्रत्‍याशी सोयम मुक्‍का के नाम का भी विरोध किया है लेकिन भ्रष्‍टाचार के आरोपों से घिरे मंत्री का एकाएक बढ़ा वैभव भी चर्चा का विषय बना हुआ है। बताते हैं कि कवासी जो मकान बनवा रहे हैं उसमें करोड़ों रुपए खर्च कर रहे हें और वह महल से कम नहीं है।

सलवा जुडुम के नेता को बीजेपी ने उतारा मैदान में

बस्‍तर से नक्‍सलवाद को खत्‍म करने के लिए शुरू किए गए असफल नागरिक आंदोलन में महत्‍वपूर्ण भूमिका निभाने वाले सोयम मुक्‍का को बीजेपी ने चुनावी मैदान में उतारा है। सोयम मुक्‍का के पिता जोगिया मुका अविभाजित मध्‍यप्रदेश में दो बार विधायक रह चुके हैं। 1957 और 1980 में वे निर्दलीय प्रत्‍याशी के रूप में जोगिया मुका ने कोंटा सीट से जीत हासिल की। सलवा जुडुम में महत्‍वपूर्ण भूमिका निभाने के कारण आदिवासी समाज में सोयम मुक्‍का की अच्‍छी छवि और पकड़ है। मुक्‍का ने नक्‍सलवाद से बुरी तरह से प्रभावित इस क्षेत्र के पिछड़ेपन और विकास के कार्य नहीं होने को प्रमुख मुद्दा बनाया है। क्षेत्र का नहीं केवल विधायक का विकास लोगों को दिख रहा है। ऐसे में कांग्रेस को अपने इस किले को ढहने से बचाने के लिए एड़ी-चोटी का जोर लगाना पड़ सकता है।

दो बार कोंटा से विधायक रहे मनीष कुंजाम

मनीष कुंजाम छत्तीसगढ़ के एक भारतीय कम्युनिस्ट राजनीतिज्ञ और भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के नेता हैं। उन्होंने 1990 से 1998 तक मध्य प्रदेश विधानसभा (अब छत्तीसगढ़ में) में कोंटा निर्वाचन क्षेत्र का प्रतिनिधित्व किया। 1998 से अब तक पांच बार कवासी लखमा ने जीत दर्ज की है। कुजाम के मैदान में रहने के कारण हमेशा से यहां मुकाबला त्रिकोणीय रहा है। ज्‍यादातर बार टक्‍कर कांग्रेस और सीपीआई के बीच रहा है। बीजेपी यहां से तीसरे नंबर पर आती रही है। वह भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी की राष्ट्रीय कार्यकारिणी के सदस्य हैं। साथ ही वह अखिल भारतीय आदिवासी महासभा के अध्यक्ष भी हैं।केंद्रीय चुनाव आयोग ने सीपीआई की राष्‍ट्रीय पार्टी होने की मान्‍यता खत्‍म कर दी है, इसलिए इस बार कुंजाम को निर्दलीय मैदान में उतरना पड़ रहा है। आदिवासियों के बीच इनकी पकड़ भी मजबूत है। टाटा स्टील प्लांट के खिलाफ आदिवासियों का प्रदर्शन में मनीष कुंजाम ने बहुत प्रमुख भूमिका निभाई, यहां तक कि उन्हें गिरफ्तार भी कर लिया गया। जिसके परिणामस्वरूप बस्तर में लोहंडीगुड़ा के आसपास के दस गांवों के लोगों को जमीन वापस मिल गई। लेकिन इस बार चुनाव चिन्‍ह को जनता तक पहुंचाना उनके लिए चुनौती है। इस बार उन्‍हें निर्दलीय होने के कारण उगता सूरज चुनाव चिन्‍ह मिला है, जबकि उनके समर्थक अब तक धान की बाली और हसिया चुनाव चिन्‍ह पर बटन दबाते रहे हैं। इसका नुकसान उन्‍हें हो सकता है।

 विधानसभा में आदिवासियों की आबादी 80 फीसदी

आदिवासियों के लिए आरक्षित इस कोंटा विधानसभा सीट पर 80 फीसदी मतदाता आदिवासी हैं। वहीं 20 फीसदी अनुसूचित जाति, पिछड़ा वर्ग और सामान्य वर्ग के लोग हैं। यहां के माड़िया, हल्बा, दोरला, मुरिया चारों ही क्षेत्र अनुसूचित जनजाति के अंतर्गत आते हैं। आदिवासियों की जनसंख्या भी इस विधानसभा में सबसे अधिक है। इसके कारण यहां पार्टियों का ध्‍यान भी आदिवासियों के ऊपर रहता है। मतदाताओं की संख्या की बात करें तो कोंटा विधानसभा सीट पर मतदाताओं की वर्तमान में कुल संख्या 1 लाख 66 हजार 353 है। इनमें महिला मतदाताओं की संख्या 88 हजार 069 है और पुरुष मतदाताओं की संख्या 78 हजार 284है। वहीं यहां थर्ड जेंडर का एक मतदाता है। इस विधानसभा सीट पर पुरुषों की अपेक्षा महिला मतदाताओं की संख्या ज्यादा है।

कोंटा विधानसभा है कांग्रेस का गढ़

 इस सीट की राजनीतिक समीकरण की बात की जाए तो कोंटा विधानसभा को हमेशा से ही कांग्रेस का गढ़ माना जाता रहा है। कांग्रेस के प्रत्याशी कवासी लखमा ही लगातार इस सीट से चुनाव जीतते आ रहे हैं। 1998 से लेकर 2018 के चुनाव तक पांच बार से लगातार चुनाव जीतकर कांग्रेस की सरकार बनने के बाद उन्हें आबकारी मंत्री बनाया गया है।इस विधानसभा से कांग्रेस के बड़े कद्दावर नेता कवासी लखमा ने ही चुनाव जीता है। कवासी लखमा ने बीजेपी के बड़े बड़े नेताओं को इस सीट से चुनाव हराया है और सभी चुनावों में वोटो का अंतर भी काफी ज्यादा रहा है।

यह क्षेत्र नक्सल प्रभावित पिछड़ा इलाका

यहां आदिवासियों की संख्या ज्यादा है और यह क्षेत्र नक्सल प्रभावित है। राज्‍य बनने के समय से ही यहां बड़ी नक्‍सली वारदात होती रही हैं। तुलना में कोंटा विधानसभा क्षेत्र के ग्रामीण अंचलों और शहरी क्षेत्रों की थोड़ी बहुत तस्वीर बदली है।

विधानसभा का इतिहास

कोंटा विधानसभा के इतिहास की बात की जाए तो सन 1998 में हुए यहां हुए चुनाव में कवासी लखमा ने बीजेपी के प्रत्याशी को हराकर भारी मतों से जीत दर्ज की थी। इसके बाद 2003 में हुए विधानसभा चुनाव में कोंटा विधानसभा में चार प्रत्याशी चुनावी मैदान में थे। कांग्रेस से कवासी लखमा ने इस चुनाव में सीपीआई के प्रत्याशी मनीष कुंजाम को 17 हजार के मतों के अंतर से हराया। वहीं तीसरे पोजिशन पर बीजेपी के प्रत्याशी बुधराम सोढ़ी रहे। वहीं 2008 के चुनाव में कवासी लखमा ने बीजेपी के प्रत्याशी पदम नंदा को 192 वोट के अंतर से हराया। इसके बाद 2013 के चुनाव में यहां से पांच प्रत्याशी मैदान में थे। इस चुनाव में भी कवासी लखमा ने बीजेपी के प्रत्याशी धनीराम बारसे को 5 हजार 786 मतों के अंतर से हराया। वहीं 2018 के विधानसभा चुनाव में एक बार फिर कांग्रेस ने यहां से कवासी लखमा को ही टिकट दिया। इस चुनाव में भी कवासी लखमा ने बीजेपी के प्रत्याशी धनीराम बारसे को 6 हजार 709 मतों के अंतर से हराया। पिछले पांच विधानसभा चुनावों से लगातार कवासी लखमा ही इस सीट से जीत दर्ज करते आ रहे हैं।

झीरम कांड में जान बचाकर भाग निकले थे लखमा

कवासी लखमा कांग्रेस के काफी कद्दावर नेता भी माने जाते हैं। 25 मई 2013 को हुए देश के सबसे बड़े नक्सली हमलो में से एक झीरम घाटी हमले में कांग्रेस की पूरी एक पीढ़ी नक्सलियों ने समाप्त कर दी थी। इनमें से इकलौते नेता कवासी लखमा हैं, जो अपनी जान बचाकर सुरक्षित इतनी बड़ी घटना से बाहर निकल आए थे। उसके बाद से छत्तीसगढ़ ही नहीं बल्कि पूरे देश की जनता कवासी लखमा को जानने लगी।

स्थानीय मुद्दे-

नक्‍सलवाद सबसे बड़ी समस्‍या

नक्‍सलवाद यहां की सबसे बड़ी समस्‍या है। पिछले चार दशकों से इस क्षेत्र में नक्सलियों ने अपनी पैठ जमाई हुई है। नक्सल समस्या के कारण इस विधानसभा के सैकड़ों गांव विकास से पूरी तरह से अछूते हैं। सड़क, पुल, पुलिया, बिजली,पानी, शिक्षा और स्वास्थ्य लगातार इस क्षेत्र की समस्या बनी हुई है। खासकर यहां कोंटा ब्लॉक का इलाका विकास से अछूता है।

बारिश में टापू बन जाता है इलाका

बारिश के मौसम में इस विधानसभा क्षेत्र में रहने वाले ग्रामीणों को काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ता है। पुल पुलिये का निर्माण नहीं होने की वजह से यहां के सैकड़ों गांव टापू में तब्दील हो जाते हैं। यही नहीं यहां के सैकड़ों गांव के ग्रामीण तीन से चार महीने तक पूरे सुकमा मुख्यालय से कट जाते हैं। यहां नदी और नालों पर पुल-पुलिया नहीं बनने की वजह से उफनते नदी नालों को पार करते वक्त ग्रामीण अपनी जान गंवा बैठते हैं।

स्‍वास्‍थ्‍य सुविधा और शिक्षा की कमी

इस विधानसभा क्षेत्र में स्वास्थ्य सुविधाओं का अभाव भी सबसे बड़ी समस्या है। गांव-गांव तक स्वास्थ्य सुविधा नहीं पहुंच पाने की वजह से इस क्षेत्र के ग्रामीण झाड़-फूंक पर निर्भर रहते हैं। कई गांवो में आज तक स्वास्थ्य केंद्र नहीं बन पाए हैं और ना ही बीमार ग्रामीणों को मुख्यालय तक लाने के लिए कोई सुविधा है। इस वजह से इलाज के अभाव में ग्रामीण दम तोड़ देते हैं। वहीं कई गांव तक आज तक बिजली नहीं पहुंच पाई है। आजादी के इतने साल बाद भी यहां ऐसे कई गांव हैं, जो पूरी तरह से अंधेरे में डूबे हुए हैं।

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