Kudargarh Devi Temple : पहाड़ पर विराजीं हैं मां, दर्शन मात्र से दूर होते हैं सारे कष्ट

Kudargarh Devi Temple History : छत्तीसगढ़ में कई देवी मंदिर अपने रोचक रहस्यमयी कहानियों के लिए प्रसिद्ध है। वहीं शक्तिपीठ सिद्ध माता के मंदिरों में चमत्कार भी देखने को मिलते है।

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Kanak Durga Jha
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Kudargarh Devi Temple History : छत्तीसगढ़ में कई देवी मंदिर अपने रोचक रहस्यमयी कहानियों के लिए प्रसिद्ध है। वहीं शक्तिपीठ सिद्ध माता के मंदिरों में चमत्कार भी देखने को मिलते है। नवरात्रि में देवी मंदिरों में भक्त लाखों की संख्या में दर्शन करने आ रहे हैं। वहीं कुदरगढ़ तीर्थस्थल में भी भक्तों की भीड़ लगी हुई है। यहां अलग-अलग राज्यों से श्रद्धालु माता के दर्शन के लिए आ रहे हैं। कुदरगढ़ देवी की मूर्ति लाल पत्थर की अष्ट भुजी महिषासुर मर्दनी स्वरूप की है। यह मूर्ति 18 वीं सदी में हडौतिया चौहान वंशों के अधिपत्य में आई। 

ये है मंदिर का इतिहास

इस वंशज के पूर्वज हरिहर शाह चौहान के समय काल में राज बालंद जो विंध्य प्रदेश के वर्तमान सीधी जिला के जनक चांद बखार के बीच में मरवास का रहने वाला क्षत्रिय कुल का था। यह मूर्ति वही लाया। बालंद क्रूर था जो सीधी क्षेत्र में लूट पाट व डकैती करता था। उससे परेशान होकर सरगुजा के जमींदारों ने समूह बनाकर तमोह पहाड़ पर चढ़ाई की। बालंद परास्त होकर मूर्ति सहित अपने साथियों के साथ कुदरगढ़ पहाड़ जो कोरिया के रामगढ़ पहाड़ से लगा हुआ है के बीहड़ में कुंदरा में स्थापित कर अपना निवास स्थान बनाया।

ऐसे हुई मूर्ति की स्थापना

पुजारी पद के लिए चेरवा और पंडो के बीच हो गया था विवाद, चौहान वंश की मदद से मूर्ति को पहुंचाया बालंद के निवास स्थान को मूल निवासी पंडो तथा चेरवा जाति जानते थे। इसके बाद पुजारी पद के लिए पंडो और चेरवा के बीच वैमनस्यता हो गई। चेरवा जातियों ने चौहान वंश का साथ लिया उस काल में चौहान के मुख्य हरिहर शाह थे जिन्होंने राज बालंद को चारों तरफ से घेर लिया और झगरा खार पुराने धाम के मार्ग में है जहां लड़ाई में मारा गया। 

इसके बाद चेरवा लोगों के सहयोग से मूर्ति को प्राप्त कर स्थापित किया गया। प्रतिमा तीन फीट लंबी, हाथ के एक ओर सूर्य तो दूसरी ओर चंद्रमा बिराजे माता की प्रतिमा तीन फीट लंबी व एक फीट चौड़ी है। जिसमें एक हाथ का चिन्ह पांचों उंगली का जिसके एक तरफ सूर्य व एक तरफ चन्द्रमा तथा स्त्री व पुरुष के द्वारा शिव लिंग को पूजते दर्शाया है। यह जानकारी चौहान वंशज झिलमिली ने जुटाई है।

 

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