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संसद का शीतकालीन सत्र इस समय चल रहा है, और इस दौरान सत्ता पक्ष और विपक्ष के बीच लगातार हंगामा हो रहा है। इसके कारण लोकसभा और राज्यसभा की कार्यवाही सुचारू रूप से नहीं चल पा रही है। इस राजनीतिक गतिरोध के बीच, इंडिया अलायंस ने राज्यसभा के सभापति, जगदीप धनखड़, को पद से हटाने के लिए अविश्वास प्रस्ताव पेश किया है। मंगलवार को फिर से राज्यसभा की कार्यवाही दिन भर के लिए स्थगित कर दी गई।
यह घटना भारतीय संसद के अंदर एक अहम राजनीतिक घटनाक्रम है, क्योंकि सभापति के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव का पेश किया जाना संसद की कार्यवाही और विपक्ष के अधिकारों को लेकर एक बड़ा संदेश है। ऐसे माहौल में संसद की कार्यवाही को आगे बढ़ाना चुनौतीपूर्ण हो गया है।
60 सांसदों का हस्ताक्षर
राज्यसभा के सभापति जगदीप धनखड़ के खिलाफ पेश किए गए अविश्वास प्रस्ताव पर 60 सांसदों ने साइन किए हैं। इस प्रस्ताव में कई प्रमुख विपक्षी दलों के सदस्य शामिल हैं, जिनमें कांग्रेस, अरविंद केजरीवाल की आम आदमी पार्टी, अखिलेश यादव की समाजवादी पार्टी, तमिलनाडु की डीएमके और लालू यादव की राष्ट्रीय जनता दल (RJD) शामिल हैं।
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पीएम मोदी पर विपक्ष का निशाना
संसद में इस समय लगातार हंगामा जारी है, जिसमें विपक्षी नेताओं और सत्ता पक्ष के बीच गंभीर गतिरोध बना हुआ है। राज्यसभा के सभापति, जगदीप धनखड़, विपक्षी गठबंधन के नेताओं को लगातार फटकार लगा रहे हैं। वे विपक्षी नेताओं पर आरोप लगा रहे हैं कि वे उनके आचरण और हंगामे के जरिए सदन को ठीक से चलने नहीं दे रहे हैं।
मंगलवार को संसद परिसर में कई विपक्षी सांसदों ने अडाणी मुद्दे पर प्रदर्शन किया। प्रदर्शनकारी सांसदों ने काले रंग के बैग लेकर आए, जिन पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और अरबपति गौतम अडाणी के कार्टून छपे थे, साथ ही "मोदी अडाणी भाई भाई" लिखा था। यह प्रदर्शन अडानी से जुड़ी सरकारी नीतियों और उन पर चर्चा को लेकर किया गया था।
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प्रियंका गांधी ने क्या कहा?
कांग्रेस सांसद प्रियंका गांधी वाड्रा ने इस पर प्रतिक्रिया देते हुए कहा कि सदन की कार्यवाही जानबूझकर नहीं चलने दी जा रही है या सरकार इसे चलाने में असमर्थ है। उन्होंने इसे सरकार की रणनीति बताया और कहा कि वे अडाणी पर चर्चा से डरते हैं। प्रियंका गांधी ने यह भी कहा कि यह अजीब है कि संसद के इस सत्र में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अब तक उपस्थित नहीं हुए हैं, जबकि सत्र के 10 दिन पूरे हो गए हैं।
अडाणी पर चर्चा की मांग
इस पूरे मामले को देखे तो यह साफ हो जाता है कि विपक्षी दल अडाणी मुद्दे पर चर्चा को लेकर काफी सक्रिय हैं और वे सरकार पर दबाव बनाने की कोशिश कर रहे हैं, जबकि सत्ता पक्ष इसे नकारने या अनदेखा करने की रणनीति अपना रहा है।
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