वन नेशन वन इलेक्शन : भारत में कितनी चुनौतियां, जानें क्या हैं इसके लाभ

वन नेशन वन इलेक्शन को कैबिनेट में मंजूरी तो मिल गई है, लेकिन इसको लागू करना इतना आसान नहीं होगा। क्योंकि देश में एक साथ चुनाव कराने के लिए कई चुनौतियों का सामना करना पडे़गा।

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Ravi Singh
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One Nation One Election : एक देश एक चुनाव को मोदी कैबिनेट से मंजूरी मिल गई है। वन नेशन वन इलेक्शन के लिए एक कमेटी बनाई गई थी जिसके चेयरमैन पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद थे। कोविंद ने अपनी रिपोर्ट आज मोदी कैबिनेट को सौंपी। इसके बाद इसे सर्वसम्मति से मंजूर कर लिया गया है। एक देश एक चुनाव की राह इतनी भी आसान नहीं है। बिल पास होने के बाद भी एक साथ चुनाव कराने के लिए सरकार को चुनौतियों का सामना करना पड़ेगा। साथ ही इसके लाभ भी हैं। आइए जानते हैं वन नेशन वन इलेक्शन की राह कितनी आसान और कितनी कठिन...

कोविंद ने संसद के अपने संबोधन में की थी चर्चा

एक देश एक चुनाव  केंद्र सरकार के एजेंडे में शामिल महत्त्वपूर्ण सुधारों में से एक है। भारत के पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने जनवरी 2018 में संसद के अपने संबोधन में इसकी चर्चा भी की थी, उन्होंने कहा था कि नागरिक देश के किसी न किसी हिस्से में बार-बार होने वाले चुनावों को लेकर एक चिंता रखते हैं। इसका अर्थव्यवस्था और विकास पर विपरीत असर पड़ता है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी पूरे देश में एक चुनाव कराए जाने को लेकर मुखरता से बात करते रहे हैं।

1967 तक देश में ऐसे ही होते थे चुनाव

एक देश एक चुनाव के पीछे का केंद्रीय विचार यह है कि लोकसभा चुनावों के साथ सभी राज्यों के विधानसभा चुनावों को एक साथ किया जाए ताकि देश भर में बार-बार होने वाले चुनावों को कम किया जा सके। 1967 तक देश में ऐसे ही चुनाव होते थे, लेकिन दल-बदल, बर्खास्तगी  और सरकार टूटने जैसे कारणों से यह व्यवस्था खत्म कर दी थी। पहली बार 1959 में जब केंद्र ने तत्कालीन केरल सरकार को बर्खास्त करने के लिए अनुच्छेद 356 लागू किया तब राजनीतिक दलों के बीच दल-बदल के कारण कई विधानसभाओं के विघटन की स्थिति बन गई थी। इसके कारण लोकसभा और राज्य विधानसभाओं के लिए अलग-अलग चुनाव कराने पड़े।

वन नेशन-वन इलेक्शन के लाभ...

केंद्रित शासन

चुनाव संपन्न होने के बाद शासन पर ध्यान केंद्रित करने में सरकार को सक्षम बनाता है। वर्तमान में देश के किसी न किसी हिस्से में कम से कम हर तीसरे महीने में चुनाव होते रहते हैं। देश का पूरा ध्यान इन चुनावों पर ही रहता है। प्रधानमंत्री से लेकर केंद्रीय मंत्रियों तक, मुख्यमंत्रियों से लेकर राज्य के मंत्रियों तक और सांसदों, विधायकों से लेकर पंचायत सदस्यों तक हर कोई इन चुनावों में संलग्न हो जाता है। यह भारत की विकास संभावनाओं पर नकारात्मक प्रभाव डालती है। देश में एक साथ चुनाव होने की स्थिति में जनप्रतिनिधियों को भी अपने क्षेत्रों के कार्य का भरपूर समय मिल पाएगा।

नीतिगत निर्णयों की निरंतरता

निर्वाचन आयोग द्वारा चुनावों की घोषणा के साथ ही आदर्श आचार संहिता लागू की जाती है। आदर्श आचार संहिता के साथ चुनाव होने के कारण नीतिगत निर्णय नहीं लिया जा सकते हैं। इससे निर्णयों में देरी की स्थिति बनती है। यहां तक कि जब कोई नया निर्णय आवश्यक नहीं होता है, जब तकआदर्श आचार संहिता लगी है या चुनाव का रिजल्ट नहीं आ जाता। साथ ही राजनीतिक कार्यकारी के साथ-साथ सरकारी अधिकारी भी नियमित प्रशासन की अनदेखी करते हुए चुनाव संबंधी कर्तव्यों में व्यस्त हो जाते हैं। एक देश एक चुनाव होने से नीतिगत निर्णय के साथ ही शासकीय कार्यों में देरी की संभावना न्यूनतम हो जाएगी।

चुनावों की लागत में आएगी कमी 

राजनीतिक भ्रष्टाचार का एक मुख्य कारण बार-बार होने वाला चुनाव भी हैं। हर एक चुनाव में भारी मात्रा में रुपए जुटाना पड़ते हैं। एक साथ चुनाव कराने पर राजनीतिक दलों का चुनावी खर्च पर्याप्त रूप से कम हो सकता है। वन नेशन वन इलेक्शन लागू होने के बाद धन उगाही का दोहराव नहीं होगा। इससे जनता और व्यापारिक समुदाय को चुनावी चंदे के बारंबार दबाव से भी मुक्ति मिलेगी।

एक रिपोर्ट के मुताबिक साल 2019 के लोकसभा चुनाव में 60 हजार करोड़ रुपए खर्च हुए थे। इसके अलावा यदि चुनाव एक साथ आयोजित होते हैं तो निर्वाचन आयोग द्वारा किए जाने वाले खर्च को भी कम किया जा सकता है।

एक देश, एक चुनाव अवधारणा पर चुनाव आयोजित कराने के लिए आवश्यक बुनियादी ढांचा स्थापित करने के लिए चुनाव आयोग को शुरू में बड़ी धनराशि का निवेश करना होगा। इसके साथ ही सभी चुनावों के लिए एक ही मतदाता सूची का उपयोग किया जा सकता है। इससे मतदाता सूची को अद्यतन करने में लगने वाले समय और धन की भारी बचत होगी। नागरिकों के लिए भी आसानी हो जाएगी क्योंकि उन्हें एक बार सूचीबद्ध हो जाने के बाद मतदाता सूची से अपना नाम गायब होने की चिंता से मुक्ति मिलेगी।

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सुरक्षा बलों की तैनाती 

चुनाव को शांतिपूर्ण ढंग से संपन्न कराने के लिए भारी संख्या में पुलिसकर्मी और सैनिकबल तैनात किए जाते हैं। इसमें बड़े पैमाने पर पुनः तैनाती किया जाना शामिल है, इसमें भारी लागत आती है। यह कानून से संबंधित प्रमुख कर्मियों को उनके महत्त्वपूर्ण कार्यों से भी विचलित करता है। एक साथ चुनाव आयोजित होने से इस तरह की तैनाती की आवश्यकता कम की जा सकती है। 

वन नेशन वन इलेक्शन में चुनौतियां 

लॉजिस्टिक्स संबंधी चुनौतियां

वन नेशन वन  इलेक्शन कराने में इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीनों, कर्मियों और अन्य संसाधनों की उपलब्धता और सुरक्षा के संदर्भ में लॉजिस्टिक चुनौतियां सामने आएंगी। निर्वाचन आयोग को इतनी बड़ी कवायद के प्रबंधन में कठिनाइयों का सामना करना पड़ सकता है।

विधिक चुनौतियां

न्यायमूर्ति बीएस चौहान की अध्यक्षता वाले विधि आयोग ने अपनी रिपोर्ट में कहा था कि संविधान के मौजूदा ढांचे के भीतर एक साथ चुनाव कराना संभव नहीं हैं। रिपोर्ट में कहा गया था कि एक साथ चुनाव कराने के लिए संविधान, जन प्रतिनिधित्व अधिनियम 1951 और लोकसभा और विधानसभाओं के प्रक्रिया नियम में उपयुक्त संशोधन की आवश्यकता होगी। आयोग ने इसके लिए कम-से-कम 50% राज्यों से समर्थन की बात की थी जो सरल कार्य नहीं है।

क्षेत्रीय हितों पर ग्रहण

बार-बार होने वाले चुनावों के वर्तमान स्वरूप को लोकतंत्र में लाभ की स्थिति के रूप में देखा जा सकता है क्योंकि यह मतदाताओं को उनकी आवाज को बार-बार सुनने का अवसर देता है। चूंकि राष्ट्रीय और राज्य चुनावों के मुद्दे अलग-अलग होते हैं, इसलिये वर्तमान ढांचा मुद्दों के मिश्रण को रोकता है, जिससे अधिक जवाबदेही सुनिश्चित होती है। आईडीएफसी इंस्टिट्यूट ने 2015 में किए एक अध्ययन में पाया कि एक साथ चुनाव कराने पर इस बात की 77% संभावना बनेगी कि विजय होने वाला राजनीतिक दल या गठबंधन लोकसभा और किसी राज्य की विधानसभा दोनों में जीत दर्ज करेंगे। यह प्रत्येक राज्य की विशिष्ट मांग और आवश्यकताओं का नुकसान कर सकती है।

लागत-प्रभावी नहीं होने की संभावना

निर्वाचन आयोग, नीति आयोग आदि के अलग-अलग अनुमान बताते हैं कि पांच साल के चक्र में सभी राज्य और संसदीय चुनाव आयोजित करने की लागत 10 रुपए प्रति मतदाता हर साल आती है। नीति आयोग की रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि एक साथ चुनाव कराए जाने पर यह लागत 5 रुपए प्रति मतदाता हर साल होगी। एक साथ चुनाव आयोजित कराने के लिए बड़ी संख्या में EVMs और VVPATs की आवश्यकता होगी इससे कम समय में शुरुआती लागत बढ़ जाएगी, ल

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