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ICMR यानी Indian Council of Medical Research के ताजा सर्वे (ICMR report) में खुलासा हुआ है कि भारतीयों की थाली में 62% कैलोरी सिर्फ कार्बोहाइड्रेट से आती है। कम प्रोटीन के कारण डायबिटीज और मोटापा तेजी से बढ़ रहा है। thesootr Prime में आज जानेंगे कि कैसे आप (Health Tips) इस बीमारी पर काबू पा सकते हैं…
आईसीएमआर के नए सर्वे में सामने आया है कि भारतीयों के भोजन में 62% कैलोरी सिर्फ कार्बोहाइड्रेट (जैसे चावल, गेहूं और चीनी) से आती है, जिससे डायबिटीज, मोटापा लगातार बढ़ रहे हैं। अधिक प्रोटीन शामिल कर के इस ट्रेंड को पलटा जा सकता है।
इतने ज्यादा कार्ब्स से दिक्कत क्या है?
शोधकर्ताओं ने अधिक कार्ब लेने वालों में टाइप-2 डायबिटीज, प्रीडायबिटीज, सामान्य मोटापे और पेट के मोटापे का 15-30% अधिक जोखिम पाया।
खास बात: सिर्फ सफेद चावल को गेहूं या मिलेट से बदलने पर भी यदि कुल कार्ब की मात्रा अधिक रहती है, तो फायदा नहीं मिलता।
5 प्वाइंट में समझें क्या है पूरा मामला
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क्यों है भारतीय खाने में कार्बोहाइड्रेट की भरमार?
भारत में अधिकतर लोग खाना बनाते समय चावल, गेहूं और चीनी पर ज्यादा भरोसा करते हैं।
सिर्फ दक्षिण, पूर्व और पूर्वोत्तर राज्यों में सफेद चावल मुख्य अनाज है।
उत्तर और मध्य भारत में गेहूं के आटे का सेवन सबसे ज्यादा होता है।
खासकर 19 राज्यों में मिठास यानी चीनी की मात्रा सुरक्षित सीमा से भी ज्यादा पाई गई।
मिलेट्स जैसे पौष्टिक अनाज अभी गिनती के राज्यों- कर्नाटक, गुजरात, महाराष्ट्र में ही लोकप्रिय हैं।
ज्यादा कार्ब्स खाने से क्या होता है नुकसान?
ICMR-INDIAB अध्ययन बताता है कि जिन लोगों का खाना कार्ब्स (हेल्दी डाइट) पर टिका है, उनमे टाइप-2 डायबिटीज, प्रीडायबिटीज और मोटापे का खतरा 15-30% ज़्यादा है।अगर आप चावल की जगह गेहूं या मिलेट ले भी लें, लेकिन कुल कार्बोहाइड्रेट ज्यादा रहता है, तो कोई खास लाभ नहीं मिलता।
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कार्ब्स की अधिकता से शरीर में इंसुलिन रेजिस्टेंस, पेट की चर्बी, और खराब कोलेस्ट्रॉल बढ़ जाता है। सफेद चावल और मैदा ब्लड शुगर को तेजी से बढ़ाते हैं, जिससे डायबिटीज की समस्या बढ़ सकती है। इन कारणों से विशेषज्ञ खानपान बदलने की सलाह देते हैं।
प्रोटीन कम, इसलिए बिगड़ रही है सेहत
ICMR डेटा के अनुसार, भारतीय डाइट हैबिट में औसतन सिर्फ 12% कैलोरी प्रोटीन से आती है। जबकि प्रोटीन 15% तक होना चाहिए।ज्यादातर प्रोटीन दाल, अनाज या फलियों जैसे पौधों से ही मिलता है।
दूध से सिर्फ 2% और मांस-मछली जैसे जानवरों से केवल 1% प्रोटीन ही आता है।प्रोटीन की कम मात्रा स्किन, बाल, मसल्स और इम्यूनिटी पर असर डाल सकती है।
डाइट में फैट और हेल्दी फैट का रोल
कुल फैट की मात्रा तो सीमित है, लेकिन सैचुरेटेड फैट जरूरत से ज्यादा है। नट्स, सीड्स, या फिश से मिलने वाले ओमेगा-3 फैटी एसिड और मोनोअनसैचुरेटेड फैट्स की मात्रा बेहद कम है।
यही वजह है कि कोलेस्ट्रॉल, दिल के रोग और कई मेटाबोलिक रिस्क फैक्टर बढ़ जाते हैं। स्वस्थ रहने के लिए हमें हेल्दी फैट वाले खाने जैसे नट्स, अखरोट और अलसी को थाली में जोड़ना चाहिए। इन फेरबदल से शरीर को सही न्यूट्रिशन मिलता है।
कैसे लाएं खाने में संतुलन: आसान बदलाव
आईसीएमआर के एक्सपर्ट मानते हैं कि अगर सिर्फ 5% कैलोरी भी कार्ब्स कम करके प्रोटीन बढ़ाएं, तो डायबिटीज और प्रीडायबिटीज का खतरा कम हो सकता है। प्लेट में रोज दाल, फलियां, दूध, दही और पनीर जैसी चीजें शामिल करें।
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अंडा, मछली, हरी पत्तेदार सब्जी भी हेल्दी चॉइस हैं। रेड मीट या फैट बढ़ाने का कोई खास फायदा नहीं मिलता।
पानी ज्यादा पिएं, मीठा और प्रोसेस्ड फूड कम करें।
रोजाना की थाली को कैसे बनाएं बैलेंस्ड?
अनाज बदलें : गेहूं, चावल की बजाय ज्वार, बाजरा या रागी जैसे मिलेट्स प्रोडक्ट को अपनाएं।
प्रोटीन जोड़ें : दाल, पनीर, दही, बीज रोज शामिल करें।
रिफाइंड चीजें कम लें : मैदा, तला खाना और ठंडा पेय कम करें।
सब्जियां और मिलेट मिलाएं : साग, मूंग, अंकुरित दाल से न्यूट्रिशन और फाइबर मिले।
चीनी सीमित करें : कोशिश करें कि खाने में चीनी की मात्रा 5% से ज्यादा न हो।
ICMR और MDRF के एक्सपर्ट्स की राय
ICMR के डॉ. राजीव बंसल कहते हैं - " पोषक तत्वों के लिए खाने में बदलाव लाना हर किसी के लिए जरूरी है। थाली में गेहूं-चावल की जगह मोटे अनाज और दालें ही असली हेल्थ लौटा सकते हैं।"
MDRF की डॉ. वी मोहन बताती हैं- "सफेद चावल और रोटी की मात्रा घटा दें और दाल, दूध को बढ़ाएं, इससे डायबिटीज व दिल संबंधी खतरा कम होता है।"
FAQ
सोर्स क्रेडिट: इस खबर की जानकारी ICMR, Madras Diabetes Research Foundation और Nature Medicine समेत सभी रिसर्च रिपोर्ट्स से ली गई है।
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