राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरकार्यवाह दत्तात्रय होसबाले ने भारत की आर्थिक स्थिति के बारे में जो बयान दिया है, उससे विरोधी दलों के नेता चाहे कितने ही खुश होते रहें लेकिन उसे सरकार-विरोधी नहीं कहा जा सकता है। वह वास्तव में सरकार को जगाए रखने की घंटी की तरह है। आलोचना कड़वी जरूर होती है लेकिन हितकर भी होती है। असल में सरकारें अपनी पीठ खुद ही ठोकती रहती हैं और ज्यादातर अखबार और टीवी चैनल खरी-खरी बात लिखने और बोलने का साहस नहीं जुटा पाते हैं। ऐसे में अगर संघ का उच्चाधिकारी कोई आलोचनात्मक टिप्पणी करता है तो वह कड़वी जरुर होती है लेकिन वह सच्ची दवा भी होती है। होसबोले ने यही तो कहा है कि देश में गरीबी और अमीरी के बीच खाई बढ़ती जा रही है। हमारी खबरपालिका यह तो प्रचारित करती रहती है कि देश के फलां सेठ दुनिया के अमीरों के कितने ऊंचे पायदान पर पहुंच गए हैं लेकिन वह यह नहीं बताते कि देश में अभी भी करोड़ों लोग ऐसे हैं, जिन्हें भरपेट रोटी भी नहीं मिलती। वे बिना इलाज के ही दम तोड़ देते हैं।
देश में 40 करोड़ लोग ही गरीबी रेखा से ऊपर
लगभग डेढ़ सौ करोड़ के इस देश में कहा जाता है कि सिर्फ 20 करोड़ लोग ही गरीबी रेखा के नीचे हैं। सच्चाई क्या है? मुश्किल से 40 करोड़ लोग ही गरीबी के रेखा के ऊपर है। लगभग 100 करोड़ लोगों को क्या भोजन, वस्त्र, निवास, शिक्षा, चिकित्सा और मनोरंजन की पर्याप्त सुविधाएं उपलब्ध हैं? क्या वे हमारे विधायकों और सांसदों की तरह जीवन जीते हैं? जो हमारे जन प्रतिनिधि कहलाते हैं, वे किस बात में हमारे समान हैं? वे हमारी तरह तो बिल्कुल नहीं रहते।
टैक्स देने लायक लोगों की संख्या 10 फीसदी भी नहीं
सरकारी आकड़ें बताते हैं कि देश में सिर्फ 4 करोड़ लोग बेरोजगार हैं। क्या यही असलियत है? रोजगार तो आजकल बड़े-बड़े उद्योगपतियों की कंपनियां दे रही हैं, क्योंकि वे जमकर मुनाफा सूत रही हैं लेकिन छोटे उद्योगों और खेती की दशा क्या है? सरकार सर्वत्र डंका पीटती रहती है कि उसे इस साल जीएसटी और अन्य टैक्सों में इतने लाख करोड़ रु. की कमाई ज्यादा हो गई है लेकिन उससे आप पूछें कि टैक्स देने लायक लोग याने मोटी कमाई वाले लोगों की संख्या देश में कितनी है? 10 प्रतिशत भी नहीं है। शेष जनता तो अपना गुजारा किसी तरह करती रहती है।
जनता बढ़ती महंगाई से बदहाल
सरकारी अफसरों, मंत्रियों और नेताओं के एक तरफ ठाठ-बाट देखिए और दूसरी तरफ मंहगाई से अधमरी हुई जनता की बदहाली देखिए तो आपको पता चलेगा कि देश का असली हाल क्या है? जनता के गुस्से और बेचैनी को काबू करने के लिए सभी सरकारें जो चूसनियां लटकाती रहती हैं, उनका स्वाद तो मीठा होता है लेकिन उनसे पेट कैसे भरेगा?