देश के लिए सिविल सर्विस छोड़ी, गांधी जी से मतभेद हुए लेकिन राष्ट्रपिता कहकर आशीर्वाद लिया; निधन पर अब भी विवाद

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Rahul Garhwal
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देश के लिए सिविल सर्विस छोड़ी, गांधी जी से मतभेद हुए लेकिन राष्ट्रपिता कहकर आशीर्वाद लिया; निधन पर अब भी विवाद

BHOPAL. आज यानी 23 जनवरी को राष्ट्रीय पराक्रम दिवस है। आज ही के दिन 1897 में कटक में सुभाष चंद्र बोस का जन्म हुआ था। तुम मुझे खून दो, मैं तुम्हें आजादी दूंगा का उद्घोष करने वाले सुभाष आजादी के आंदोलन में किसी परिचय के मोहताज नहीं हैं। अंग्रेजों को देश से खदेड़ने के लिए आजाद हिंद फौज की स्थापना की। आज हम आपको सुभाष चंद्र बोस के बारे में जानकारी दे रहे हैं...





सिविल सर्विस में सिलेक्ट हुए थे





सुभाष चंद्र बोस का जन्म 23 जनवरी 1897 में ओडिशा के कटक में हुआ था। उनके पिता का नाम जानकीनाथ बोस और माता का प्रभावती देवी था। सुभाष बचपन से ही पढ़ने में थे। इंग्लैंड पढ़ने गए, सिविल सेवा में चुने गए। 1921 में जब उन्होंने अंग्रेजों द्वारा भारत में किए जाने वाले शोषण के बारे पढ़ा तो उसी वक्त भारत को आजाद कराने का प्रण लिया और इंग्लैंड में सिविल सेवा की नौकरी छोड़कर भारत वापस आ गए और आजादी की मुहिम में जुट गए।





कांग्रेस के अध्यक्ष चुने गए लेकिन फिर पार्टी छोड़ दी





बात 1939 की है। जबलपुर के त्रिपुरी में कांग्रेस का राष्ट्रीय सम्मेलन हुआ था। कांग्रेस के अंदर सुभाष चंद्र बोस को अध्यक्ष बनाने की बयार चल रही थी। कई कांग्रेसी चाहते थे कि सुभाष अध्यक्ष बनें (बाद में सुभाष ही अध्यक्ष बने)। महात्मा गांधी चाहते थे कि पट्टाभि सीतारमैया (मध्यप्रदेश के पहले राज्यपाल) अध्यक्ष बनें। दो उम्मीदवार हो गए तो चुनाव हुआ। सुभाष जीत गए। सीतारमैया की हार के बाद गांधीजी ने बड़ा बयान दिया- पट्टाभि की हार, मेरी हार है। सुभाष को इससे दुख हुआ। उन्होंने कांग्रेस से इस्तीफा दे दिया और नई पार्टी फॉरवर्ड ब्लॉक बना ली। 4 जून 1944 को सुभाष ने सिंगापुर रेडियो से एक संदेश प्रसारित करते हुए महात्मा गांधी को राष्ट्रपिता कहकर संबोधित किया। उनकी आजाद हिंद फौज अंग्रेजों पर आक्रमण करने वाली थी, तभी बोस ने कहा कि राष्ट्रपिता हम आपसे आशीर्वाद चाहते हैं। बाद में भारत सरकार ने भी इस नाम को मान्यता दे दी। गांधी जी के निधन के बाद भारत के तत्कालीन प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू ने रेडियो के माध्यम से देश को संबोधित किया था और कहा था कि राष्ट्रपिता अब नहीं रहे।





हिटलर ने दी नेताजी की उपाधि





जर्मन तानाशाह एडोल्फ हिटलर ने सुभाष चंद्र बोस को पहली बार नेताजी कहकर बुलाया था। सुभाष चंद्र बोस को देश नायक भी कहा जाता है। कहा जाता है कि देश नायक की उपाधि सुभाष चंद्र बोस को रवींद्रनाथ टैगोर से मिली थी। 1942 में सुभाष हिटलर के पास गए और भारत को आजाद करने का प्रस्ताव रखा लेकिन हिटलर ने भारत की आजादी में कोई दिलचस्पी नहीं दिखाई और उसने सुभाष को कोई भी स्पष्ट वचन भी नहीं दिया था। हालांकि, बाद में हिटलर बोस की मदद करने के लिए राजी हो गया। सेकंड वर्ल्ड वॉर में जर्मनी-जापान की हार का असर आजाद हिंद फौज पर भी पड़ा।





आजाद हिंद रेडियो





सुभाष ने 1943 में बर्लिन में आजाद हिंद रेडियो और फ्री इंडिया सेंट्रल की स्थापना की। इसी साल ही आजाद हिंद बैंक ने 10 रुपए के सिक्के से लेकर 1 लाख रुपए के नोट जारी किए। 1 लाख रुपए की नोट में नेताजी सुभाष चंद्र जी की तस्वीर छपी थी। सुभाष ने आजाद हिंद फौज की रानी लक्ष्मीबाई के नाम पर महिला रेजीमेंट बनाई थी, इसकी कमान कैप्टन लक्ष्मी सहगल के हाथ में थी। सुभाष चंद्र बोस 1921 से 1941 के बीच में 11 बार देश के अलग-अलग जेलों में रहे। सुभाष चंद्र बोस को भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस में दो बार (1938 और 1939) अध्यक्ष के रूप में चुना गया था।





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नेताजी के निधन पर विवाद





18 अगस्त 1945 को ताइपे में नेताजी सुभाष चंद्र बोस का विमान दुर्घटना में निधन हो गया था। लेकिन क्या सच में मृत्यु हुई थी, ये गुत्थी सुलझ नहीं सकी। मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, नेताजी के मौत के बात उस समय फिर उछली थी, जब पंडित जवाहरलाल नेहरू की बहन विजयालक्ष्‍मी पंडित ने मीडिया में एक बयान दिया था। विजयालक्ष्मी ने कहा था कि मेरे पास ऐसी खबर है कि हिंदुस्तान में तहलका मच जाएगा, शायद आजादी से भी बड़ी खबर। लेकिन नेहरू ने उन्हें कुछ भी कहने से मना कर दिया था।  





विजया की बात को इसलिए इस मुद्दे से जोड़कर देखा गया था, क्‍योंकि वह उस समय वे रूस में बतौर इंडियन एंबेसडर नियुक्‍त थीं। कहा जाता है कि उन्‍होंने (विजयालक्ष्मी पंडित ने) सुभाष चंद्र बोस को रूस में देखा भी था। विजया ने इसकी जानकारी तत्‍कालीन सरकार को दी गई थी, पर इस मामले में कुछ भी नहीं किया गया। 





18 अगस्त 1945 को नेताजी हवाई जहाज से मंचूरिया जा रहे थे और इसी हवाई सफर के बाद वो लापता हो गए। हालांकि, जापान की एक संस्था ने उसी साल 23 अगस्त को ये खबर जारी की कि नेताजी का विमान ताइवान में दुर्घटनाग्रस्त हो गया था, जिसके कारण उनकी मौत हो गई। इसके कुछ दिन बाद खुद जापान सरकार ने इस बात की पुष्टि की थी कि 18 अगस्त, 1945 को ताइवान में कोई विमान हादसा नहीं हुआ था। बाद में ये खबरें भी आती रहीं कि उन्‍हें रूस के सैनिकों ने गिरफ्तार कर लिया था और वहीं की जेल में उन्‍होंने अंतिम सांस ली।





नेताजी के निधन पर मुखर्जी आयोग की रिपोर्ट





केंद्र सरकार ने 1999 में नेताजी के निधन की जांच के लिए जस्टिस मुखर्जी आयोग का गठन किया था। आयोग के अध्यक्ष सुप्रीम कोर्ट के रिटायर्ड जज जस्टिस मनोज मुखर्जी थे। 7 साल की जांच बाद 6 मई 2006 को आयोग ने रिपोर्ट पेश की। भारत सरकार ने इस रिपोर्ट को खारिज कर दिया।





आयोग के मुख्य निष्कर्ष







  • नेताजी अब जीवित नहीं हैं, पर वे 18 अगस्त, 1945 में ताईपेई में किसी विमान दुर्घटना का शिकार नहीं हुए थे।



  • ताइवान ने कहा था- 18 अगस्त 1945 को कोई विमान दुर्घटना नहीं हुई।


  • रेणकोजी मंदिर (टोक्यो) में रखीं अस्थियां नेताजी की नहीं हैं।


  • गुमनामी बाबा के नेताजी होने का कोई ठोस सबूत नहीं। 




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